जिहाद लफ्ज का इस्तेमाल कई माने में किया जाता है। जिहाद एक मुसबत लफ़्ज़ है, जिसका बराहे रास्त ताल्लुक जद्दोजहद से है। यह लफ़्ज़ अपने आप में वसीह और और जमा मनी रखता है। भारत जैसे जम्हूरि और सेकुलर मुल्क में जिहाद के नाम पर अगर कोई तंजीम तशद्दुद के जरिये दहशत फैलाना चाहता है तो यक़ीनी तौर से यह गैर इसलामी और दहशतगर्दी है। इसलाम का एक पैरोकार और मुल्क के एक तालिम याफ़्ता शहरी के तौर में सबसे पहले मैं पटना के बम धमाकों और उन तमाम दहशतगर्द हमलों के लिए गहरी हमदर्दी का इज़हार करता हूं।
मासूमों की रूह के अमन लिए दुआ करता हूं। यह कहना चाहता हूं कि इसलाम का मतलब अमन होती है। हजरत मोहम्मद (स) को अल्लाह ने दुनिया में अमन कायम के लिए भेजा था। अगर ऐसा नहीं होता तो आप (स) ने यह कभी नहीं कहा होता कि सबसे बड़ा जिहाद अपने नफ़स (दिमाग, ख्वाहिशात,वगैरह ) पर कंट्रोल करना है। कुरआन में यह कहा गया है कि अगर तुमने एक मासूम का कत्ल किया तो समझो सारी इंसानियत का कत्ल किया और अगर एक मासूम की जान बचायी तो समझो सारी इनसानियत की जान बचायी। कुरआन में यह भी कहा गया है कि अगर तुमसे कोई जंग करे, तो तुम भी उससे जंग करो, मगर जंग में भी मासूमों, बच्चों, जाईफों, औरतों, बीमारों, जख्मियों का कत्ल मत करो।
खुदकशी हमलों और इसलाम और दुनिया के किसी भी मजहब से बहुत कम ताल्लुक है। ये हमले बुनियादी तौर से सियासी हैं’। नामूर मुसलिम माहिर शेख अक़ीक़ी अल अकीती ने दहशतगर्द की मज़मत की और फतवा जारी किया। पाकिस्तान के मशहूर आलिम शेख ताहिरूल कादरी ने 600 पन्नों का फतवा जारी करते हुए खुदकशी हमलों की मज़मत की और उसे गैर-इसलामी कहा।
अलग-अलग मुसलिम मज़ाहिब तंजीमों के नाम पर जो लोग मासूमों को जत्रत का ख्वाब दिखला कर दूसरे मासूमों की कत्ल करवा रहे हैं, उन्हें यह समझना चाहिए कि कुरआन में इन बातों की मनाही है। ये उन बातों को ही अमली जामा पहना रहे हैं और यह भरोसा दिला रहे हैं कि उन्हें शहादत का दर्जा मिलेगा और वे सीधे जत्रत में जायेंगे। ऐसे लोग गुनाहे अजीम में फंसते जा रहे हैं जिनकी जगह ना तो दुनिया में महफूज है और ना ही आखिरत (मरने के बाद की दुनिया) में।