देवबंद: इस्लामीक शिक्षा संस्थान दारुल उलूम देवबंद के वाइस चांसलर मुफ्ती अबू कासिम नोमानी ने कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 25 में देश के सभी धर्मों के लोगों को अपने धर्म का पालन करने की आज़ादी और उसके प्रचार की समान अधिकार दिए गए हैं। ऐसे में न्यायपालिका को मुस्लिम पर्सनल लॉ में दखल नहीं देना चाहिए।
न्यूज़ नेटवर्क समूह प्रदेश 18 के अनुसार मुफ्ती अबू कासिम नोमानी ने तलाक के एक मामले में आज इलाहाबाद उच्च न्यायालय की टिप्पणी पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि इस्लाम में तलाक दिए जाने को अच्छा नहीं माना गया है, फिर चाहे यह एक तलाक हो या दो तलाक या तीन तलाक इसे शरीयत ने ठीक नहीं माना है लेकिन जीवन साथी के बीच झगड़ा होने और मजबूरी की स्थिति पैदा हो जाने पर तलाक दी जाती है।
उन्होंने कहा कि पुरुषों की तरह महिलाओं को भी पति से अलग होने का अधिकार ‘खुला’ प्राप्त है। मुफ्ती नोमानी ने कहा कि तीन तलाक का केस सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। जहां मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और जमीयत उलेमा-ए-हिंद भी अनुयायियों में शामिल हैं।मुफ्ती के अनुसार दारुल उलूम का मानना है कि अदालत को मुस्लिम पर्सनल लॉ के साथ छेड़छाड़ नहीं करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि जब धर्म के अधिकार को संविधान का संरक्षण प्राप्त है तो तलाक देने को संवैधानिक उल्लंघन कैसे माना जा सकता है।
मुफ्ती नोमानी ने कहा कि इस्लाम में महिलाओं को जितने अधिकार दिए गए हैं उतने किसी अन्य धर्म में नहीं दिए गए हैं। उन्होंने यह भी कहा कि मुसलमानों में तलाक के मामले दूसरे धर्मों के मानने वालों से बहुत कम होते हैं।
गौरतलब है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस सुनीत कुमार ने एक याचिका की सुनवाई करते हुए कहा कि ” मुस्लिम पर्सनल लॉ कानून से ऊपर नहीं है जबकि तीन तलाक असंवैधानिक है।
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड मुंबई के सदस्य मौलाना महमूद दरियाबादी कहते हैं कि ” न्यायमूर्ति सुनीत कुमार की यह निजी राय हो सकती है उसे न्यायिक कार्रवाई से जोड़कर नहीं देखा जा सकता.