ज़ेया गोड़ा को जया गोड़ा बनाने मंसूबा बंद साज़िश

नुमाइंदा ख़ुसूसी हिंदूस्तान बिलख़सूस शहर हैदराबाद फ़र्ख़ंदा बुनियाद क़ौमी यकजहती इत्तिहाद-ओ-इत्तिफ़ाक़ और क़ौमी सालमीयत की बेहतरीन मिसाल समझा जाता है । यहां की गंगा जमनी तहज़ीब मुल्क के दीगर(दूसरे) इलाक़ों के लिये एक बहतरीन मिसाल है । ये एसा शहर है जिस ने अपने दामन में बेला लिहाज़ मज़हब-ओ-मिल्लत हर किसी को पनाह दी है । ये एसा गुलदस्ता है जिस में मुख़्तलिफ़ रंग , मुखतलिफ फूल माहौल को आपसी भाई चारा की ख़ुशबू से मुअत्तर करते हैं । ये एसा चमन है जहां आप को हिंदूस्तान के हर इलाक़ा की बोलियायाँ सुनने को मिलेंगी । इस लिये एसे छोटा हिंदूस्तान भी कहा जाता है ।

लेकिन कुछ अर्सा से देखा जा रहा है कि बाअज़ अनासिर (लोग) जान बूझ कर या फिर अनजाने में एसा तास्सुर पेश करने की कोशिश कररहे हैं जिस से फ़िर्कावाराना हम आहंगी पर ज़रब(चोट) लगती है जैसे ज़िया गौड़ा इलाक़ा जिसे मंसूबा बंद साज़िश के ज़रीया कुछ ज़हर आलूद ज़हनों ने बिगाड़ कर अब जया गोड़ा कर दिया है । यही लिखा भी जाता है और ज़बान ज़द भी है लेकिन पांचों उंगलियां एक जैसी नहीं होतीं । आज भी इस इलाक़ा में कई गैर मुस्लिमों की दुकानों पर ज़ेया गोड़ा ही लिखा हुआ है । लेकिन हैदराबाद के तक़रीबन बाशिंदे क्या अपने क्या पराए बेहिसी की वजह से जया गोड़ा ही बोलते हैं ।

उन्ही ना समझों की वजह से तारीख़ी शहर की -हक़ीक़त ही बदली जारी है लेकिन क़ारईन ! हमारा आज का मौज़ू इस से अलग है वो ये कि ज़िया गौड़ा कमेले के करीब क़ब्रिस्तान में एक बुज़ुर्ग आराम फ़र्मा रहे हैं इस क़ब्रिस्तान का वक़्फ़ बोर्ड में इंदिराज भी मौजूद है । मगर तक़रीबन क़ुबूर को मिस्मार कर(तोड) दिया गया है । सिर्फ एक बड़ा मज़ार बाक़ी है और इस मज़ार से साफ़ वाज़िह होता है कि ये क़दीम (पुराना) है लेकिन इस के बा वजूद भी ख़तरे मंडला रहे हैं । आस पास गैर मुस्लिम आबादी है । इस मज़ार से सिर्फ 20 फुट के फ़ासले पर एक मंदिर तामीर कर दिया गया । जो ज़ाहिर है कि ओक़ाफ़ी ज़मीन पर है और ये अचानक ही इतने बड़े मंदिर की शक्ल में खड़ा नहीं होगया ।

बल्कि आहिस्ता आहिस्ता पहले पत्थर रखा फिर इस पर भगवा रंग डाला । फिर फूल और भगवान की तसावीर और देखते ही देखते पूरे मंदिर की शक्ल इख़तियार करली । तमाम गैरकानूनी मंदिरों की तामीर में इन का यही तर्ज़ अमल रहता है । आज ये एक पुख़्ता मंदिर है । क़ारईन तस्वीर देख कर अंदाज़ा कर सकते हैं कि मज़ार शरीफ को पीछे कर दिया गया । और मंदिर सामने तामीर किया गया । जो इंतिहाई काबिल तशवीश(चिंता ) बात है । ये काम हरगिज़ रातों-ओ-रात नहीं हुआ जिस पोलीस इस्टेशन की हदूद में ये मंदिर तामीर किया गया । क्या उसे इस बात का इलम नहीं था कि यहां क्या शरारत की जा रही है ?

एसे वाक़ियात को आसानी से लेकर नज़र अंदाज कर देना शहर के पुरअमन माहौल को बिगाड़ सकता है । ये पोलीस इस्टेशन में चंद एसे अहलकार मुतय्यन होते हैं जो उस की हदूद में हर छोटी बड़ी कार्रवाई पर गहिरी नज़र रखते हैं । उन्ही अहलकारों की लापरवाही और चशमपोशी से मुआमला यहां तक पहुंचा है । कोई शख़्स भी दरगाह और मंदिर को देख कर बा आसानी ये फैसला कर सकता है कि असल हक़ीक़त किया है ? इस के साथ वक़्फ़ बोर्ड की सर्द मोहरी की वजह से भी बेशतर मसाइल उठ रहे हैं । हम ने अक्सर अपनी रिपोर्टों में लिखा है कि वक़्फ़ बोर्ड की लापरवाही की वजह से ही कई मसाजिद वीरान-ओ-गैर आबाद होगईं ।

उन की अराज़ी (जमीन) पर ग़ैरों ने और अपनों ने महिकमा की कमज़ोरी से फ़ायदा उठाते हुए क़बज़े कर लिए ,शहीद भी कर दिया । इस में कोई दो राय नहीं कि इस महिकमा की कमज़ोरी की वजह से ही एसे वाक़ियात हो रहे हैं लेकिन असल हक़ीक़त की तरफ़ भी तवज्जा देने की ज़रूरत है वो ये कि वक़्फ़ बोर्ड महिकमा में इतना कम स्टाफ़ है जो बिलकुल नाकाफ़ी है और जो लोग इस महिकमा में काम कर रहे हैं इन में से तक़रीबन का ताल्लुक़ हैदराबाद से नहीं है । हर बरसर-ए-इक्तदार हुकूमत चाहती है कि कम से कम स्टाफ़ को रख कर महिकमा को कमज़ोर रखा जाय ताकि उस की कमज़ोरी का भरपूर फ़ायदा हासिल किया जाय और हुकूमत अपने इस मक़सद में कामयाब भी है जो स्टाफ़ में इन में से कुछ उसे हैं जिन्हें औक़ाफ़ के ताल्लुक़ से कुछ जानकारी नहीं है ।

जब किसी ओक़ाफ़ी अराज़ी (जमीन) के सर्वे या मुआइना के लिये इस के उहदेदारान आते हैं तो ये देख कर बड़ी हैरत होती है कि उन्हें इस हवाले से बिलकुल मालूमात नहीं है । बहुत ताज्जुब होता है कि एसे शख़्स को क्यों इस काम का ज़िम्मेदार बनाया जिसे काम के ताल्लुक़ से कुछ भी इलम नहीं ? महिकमा पोलीस जिस का फ़र्ज़ है अमन बहाल रखना और हर एसे वाक़िया पर क़ाबू रखना जो आगे चल कर माहौल या बाशिंदों के ज़हनों को बिगाड़ सकते होँ और एसे अफ़राद के साथ कोई नरम सुलूक ना रखा जाय चाहे वो किसी भी तबक़ा का हो । पिछले कई दिनों से कुछ शरपसंद (बदमाश)हालात बिगाड़ने के लिये कमर बस्ता हो गए हैं ।

उन की तादाद मुट्ठी भर है । महिकमा को चाहिये कि उसे लोगों पर कड़ी नज़र रखे । शहर का कोई बाशिंदा नहीं चाहता कि माहौल ख़राब हो । लेकिन चंद अनासिर (लोग) की वजह से हालात ख़राब होते हैं । अब देखना ये है कि इस ओक़ाफ़ी अराज़ी (जमीन) के तहफ़्फ़ुज़ के लिये वक़्फ़ बोर्ड कहां तक अपनी फ़र्ज़शनासी (ज़िम्मेदारी)का सबूत देता है ।।