भारत वर्षों से अपने बैंकों को साफ-सुथरा बनाने की चुनौती से लड़ रहा है। दुनिया की 10 बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में भारत का इटली के बाद दूसरा स्थान है जिसका बैड लोन अनुपात सबसे ज्यादा है।
भारत कई सालों से इससे निपटने की कोशिश कर रहा है। 90 फीसदी NPA सरकारी बैंकों का है। 21 सरकारी बैंकों में से 11 RBI की निगरानी में इमर्जेंसी प्रोग्राम के तहत काम कर रहे हैं। उन पर नया कर्ज देने से रोक लगाई गई है।
बैंक ऑफ बड़ौदा के चेयरमैन रवि वेंकटेशन ने पिछले महीने कहा था कि अगर बाजार में और नुकसान नहीं उठाना है तो सरकारी बैंकों का मर्जर जरूरी है।
मौजूदा वित्त वर्ष में लगभग 70 प्रतिशत डिपॉजिट प्राइवेट बैंकों में जा चुका है। बैंकों की कमजोर बैंलेंस शीट की वजह से बैंकों की पूंजी सरकार पर निर्भर हो गई है।
गौरतलब है कि साल 2017 में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) इसके 6 सहयोगी बैंकों का विलय हो गया था। इनमें स्टेट बैंक ऑफ बीकानेर एंड जयपुर, स्टेट बैंक ऑफ त्रावणकोर, स्टेट बैंक ऑफ पटियाला, स्टेट बैंक ऑफ मैसूर, स्टेट बैंक ऑफ हैदराबाद और भारतीय महिला बैंक शामिल है।