जुनूबी एशिया में अमन ( शांती) के लिए दहशतगर्दी सब से बड़ा ख़तरा

वज़ीर-ए-दाख़िला ( गृह मंत्री) हिंदूस्तान सुशील कुमार शिंडे ने कहा कि दहशतगर्दी एक कैंसर है और इस का मुनज़्ज़म जराइम ( संगठित अपराधो) से रब्त मुनश्शियात ( Drugs) और असलाह (शस्त्र) की गै़रक़ानूनी मुंतक़ली और ख़वातीन-ओ-बच्चों के इस्तेहसाल (अपहरण) में इज़ाफ़ा का बाइस ( कारण) है।

इसका मृतकज़ कोशिश के ज़रीया इस इलाक़ा से ख़ातमा ज़रूरी है। चुनांचे पड़ोसीयों की हैसियत से और सार्क में शरीक ममालिक की हैसियत से इस के ख़िलाफ़ मुशतर्का ( कथित) तौर पर ज़्यादा क़रीबी तआवुन के ज़रीया ठोस इक़दामात करने चाहिऐं। शिंडे ने कहा कि कोई भी मुल्क दूसरों से कट कर अलग थलग और महफ़ूज़ नहीं रह सकता जबकि उस की सरहदों के पास इलाक़ा ग़ैर महफ़ूज़ रहे।

हमारे इलाक़ा में दहशतगर्दी का हर वाक़िया हमारे लिए एक याददेहानी ( याद दिलाना) है कि हमें बाहम तआवुन (पारस्परिक सहायता) करना चाहीए और मुशतर्का जद्द-ओ-जहद करनी चाहीए। सिर्फ अज़ाइम से कुछ भी हासिल नहीं होता। मर्कज़ी वज़ीर-ए-दाख़िला हिंदूस्तान ने सार्क ममालिक पर ज़ोर दिया कि दहशतगर्दी के ख़िलाफ़ जंग में बेहतरीन आलात ( उपकरण) और वसाइल ( साधन) इस्तेमाल करें।

सलाहीयतों में शराकतदारी करें और बामानी तआवुन करें। उन्होंने कहा कि ऐसे कैंसर्स के साथ हम इन्फ़िरादी ( व्यक़्तिगत) तौर पर मख़सूस रवैय्या इख़तियार नहीं कर सकते। हमें अपने इलाक़ों को महफ़ूज़ बनाने के लिए मुशतर्का कोशिश करनी चाहीए। उन्होंने सार्क वुज़राए दाख़िला की चोटी कान्फ्रेंस से ख़िताब करते हुए कहा कि हमें दहशतगर्द ग्रुप्स, मुनज़्ज़म जराइम ( संगठित अपराध) की सरगर्मीयों और उन के मददगार नेटवर्क़्स के ख़िलाफ़ ठोस और जामि कार्रवाई करनी चाहीए।