मुनीफ साहब ने नमाजे जनाजा पढ़ाना शुरू किया तो उनके पीछे थे रफी, मुन्ना, इस्माईल, और जमील। इन्हीं लोगों ने नमाज के बाद कंधा देकर जनाजे को कब्र तक पहुंचाया। जिन्हें नहीं मालूम था, उनके सवाल थे-यह कैसा और किसका जनाजा है जिसमें महज चार लोग! ख्वातीन कुछ ज्यादा परेशान थीं। पूछ रही थीं जनाजे को मुकाम तक पहुंचाने के लिये चार कंधे की जरूरत पड़ती है। हर एक कंधा थोड़ी दूरी पर बदल कर लोग जनाजे को कब्र तक ले जाते हैं। मगर यह जनाजा किसका है जिसे कब्र तक पहुंचाने से लेकर दफन करने में महज चार लोग ही थे! न कोई मातम मनाने वाला और न कोई कुरआनखानी का ऐलान करने वाला। न कोई दोस्त, न कोई रिश्तेदार। बस बेगानों के हाथों सब कुछ हो गया।
हम जिस जनाजे की बात कर रहे हैं वह दहशतगर्द तारिक उर्फ ऐनुल का था। तारिक पिछले इतवार को पटना जंक्शन पर हुए बम ब्लास्ट में ज़ख्मी हुआ था जिसकी हफ्ते के रोज़ मौत हो गई। पीर के दिन इसे राजधानी के पीरमुहानी के कब्रगाह में दफनाया गया। तारिक के जनाजे में चार लोग थे लेकिन पुलिस वालों की तादाद एक दर्जन थी। साथ में एक मजिस्ट्रेट भी थे। मीडिया वाले दनादन तस्वीर उतार रहे थे और एक सिपाही पलपल की वीडियोग्राफी कर रहा था।
कब्र पर एक बेगाने ने अगरबत्ती जलाकर दुआ के लिये हाथ उठाया। तारिक के घर वालों ने लाश लेने से इन्कार कर दिया था तब पटना जंक्शन का लावारिस मैयत ट्रस्ट, लाश को दफनाने के लिए आगे आया।
ट्रस्ट के सेक्रेटरी मो इस्माइल ने गवर्नमेंट रेल पुलिस (जीआरपी) से बाजाप्ता पेपर बनवा कर लाश को हासिल किया। 2:30 बजे इसे कब्रगाह लाया गया जहां गुसल के बाद दफनाने का काम शुरू हुआ। जनाजे की नमाज हुई। नमाज पढ़ाने के लिये मुनीफ कासमी आगे आये और इसमें मुन्ना, रफी, जमील साहब शामिल हुये। दो लोग कब्रगाह के अंदर उतरे और किसी तरह मययत को कब्र के अंदर दाखिल कर उसे दफन कर दिया। कब्र पर ट्रस्ट के सेक्रेटरी ने खुशबू जला कर दुआ मांगी और रुखसत हो गये।
सारा अमल एक घंटे के अंदर खत्म हो गया। और खत्म हो गई तारिक की याद। रह गया उसका हिसाब-किताब और उसका अमाल। मो इस्माईल ने बताया कि तारिक, जैसे नौजवान , जो भटक गये हैं उनके लिये एक नसीहत है। अल्लाह इंसाफ करता है। जो दूसरे के लिये बम लेकर आया था वह अपने बम से ही मौत की नींद सो गया। क्या हश्र हुआ? अपनों की मिट्टी भी नसीब न हुई। घर खानदान रहते हुये भी किसी ने उसका आखिरी बार मुंह तक नहीं देखा। मौत और जिंदगी का मालिक अल्लाह है। जब दुनिया में यह हश्र है तो कब्र में क्या होगा।
पटना जंक्शन बम ब्लास्ट में जख्मी दहशतगर्द तारिक की इलाज के दौरान मौत हो गई थी। लाश को 72 घंटे तक घरवालों के आने के इंतेजार में रखा गया था। मियाद पीर की सुबह खत्म हो गई। आज जब मय्यत को दफनाने का इंतेज़ाम किया गया तो घर वालों ने शुरू में इसे तारिक की मय्यत मानने से इन्कार कर दिया। रांची में बैठे रिश्तेदार बार-बार पटना रेल पुलिस पर मय्यत को लेकर रांची आकर शनाख्त कराने पर जोर देने लगे।
पुलिस घरवालों को पटना बुलाने पर जोर दे रही थी। ढाई घंटे तक यह ड्रामा चलता रहा। बाद में घरवालों ने जामा मस्जिद के कुछ मज़हबी लोगो से बात कर उन्हें मिट्टी मंजिल करने की इजाजत दे दी। इस बाबत ताहिर के भाई मो.तौहीद ने शुरू में कहा कि वह कैसे समझे कि जिसकी मय्यत है वह उसका भाई ही है? जब उसे चार दिन पहले की बातें याद दिलाई गईं तो उसने इसकी तस्वीर मांगी। तस्वीर व कपड़ों को देखने के बाद उसने अपने वकील से बात की।
इस बीच ढाई घंटे का वक्त गुजर चुका था। इस दौरान उसे कई मर्तबा कई मज़हबी लोगों से बात करवाई गई। जामा मस्जिद से आए मो.इस्माइल ने खुद उसके भाई से बात की। एक घंटे बाद उसने खुद मो.इस्माइल के मोबाइल पर फोन कर दफनाने की इजाजत दे दी। इसके बाद पटना जंक्शन वाकेय् Cold storage में रखे गए तारिक की मय्यत को एम्बुलेंस से पुलिस के सख्त पहरे के बीच पीरमुहानी कब्रगाह तक भेजा गया। इस्माइल की मानें तो सुबह नौ बजे से ही कब्र खोदकर रखी गई थी | (नकी इमाम, फुलवारी शरीफ)
————–बशुक्रिया: जागरण