हैदराबाद 15 अक्टूबर : ( प्रेस रीलीज़ ) : उर्दू का मौलिद-ओ-मख़रज दिल्ली हो या पंजाब लेकिन ये एक नाक़ाबिल तरदीद हक़ीक़त है कि उर्दू अदब की बाक़ायदा इबतिदा दक्कन ही से हुई । उर्दू नस्र की पहली किताब यहीं लिखी गई ।
उर्दू की पहली मसनवी यहीं वजूद में आई और उर्दू का पहला साहिब दीवान शायर उसी सरज़मीन का एक ताजदार था मज़ीद ये कि उर्दू शायरी का बावा आदम वली जिस ने अपनी नग़ज़ गोई और रंगीन नवाई से अपने पेशरू शाइरों के ख़ाब को शर्मिंदा ताबीर किया और ग़ज़ल को सही माअनों में फ़ारसी ग़ज़ल का हरीफ़ बनादिया । वली गुजरात-ओ-दक्कन की इसी सरज़मीन से उठा था ।
इन ख़्यालात का इज़हार उर्दू के मुमताज़ नक़्क़ाद और दानिश्वर प्रोफ़ैसर गोपी चंद नारंग ने हैदराबाद यूनीवर्सिटी में राजा धन राज गीर जी यादगार लकचर में क्या । प्रोफ़ैसर नारंग ने कहा कि दक्कनी अदब की सब से बड़ी ख़ुसूसीयत ये है कि इस का सर अपने कंधों पर है यानी इस का रंग तक़लीदी नहीं ।
उर्दू ज़बान की वो ख़ुसूसीयात जिन की बदौलत उर्दू आगे चल कर मुख़्तलिफ़ फ़िरक़ों , मुख़्तलिफ़ नसलों और मुख़्तलिफ़ तहज़ीबों के दरमयान वहदत का रिश्ता क़ायम करनेवाली ज़बान बन सकी और हिंदूस्तान के रंगा रंग कल्चर की नुमाइंदगी करने की सलाहीयत पैदा करसकी । उस की बुनियाद इसी सरज़मीन में रखी गई ।
प्रोफ़ैसर नारंग ने मुहम्मद क़ुली क़ुतुब शाह , वजही , नस्रती , वली और सिराज को दक्कन का नगीना क़रार दिया । दक्कन की शायरी बिलख़सूस मसनवीयाँ गंगा जमुनी अजज़ा की आमेज़िश का शाहकार हैं ।
दक्कन की तारीफ़ में ये बेमिसाल शेअर वजही का ही है / दक्खिन है नगीना अँगूठी है जग / अँगूठी को हुर्मत नगीना है लगा ।
गोपी चंद नारंग ने दक्कनी शायरी की तहज़ीबी बू क़लमोनीत का मज़ीद ज़िक्र करते हुए कहा कि यहां सैंकड़ों मसनवीयाँ ऐसी लिखी गईं जैसे कदम राव पदम् राव गुलशन इशक़ , तूती नामा , का सिलसिला मसनवी कामरूप कल्ला कलाम का सिलसिला और क़िस्सा चन्द्र बंदन-ओ-महीअर का सिलसिला जिन की नज़ीर शुमाली हिंदूस्तान में नहीं मिलती ।
ये सब सरमाया दक्कनी उर्दू अदब की जीती जागती तहज़ीबी जड़ों का रोशन सबूत है । प्रोफ़ैसर नारंग ने ये भी कहा कि उर्दू के इमतियाज़ी अरबी फ़ारसी अनासिर को क़ायम रखते हुए उसे सही माअनों में मुशतर्का तहज़ीब का नुमाइंदा बनाना है और नए हिंदूस्तान के अदबी नक़्शे में उसे मुनासिब मुक़ाम दिलाना है ।
उर्दू के दक्कनी सरमाये से आज भी हम बहुत कुछ सीख सकते हैं । प्रोफ़ैसर नारंग ने कहा कि दक्कनी जुनूबी एशिया की लिंगू फ़र्र उनका है ।
रानी इंदिरा देवी धन राज गीर जी ने कहा कि दक्कनी उर्दू हिन्दी की माँ है इस का तहफ़्फ़ुज़ हमारा फ़र्ज़ है । प्रोफ़ैसर हरी बाबू प्रो वाइस चांसलर ने सदारती तक़रीर में कहा कि प्रोफ़ैसर नारंग जैसी शख़्सियत हर ज़बान में होनी चाहीए ।
उन्हों ने जो अदबी और इलमी काम किया है इस की जितनी भी तारीफ़ की जाय कम है । उन्हों ने कहा कि नारंग साहिब के इस ख़ुतबा को अंग्रेज़ी में तर्जुमा करवा के वसीअ पैमाना पर तक़सीम करने की ज़रूरत है । उन्हों ने कहा कि हैदराबाद मुशतर्का तहज़ीब का नुमाइंदा शहर है ।
यहां ईरानी तहज़ीब के असरात भी पाए जाते हैं। हमें इस तहज़ीब की हिफ़ाज़त करने की ज़रूरत है । सदर शोबा उर्दू प्रोफ़ैसर बैग एहसास ने प्रोफ़ैसर नारंग को अह्दे हाज़िर का अज़ीम नक़्क़ाद क़रार दिया और कहा कि ये बाइस इफ़्तिख़ार बात है कि इन जैसी शख़्सियत शोबा उर्दू से मुंसलिक है और यूनीवर्सिटी चीर प्रोफ़ेसर
की हैसियत से उन की ख़िदमात हासिल कर रही है । उन्हों ने कहा कि दक्कनी के तहफ़्फ़ुज़ के लिए शोबा उर्दू मक़दूर भर कोशिश कर रहा है ।
उन्हों ने दक्कनी SAP के लिए पर वाइस चांसलर से तआवुन की दरख़ास्त की । प्रोफ़ैसर के नारायण चंद्रन इंचार्ज डीन स्कूल आफ़ हीवमानटीज़ ने मेहमानों का इस्तिक़बाल किया । डाक्टर हबीब निसार एसोसी ऐट प्रोफ़ैसर ने शुरका महफ़िल का शुक्रिया अदा क्या । इस तक़रीब में मुख़्तलिफ़ शोबा जात के असातिज़ा और तलबा-ए-तालिबात और रिसर्च स्कालरज़ के इलावा हैदराबाद की मुतअद्दिद सरकरदा शख़्सियात ने शिरकत की ।