2014 के चुनावों से पहले तब के गुजरात के मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री पद की दावेदारी कर रहे नरेन्द्र मोदी ने कांग्रेस के लगभग हर क़दम का विरोध किया था. इन्हीं कई क़दमों में से एक क़दम FDI का सख्त विरोध. विरोध कुछ इस तरह का था कि किसी भी भारतीय की रगों का ख़ून ललकार उट्ठे. 5 दिसम्बर 2012 के ट्वीट में मोदी ने कहा कि कांग्रेस देश को विदेशी हाथों में बेच रही है, सभी पार्टियां विरोध में हैं लेकिन सीबीआई की तलवार की वजह से वो राज़ी होने पे मजबूर हैं. मोदी के अलावा भी पार्टी के दूसरे नेता कुछ इसी अंदाज़ में बात कर रहे थे, अरुण जेटली ने कहा कि आख़िरी सांस तक FDI का विरोध करेंगे. बड़े बड़े धरने बड़ी बड़ी बातें बड़े बड़े वादे….
ये तो वो चेहरा था जो 2014 के चुनावों से पहले का था,चुनाव आते ही चीज़ें बदल गयी हैं जो काम कांग्रेस करने जा रही थी और तब कांग्रेस को देश बेचने तक का गन्दा आरोप तक झेलना पड़ा था मोदी ने प्रधानमंत्री बनते ही बिना खौफ़ कर डाला. ग़ज़ब की बात तो ये है कि कुछ मीडिया चैनल इसको सरकार की कामयाबी भी बता रहे हैं और इससे रोज़गार के दावों की भी चर्चा हो रही है लेकिन ये वही लोग हैं जो इसके उलट कांग्रेस के वक़्त बोला करते थे, तब इनको लगता था कि FDI के आने से रोज़गार ख़त्म हो जाएगा लोग सड़क पे आ जायेंगे. अर्थशास्त्र कितनी आसानी से बदल जाता है ये देखने की बात है. लेकिन क्या जनता इस क़दर बेवक़ूफ़ है? क्या वो ये सब ड्रामेबाजी नहीं देख रही है?
भारतीय जनता पार्टी अपने वादों से दिनबदिन भटक रही है और जिन बातों की वजह से बीजेपी इलेक्शन जीती थी उन बातों पर पार्टी खोखली नज़र आ रही है. अच्छे दिनों के नारों वाली पार्टी में लोगों के बुरे दिन ही नज़र आ रहे हैं. छात्रों से, दलितों से, मुसलमानों से, बाक़ी जातियों से लड़ना छोड़ कर सरकार को कुछ काम करना शुरू करना चाहिए वरना पार्टी के लिए अगले किसी चुनाव में अच्छा करना मुश्किल हो जाएगा. जनता सबकुछ देख रही है और जनता अपने मौक़े का इंतज़ार कर रही है. मैं मोदी जी से सिर्फ़ ये आग्रह करता हूँ कि बीजेपी ने जो घोषणा पत्र इलेक्शन से पहले जारी किया था उसे एक बार अच्छे से पढ़ लें वरना बड़ी गड़बड़ हो रही है. बाक़ी आपकी मर्ज़ी हम तो जनता हैं हम अपने अधिकार का इस्तेमाल करेंगे ही. .
(अरग़वान रब्बही)
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