कल इतवार का दिन देश के इतिहास में एक ऐसा काला दिन बनकर सामने आया जिसने सैंकड़ों सालों से चली आ रही भेदभाव की नीति को नंगा कर दिया। खबर मिली कि पिछले साल हैदराबाद यूनिवर्सिटी में रिसर्च कर रहे पांच दलित रिसर्च स्कॉलर्स जिन्हें पिछले साल एक मामूली सी बात पर हुई बहस के बाद कॉलेज से निकाल दिया था में से एक ने अपने साथ हो रहे भेदभाव से तंग आकर हॉस्टल के कमरे में फंदा लगाकर अपनी जान दे दी।
बहुत से मीडिया चैनलों ने इस खबर को सिर्फ एक मौत की खबर की तरह पेश किया। टीवी पर जोर जोर से चिल्लाने वाले कुछ मश्हूर एंकरों ने अपने गले का पूरा ज़ोर लगाया भी तो यह कहने के लिए कि फांसी अपनी नाकामियों की वजह से लगायी गयी है। कुछ का कहना है यूनिवर्सिटी में दादागिरी करने वाले लोगों में से एक गिनती काम हो गयी। जहाँ एक तरफ कुछ चैनल फांसी के पीछे की असल वजह छुपाने को लगे हैं वहीँ कुछ ने इस खबर की तरफ से मुँह मोड़ने का फैसला कर और ख़ास ख़बरें दिखाना शुरू कर दिया है।
लेकिन सवाल अभी भी ज्यूँ का त्यूं ही है कि आखिर फांसी लेने वाले स्कॉलर रोहित वेमुला ने फांसी ली है या उसकी बलि दी गयी है ?
लोग चाहे कुछ भी कहें लेकिन देश की राजनीति की शतरंज की चालें देखें तो शायद आप भी समझ जायेंगे की रोहित वेमुला ने आतांहत्य नहीं की बल्कि उसकी बलि दी गयी है। उसकी बलि दी गयी है दलितों की आवाज़ दबाने और मनुवाद को हमेशा के लिए कायम रखने के लिए।
सत्ता में बैठे लोग नहीं चाहते की उनके खिलाफ कोई दलित आवाज़ उठाये। सत्ताधारी मनुवादी अपनी नीति और नीयत दोनों पर कायम है और वो कल भी यही चाहता था और आज भी यही चाहता है कि दलित उसके पैरों की जूती बनकर रहे, उसके मंदिरों में दान करे, घर में काम करे, उसकी जूतियां चमकाए और सर पर मैला धोए और वक़्त आने पर उसके कहने पर उसकी पार्टी को वोट करे। लेकिन आज जब एक दलित ने अपने और दूसरे धर्मों के लोगों के लिए आवाज़ उठाने की कोशिश की तो उसे तंग कर उसे इन हालातों में पहुंचा दिया कि वो खुद अपनी बलि देने के लिए तैयार हो गया।
इस आतमहयता को बलि कहने की वजह साफ़ होती है नीचे दिए गए इन खतों से जिनमें से एक खत आंध्रा प्रदेश के लेबर और एम्प्लॉयमेंट मिनिस्टर बंदारु दत्तातरया ने एच.आर.डी. मिनिस्टर स्मृति ईरानी को लिखा है और कहा है कि हैदराबाद की यूनिवर्सिटी देश विरोधी राजनीति और कट्टरवादी लोगों का अड्डा बन गयी है। बंदारु दत्तातरया ने अपने इस खत में कहा है कि अम्बेडकर अटूडेंट्स एसोसिएशन ने याकूब मेमन को फांसी दिए जाने पर नारेबाजी और विरोध प्रदर्शन किया है। बंदारु दत्तातरया ने मांग की थी की अम्बेडकर स्टूडेंट्स एसोसिएशन के मेंबरों के खिलाफ कार्रवाई की जाए। ऐसे में केन्दर सरकार के दवाब के चलते यूनिवर्सिटी के वाईस चांसलर ने स्टूडेंट्स एसोसिएशन के पांच ख़ास मेंबरों को ससपेंड कर दिया और तब से लेकर अभी तक इन स्टूडेंट्स को यूनिवर्सिटी ने बहाल नहीं किया है।
घटना में शामिल एक दूसरा स्टूडेंट फ्रंट ABVP जो कि आरएसएस का ही एक एक यूनिट है ने भी दवाब बना कर इन स्टूडेंट्स को यूनिवर्सिटी निकलवाने के लिए काफी मेहनत की थी। सभी जगह ऊंचे मुकामों पर डेरा डाले बैठे मनुवादी सोच के लोगों ने ससपेंड किये स्टूडेंट्स को निकाल कर दोबारा बहाल ना करने का फैसला किया जिससे न सिर्फ इन स्टूडेंट्स का भविष्य खराब हुआ बल्कि उनमें से एक ने ऐसा राह चुन लिया जहाँ से वापिस आना नामुमकिन है।
रोहित वेमुला की बलि दलित समाज और बाकी माइनॉरिटी ग्रुप्स के लिए मनुवादियों की तरफ से दिया गया एक पैगाम है कि जो भी उनकी सरकार का तख्ता पलट करने की तरफ एक कदम भी उठाएगा उसका यही हश्र होगा।
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