बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के संयोजक और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) के सदस्य जफरयाब जिलानी ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) में जिन्ना की तस्वीर लगाए रखने का समर्थन किया है.
आजतक की ओर से आयोजित पंचायत ‘जिन्ना एक विलेन पर जंग क्यों’ के चौथे सत्र ‘राष्ट्रवाद बनाम जिन्नावाद’ पर बहस के दौरान जिलानी ने कहा कि AMU में जिन्ना की तस्वीर लगाने में क्या खराबी है? सिर्फ बीजेपी के कहने से यह गलत नहीं हो जाएगा.
इस सत्र का संचालन मशहूर एंकर श्वेता सिंह ने किया. इसमें AIMPLB के सदस्य जफरयाब जिलानी के अलावा मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के मीडिया प्रभारी सैयद यासिर जिलानी, इस्लामिक स्कॉलर रिजवान अहमद, AMUSU के पूर्व उपाध्यक्ष सैयद मसूद-उल-हसन और बीजेपी के प्रवक्ता सुधांशु त्रिपाठी समेत अन्य ने हिस्सा लिया.
उन्होंने सवाल किया कि जिन्ना को आज के पाकिस्तान से क्यों जोड़ा जा रहा है? जब साल 1938 में जिन्ना को की आजीवन सदस्यता दी गई थी, तब वो बड़ी शख्सियत थे. वो कांग्रेस के नेता और बहुत बड़े वकील रहे हैं. महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू, डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद और डॉक्टर राधाकृष्णन जैसे लोगों के साथ जिन्ना के साथ अच्छे ताल्लुकात थे.
उन्होंने कहा कि AMU में जिन्ना की तस्वीर लगाने में क्या खराबी है? सिर्फ बीजेपी कह दे कि ये खराब है तो क्या खराब हो जाएगी? जफरयाब जिलानी ने कहा कि देश का विभाजन एक अलग बात है, जिसका हम लोगों से कोई लेना-देना नहीं है. उन्होंने कहा कि अंग्रेजों ने दोनों पार्टियों के लोगों से मिलकर तय किया और विभाजन वाला एक्ट पारित कर दिया.
उन्होंने कहा कि हम काफी समय से वहां जिन्ना की तस्वीर देख रहे हैं, लेकिन हमारी नजर में इसमें कोई बुराई नहीं है. सिर्फ बीजेपी वालों के कहने से ही गलत नहीं हो जाएगा. देश में संविधान है, उसके अनुसार काम होना चाहिए. इसका मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के मीडिया प्रभारी सैयद यासिर जिलानी ने जफरयाब जिलानी का कड़ा विरोध किया.
वहीं, इस्लामिक स्कॉलर रिजवान अहमद ने कहा कि AMU के छात्र जानबूझकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के ट्रैप में फंस रहे हैं. उन्होंने कहा, ”अगर मैं AMU का अध्यक्ष होता और मुझे पता चलता कि वहां के सांसद ने वाइस चांसलर को खत लिखा है और मीडिया मुझसे इस मसले पर सवाल करता, तो मैं यही कहता कि एक राजनीतिक व्यक्ति ने वाइस चांसलर को खत लिखा है. यह मसला एचआर का है और मैं छात्र हूं, मेरा जिन्ना की तस्वीर लगी रहने या हटने से कोई लेना-देना नहीं हैं. साल 1938 से तस्वीर लगी है और लगी रहे तो ठीक और हट जाए तो ठीक. जो एडमिनिस्ट्रेशन फैसला लेगा, वो होगा. मुझे पढ़ने दीजिए. लेकिन उनको ऐसा नहीं करना है और आरएसएस के ट्रैप में गिरना है. इसके बाद यह कहना है कि मुसलमानों को टारगेट किया जा रहा है.”