तिब्बत में तैनात चीनी सेना ने दूरवर्ती हिमालयी क्षेत्र में अपने साज़ोसामान, हथियारों को समर्थन देने की क्षमताओं और सैन्य-असैन्य एकीकरण का निरीक्षण करने के लिए अभ्यास किया।
ख़ास बात यह है कि डोकलाम गतिरोध के बाद से तिब्बत में किया जाने वाला यह इस तरह का पहला अभ्यास है।
चीनी मीडिया की रिपोर्टों के मुताबिक़, पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) ने मंगलवार को यह अभ्यास किया।
चीन के सरकारी अख़बार‘ग्लोबल टाइम्स’की रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि पीएलए ने पिछले साल अगस्त में 4,600 मीटर की ऊंचाई पर 13 घंटे तक अभ्यास किया था।
इस रिपोर्ट में बताया गया है कि विश्लेषकों ने मंगलवार को किए गए अभ्यास की प्रशंसा करते हुए इसे सैन्य-असैन्य एकीकरण की ओर महत्वपूर्ण क़दम बताया और नए युग में मज़बूत सेना का निर्माण करने के देश के लक्ष्य को हासिल करने की रणनीति का हिस्सा क़रार दिया।
ग़ौरतलब है कि यह अभ्यास स्थानीय कंपनियों और सरकार के सहयोग से किया गया है।
अभ्यास की मुख्य बात सैन्य-असैन्य एकीकरण की रणनीति है जो तिब्बत में अहम बात है जहां दलाई लामा की विरासत अब भी क़ायम है।
चीन की सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ ने कमांड लॉजिस्टिक सपोर्ट डिपार्टमेंट के प्रमुख झांग वेनलोंग के हवाले से बताया कि विषम परिस्थितियों में सैनिकों के बचे रहने, आपूर्ति, बचाव, आपात रखरखाव और सड़क सुरक्षा में परेशानियों को हल करने के लिए सेना ने सैन्य-असैन्य एकीकरण की रणनीति अपनाई है।
वहीं सैन्य विशेषज्ञ सोंग झोंगपिंग ने ग्लोबल टाइम्स से कहा कि अत्यधिक ऊंचाई पर लड़ाई में सबसे बड़ी चुनौती सतत साजोसामान और हथियार को सहयोग मुहैया कराना है। वर्ष 1962 में चीन-भारत सीमा संघर्ष में चीन पर्याप्त साजोसामान मुहैया ना होने की वजह से इस जीत का पूरा फायदा उठाने में विफल रहा।