दरगाह पीर लामरी महबूबनगर का अहम मसला

दरगाह पीर लामरी एक वसीअ बड़ के दरख़्त के साय में वाक़्य है जहां पर दो औलिया-ए-आराम फ़र्मा हैं । इस तरह का वसीअ दरख़्त शायद ही कहीं होगा ।

उस की जड़ का अब तक सही अंदाज़ा नहीं होसकता है । इस के अतराफ़ फैली हुई लाँबी शाख़ें क़ुदरत का मुज़ाहरा करती हैं । यहां पर बेशुमार ज़ाइरीन आते हैं । मगर इन केलिए नमाज़ों की अदाएगी और वुज़ू ख़ाने यह तहारत ख़ानों का कोई इंतेज़ाम नहीं है । इस ख़सूस में ज़िला कलैक्टर से इलतेजा है कि वो इस क़दीम-ओ-मोतबर बारगाह से मुत्तसिल दरख़्त के किसी किनारे एक छोटा सही हाल तामीर करे साथ ही वुज़ू ख़ाने और तहारत ख़ानों का भी इंतेज़ाम किया जाय तो मुस्लमानों के साथ सही इंसाफ़ होगा ।

उस की पुर‌असर नुमाइंदगी केलिए मुक़ामी सयासी और समाजी क़ाइदीन को भी पहल करनी होगा । किसी ना किसी फ़ंड से इस की पा बजाई की जा सकती है । चूँकि हुकूमत भी मुस्लिम इबादतगाहों वगैरह के ताल्लुक़ से नरम गोशा रखती है और मुख़्तलिफ़ मुक़ामात पर फंड्स जारी किए गए हैं ।

जिस की ज़िंदा मिसाल हज़रत मरदान अली शाह , महबूबनगर से मुत्तसिल हाल की तामीर है । बहरहाल मुसलसल नुमाइंदगियों के ज़रीया काम तकमील होसकता है । उम्मीद के इक़दामात किए जाएंगे ।