मुल्क की मुख़्तलिफ़ रियासतों में मुसलमानों की तालीमी पसमांदगी देखते हुए और खासतौर पर अपने सियासी फ़वाइद को मद्देनज़र रखते हुए हुकूमतों ने मुस्लिम तालिबात में सैक़िलें तक़सीम करने की स्कीमात शुरू की। मग़रिबी बंगाल यू पी के बाद आंध्र प्रदेश एक ऐसी रियासत है जहां मुस्लिम तालिबात में सायकिलें तक़सीम की गईं।
26 अप्रैल 2013 यानी 8 माह क़ब्ल रियासती हुकूमत ने राजीव विद्या मिशन के तहत शहर हैदराबाद के उर्दू मीडियम स्कूल्स की 2900 ऐसी तालिबात को सायकिलें फ़राहम की गईं जो सातवीं जमात में ज़ेरे तालीम हैं लेकिन अब ऐसा लगता है कि इन 2900 सैक़िलों में से तक़रीबन सैक़िलें फ़रोख़्त हो चुकी हैं।
क़ारईन! हम ने शहर में अशिया की फ़रोख़्त के लिए मशहूर जुमेरात बाज़ार का दौरा किया और वहां ये देख कर हमारी हैरत की इंतिहा ना रही कि मुस्लिम तालिबात को हुकूमत की जानिब से फ़राहम सैक़िलें भी फ़रोख़्त के लिए रखी गई हैं।
ज़ाइद अज़ 2800 रुपये कीमत की सैक़िल 1600 रुपये में फ़रोख़्त की जा रही है। वाज़ेह रहे कि रियासती हुकूमत ने राजीव विद्या मिशन के तहत सातवीं जमात में ज़ेरे तालीम मुस्लिम तालिबात में 26000 सायकिलें तक़सीम करने का ऐलान किया था लेकिन हुकूमत ने अब तक इस वाअदा की तकमील नहीं की।
हम ने जुमेरात बाज़ार में इस तरह की सायकिलों की फ़रोख़्त को देख कर शहर के बाअज़ उर्दू मीडियम स्कूलों की तालिबात से बात की एक तालिबा ने बताया कि वो कुछ दिन तक सायकिल पर स्कूल जाती रही लेकिन रास्तों में आवारा किस्म के लड़कों के बेहूदा रिमार्क्स और छेड़ छाड़ के नतीजा में सैक़िल का इस्तेमाल ही तर्क कर दिया। एक और तालिबा ने बताया कि अपने घर के किराया की अदाएगी के लिए उसे अपनी सायकिल फ़रोख़्त करनी पड़ी।
दूसरी तरफ़ ये भी एक तल्ख़ हक़ीक़त है कि हुकूमत ने सियासी मुफ़ादात को ज़हन में रखते हुए मुस्लिम तालिबात को सायकिल पर बिठाने की कोशिश की लेकिन उस ने उर्दू मीडियम स्कूलों की हालते ज़ार पर तवज्जा देने की कभी भी ज़हमत गवारा नहीं की। एक स्कूल की तालिबात ने बताया कि उन्हें सायकिलों की ज़रूरत नहीं बल्कि स्कूल में बुनियादी सहूलतें होनी चाहीए।
बाअज़ उर्दू मीडियम स्कूलों में बैतुलखुला नहीं हैं तो कहीं इमारत इंतिहाई बोसीदा हो चुकी है। हद तो ये है कि बेशतर स्कूलों में पीने के पानी की सहूलत तक नहीं है।
ऐसे में उन बुनियादी सहूलतों की फ़राहमी की बजाय लड़कियों के हाथों में सायकिल थमा देना मुस्लिम तालिबात के साथ एक मज़ाक़ के सिवा कुछ नहीं। हुकूमत और सरकारी इदारों को चाहीए कि वो मुस्लिम तालिबात के लिए ठोस इक़दामात करें।