परवेज़ शिकवा संजीदगी और बाक़ायदगी से लिखते पढ़ते हैं। अहम मसाइल पर अपनी राय का बरमला इज़हार भी ज़रूरी समझते हैं। अपनी पसंद के अदीबों और शाइरों की तख़ालीक़ को पढ़ कर उन से दूसरों को रोशनास कराने का ख़ुशगवार फ़रीज़ा अंजाम देने में ज़्यादा दिलचस्पी रखते हैं।
उन्हों ने प्रोफेसर सैयदा जाफ़र से हैदराबाद में रह कर इल्मी फ़ैज़ हासिल करने की कोशिश की तो इस का बड़ा फ़ायदा ये हुआ कि अब उन की एक बाक़ायदा किताब डॉक्टर सैयदा जाफ़र मंज़रे आम पर आ चुकी है।
किताब की दो बड़ी खूबियां हैं एक तो ये कि एक शुमाली हिंद वाले ने जुनूबी हिंद की तरफ़ रुख़ किया और वहां के अदबी कारनामों को सराहना ज़रूरी समझा। किताब क़ाबिले मुताला है उस को हासिल करने के लिए दानिश महल अमीनाबाद लखनऊ और हुदा बुक डिस्रीकि ब्यूटर्स पुरानी हवेली, हैदराबाद से राबिता क़ायम किया जा सकता है।