तुम्हें ग़ैरों से कब फ़ुर्सत,हम अपने ग़म से कब ख़ाली….हसरत का शे’र

तुम्हें ग़ैरों से कब फ़ुर्सत, हम अपने ग़म से कब ख़ाली
चलो बस हो चुका मिलना, न तुम ख़ाली ना हम ख़ाली

(मिर्ज़ा ज़ाफ़र अली ‘हसरत’)

नोट: मिर्ज़ा ज़ाफ़र अली ‘हसरत’ लखनऊ के थे. उनके उस्ताद राय्स्वरूप सिंह ‘दीवाना’ थे. ‘जुर’अत’ और ‘हसन’ इनके शिष्य रहे थे.