तहक़ीक़ को बदनामी की मुहिम में तबदील ना करने पी एम का मश्वरा

वज़ीर-ए-आज़म मनमोहन सिंह ने ज़राए इबलाग़ को एहतियात से काम लेने का मश्वरा देते हुए कहा कि तहक़ीक़ की रूह और जज़्बे को बदनामी की रुसवा कुन मुहिम में तबदील ना किया जाये और किसी लामौजूद शय के बारे में इंतिक़ामी जज़्बे के साथ अंधा धुंद तआक़ुब किसी भी सूरत-ए-हाल में तहक़ीक़ पर मब्नी सहाफ़त का नेमुल-बदल नहीं हो सकती।

नेशनल मीडिया सेंटर के आज यहां इफ़्तिताह के मौक़ा पर डाक्टर मनमोहन सिंह के साथ शहे नशीन पर मौजूद कांग्रेस की सदर सोनिया गांधी ने भी इस ख़्याल का इज़हार किया कि अक्सर औक़ात ज़राए इबलाग़ की बहस और मज़ाकरों के दौरान मीडिया के विक़ार, ज़बान-ओ-बयान को मल्हूज़ रखने की ज़रूरत होती है।

सोनिया ने कहा, `मैं ख़ुद भी ये तस्लीम करती हूँ कि ज़राए इबलाग़ बसाऔक़ात सियासी इदारों में बे सकूनी और अदम इतमिनान पैदा करते हैं। डा. मनमोहन सिंह ने कहा कि मीडिया महेज़ किसी सरगर्मी या मसरूफ़ियत की झलक ही नहीं पेश करता बल्कि वो (मीडिया) सारे समाज का आईनादार होता है। डा. मनमोहन सिंह ने कहा कि मआशी इस्लाहात और फ़राख़दिलाना अमल ने अज़ीम समाजी तबदीलियों की झलक पेश की है। इन तबदीलियों का असर यक़ीनन मीडिया पर भी हुआ है।

वज़ीर-ए-आज़म मनमोहन सिंह और दीगर ने कहा कि हर अहम तबदीली का अपने साथ एक चैलेंज लाना भी नागुज़ीर है चुनांचे गुज़िश्ता दो दहाईयों के दौरान बड़े पैमाने पर वक़ूअ पज़ीर हुई समाजी-ओ-मआशी तबदीलियों से पैदा होने वाले मुख़्तलिफ़ चैलेंजों का तख़मीना करना उनसे निमटना आप में शामिल इन तमाम की ख़ुसूसी ज़िम्मेदारी है जो मीडिया की सनअत से वाबस्ता है। उन्हों ने कहा कि हिंदुस्तान जैसी फ़आल-ओ-मुतहर्रिक जम्हूरी एक आज़ाद तहक़ीक़ पर यक़ीन और सही जवाब की तलब रखती है, लेकिन! इस ज़िम्मेदारी से नबरदआज़मा होते हुए एहतियात से काम लेने की ज़रूरत भी होती है। इस कोशिश में तहक़ीक़ का जज़्बा कहीं किसी को बदनामी की रुसवाकुन मुहिम में तबदील ना होजाए। मैं इंतिक़ामी जज़्बे के साथ किसी अंधा धुंद तआक़ुब दरअसल तहक़ीक़ पर मब्नी सहाफ़त का नेम-उल-बदल नहीं हो सकता और शख़्सी ज़हनी तहफ़्फुज़ात को मफ़ाद-ए-आम्मा पर तर्जीह ना दी जाये।

वज़ीर-ए-आज़म मनमोहन सिंह और यू पी ए की सदर नशीन ने यू पी ए हुकूमत पर मुख़्तलिफ़ गोशों से की जाने वाली सख़्त तन्क़ीदों के तनाज़ुर में ये रिमार्कस किए हैं, बिलख़सूस गुज़िश्ता तीन साल के दौरान यू पी ए हुकूमत में कई स्क़ैम मंज़रे आम पर आए हैं। विज़ारते इत्तिलाआत ने अपने शोब ए इत्तिलाआत प्रेस इन्फ़ार्मेशन ब्यूरो (पी आई बी) ने तमाम असरी सहूलतों से आरास्ता आलीशान नेशनल मीडिया सैंटर (एन एम सी) क़ायम किया है, जो ज़राए इबलाग़ से वाबस्ता अफ़राद के लिए एक छत के नीचे सहाफ़त से मुताल्लिक़ दरकार सहूलतों की फ़राहमी के लिए वाहिद मर्कज़ के तौर पर काम करेगा।

वज़ीर-ए-आज़म ने अपने ख़िताब का सिलसिला जारी रखते हुए कहा कि साख , सदाक़त-ओ-एतबार ही मीडिया की करेंसी है, जो इस के क़ारईन, सामईन-ओ-नाज़रीन के साथ तय शूदा समझौते का अहम हिस्सा है। उन्होंने कहा कि नज़्म-ओ-नस्क़ और समाजी हमआहंगी के सवाल पर भी मीडिया की चंद ज़िम्मेदारियां हैं। बिलख़सूस समाजी मीडिया के इन्क़िलाब के तनाज़ुर में इस बात पर ज़ोर देता हूँ कि इस इन्क़िलाब से मरबूत शहरियों और पेशावर सहाफ़ियों के दरमियान ग़ैर हम आहंग और ग़ैर इफ़ादियत बख़्श होगए हैं।

वज़ीर-ए-आज़म ने इस हक़ीक़त को भी वाज़िह कर दिया कि सहाफ़त को बिज़नस से अलग थलग नहीं रखा जा सकता। मीडिया इदारों की ज़िम्मेदारी महिज़ इस के क़ारईन और नाज़रीन तक महिदूद नहीं है, बल्कि मीडिया कंपनियों की हैसियत से अपने सरमाया कारों और हिसस दारों के तईं भी उन के कुछ फ़राइज़-ओ-ज़िम्मेदारीयां हुआ करती हैं। सुतूर बाला और तहत उलसतूर के माबैन रसा कुशी इन (मीडीया इदारों) के लिए ज़िंदगी की एक तल्ख़ हक़ीक़त है, लेकिन इस के साथ वज़ीर-ए-आज़म ने ये भी कहा कि ये एक ऐसी सूरत-ए-हाल का नतीजा होना चाहीए जहां मीडिया इदारे बुनियादी उसोलों से चशमपोशी ना करें।