आज हम इंसानों के लिए बने वृद्धाश्रमों की नहीं, बल्कि गौ माता के वृद्धाश्रम यानी गौशालाओं की बात करेंगे. वह भी दिल्ली यानी देश की राजधानी में स्थित गौशालाओं की, जहां एक फोन कॉल पर पुलिस केरल भवन में बीफ होने की शिकायत पर जांच करने पहुंच जाती है. उस दिल्ली की, जहां से चंद किलोमीटर दूर दादरी में बीफ रखने के शक में असामाजिक तत्व घर में घुसकर एक शख्स की हत्या कर देते हैं. आइए, जानते हैं दिल्ली में हमारी गौ माता की हालत क्या है?
1इंसान के जीवन का पहला निवाला दूध है, मां का दूध, फिर गाय का दूध. शायद इसलिए भी हम गाय को मां का दर्जा देते हैं. एक अकेली गाय अपने दूध से कईयों को जीवन देती है, अपने गोबर से खेतों में हरियाली लाती है, ऊर्जा का स्रोत बनती है. लेकिन, वही गाय जब हमारे काम की नहीं रहती यानी दूध देना बंद कर देती है, तो हम क्या करते हैं? शायद वही, जो आज का तथाकथित सभ्य समाज अपनी जन्मदात्री के साथ करता है. इस देश में हज़ारों वृद्धाश्रम हैं, जहां लोग अपने वृद्ध माता-पिता को छोड़ आते हैं. उसी तरह यही तथाकथित सभ्य समाज दूध न देने पर अपनी मां यानी गाय को सड़क पर खुला छोड़ देता है या फिर गौशाला भेज देता है. खैर, आज हम वृद्धाश्रमों की नहीं, बल्कि बात करेंगे गौ माता के वृद्धाश्रम यानी गौशालाओं की. वह भी दिल्ली यानी देश की राजधानी में स्थित गौशालाओं की, जहां एक फोन कॉल पर पुलिस केरल भवन में बीफ होने की शिकायत पर जांच करने पहुंच जाती है. उस दिल्ली की, जहां से चंद किलोमीटर दूर दादरी में बीफ रखने के शक में असामाजिक तत्व घर में घुसकर एक शख्स की हत्या कर देते हैं और उसके बेटे को जख्मी.
यह दिल्ली की एक ऐसी सच्ची तस्वीर है, जो कानों सुनी या आंकड़ों पर आधारित नहीं है, बल्कि आंखों देखी है. दक्षिणी दिल्ली के कालका जी इलाके में रहने वाली एक वरिष्ठ महिला पत्रकार ने एक गाय को लेकर अपने जो अनुभव बताए, वे रोंगटे खड़े कर देने वाले थे. दिल्ली नगर निगम के कब्जे से एक गाय छुड़ाने के लिए उनकी ओर से की गई जद्दोजहद न स़िर्फ कई अमानवीय चेहरों की कहानी कहती है, बल्कि समाज का दोहरा चरित्र भी सामने लाती है. यह दोहरा चरित्र बताता है कि कैसे हम एक तऱफ गाय के नाम पर राजनीति करते हैं और दूसरी तऱफ उसी गाय को शहर सा़फ करने के नाम पर जीते-जी मौत के मुंह में धकेल देते हैं.
उक्त वरिष्ठ महिला पत्रकार बताती हैं कि उनके मोहल्ले में रोज़ एक तंदुरुस्त गाय आती थी. वह उसे रा़ेजाना रोटी खिलाती थीं. एक दिन गाय नहीं आई, तो उन्होंने यूं ही पता किया कि आ़िखर वजह क्या है? मोहल्ले के लोगों ने बताया कि एमसीडी (दिल्ली नगर निगम) वाले आज ही उसे ट्रक में भरकर ले गए हैं. ग़ौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने कुछ साल पहले निर्देश दिया था कि शहर में घूमने वाले आवारा पशुओं को हटाया जाए. उसी निर्देश के आलोक में एमसीडी वाले शिकायत मिलने पर या खुद ऐसे पशु देखने पर उठा ले जाते हैं. खैर, जब वरिष्ठ महिला पत्रकार को पता चला कि एमसीडी वाले उस गाय को उठा ले गए हैं, तो उन्होंने उसे एमसीडी के कब्जे से छुड़ाने की कोशिश शुरू कर दी. अगले दिन सबसे पहले वह अपने एक साथी के साथ उत्तरी दिल्ली नगर निगम के उस दफ्तर पहुंचीं, जहां शहर की गलियों से पकड़ कर लाई गई गायों की गणना होती है और फिर उन्हें वहां से बाहरी दिल्ली स्थित विभिन्न गौशालाओं में भेज दिया जाता है.
उत्तरी दिल्ली नगर निगम के दफ्तर पहुंचने के बाद जब उन्होंने वहां के कर्मचारियों से इस बारे में जानकारी लेने की कोशिश की, तो उन्हें बताया गया कि उस गाय को कल ही बाहरी दिल्ली के नजफगढ़ स्थित एक गौशाला में भेज दिया गया है. वह किसी भी क़ीमत पर उस गाय को छुड़ाना चाहती थीं. उन्होंने वहां एमसीडी का एक ट्रक देखा, जिसमें क्षमता से कहीं अधिक गायों को ठूंस-ठूंस कर भरा गया था और उन्हें भी नजफगढ़ स्थित उसी गौशाला में ले जाने की तैयारी हो रही थी, जहां उनके मोहल्ले की गाय को पहुंचाया गया था. वह बताती हैं कि उन्होंने उस ट्रक का पीछा करने का ़फैसला किया. ट्रक के पीछे-पीछे चलते हुए वह नजफगढ़ पहुंच गईं. वह बताती हैं कि उत्तरी दिल्ली नगर निगम के दफ्तर से नजफगढ़ पहुंचने का रास्ता बेहद खराब है और उसके बावजूद ट्रक में इतनी अधिक संख्या में गायों को भरा गया था कि वहां तक पहुंचते-पहुंचते आधी से अधिक गायें बेहाल हो चुकी थीं. खैर, ट्रक ने जैसे ही गौशाला में प्रवेश किया, उन्होंने भी अपनी कार उसके पीछे ले जाकर खड़ी कर दी. वहां उन्होंने जो दृश्य देखा, वह किसी भी इंसान का दिल दहलाने के लिए काफी था.
वह बताती हैं, हमने वहां गायों के ज़िंदा कंकाल देखे. वे कातर निगाहों से हमें देख रही थीं, जैसे उन्हें उम्मीद हो कि हम उन्हें बचाकर वहां से ले जाएंगे. गौशाला के एक कर्मचारी ने तुरंत आकर उनसे सबसे पहले यह पूछा कि वह बिना अनुमति के अंदर कैसे आ गईं? उन्होंने पूरी कहानी बताई कि वह अपनी गाय छुड़ाने के लिए आई हैं. वह बताती हैं कि उस गौशाला में जितनी जगह थी, उस लिहाज से कहीं ज़्यादा गायें वहां मौजूद थी. उन्होंने वहां देखा कि एक मरी गाय किनारे पड़ी हुई थी, जिसका शरीर फूलकर काफी बड़ा हो गया था. इस बारे में पूछने पर गौशाला के कर्मचारी ने उनसे स़िर्फ इतना कहा कि हां, इसे हटाने के लिए बोला गया है.
गौशाला में गायों की बदहाली के बारे में उक्त कर्मचारी का कहना था कि प्रति गाय प्रतिदिन स़िर्फ 40 रुपये मिलते हैं, चारा वगैरह खिलाने के लिए. इतने पैसों में क्या किया जा सकता है? महिला पत्रकार ने बताया कि वहां गायों की संख्या इतनी अधिक थी कि वह अपनी गाय ढूंढ नहीं पाईं. हो सकता है कि जिस तरह गायों को वहां लाया और रखा जाता है, उससे उनकी गाय मर गई हो. उन्होंने वहां गायों की जो हालत देखी, वह जीते-जी किसी की हत्या करने जैसी थी. सुप्रीम कोर्ट के उस निर्देश का भी हवाला देते हुए, जिसमें सड़कों पर घूमते पशुओं को उठाने के लिए कहा गया है, वह कहती हैं कि अदालत को इन गौशालाओं की हालत भी देखनी चाहिए कि कैसे इन गायों को असमय मरने के लिए मजबूर कर दिया जाता है.
वह जब मुझे यह कहानी बता रही थीं, तो उनके चेहरे पर संवेदना, गुस्सा, लाचारी यानी सारी भावनाएं एक साथ तैर रही थीं. उनकी आंखों में इस बात की लाचारी दिख रही थी कि वह अपने मोहल्ले की उस गाय को बचा नहीं सकीं और गुस्सा पूरे सिस्टम पर. खासकर उस समाज पर, जो गाय को माता तो मानता है, लेकिन जैसे ही गाय दूध देना बंद कर देती है, वह उसे न स़िर्फ अपने दिल से, बल्कि अपने घर से, अपने शहर से बाहर एक ऐसी जगह भेज देता है, जहां मौत उसका इंतजार कर रही होती है. और, सबसे अहम तथ्य यह कि ज़्यादातर गौशाला संचालक हिंदू धर्म को मानने वाले लोग हैं, खुद को हिंदू संत बताते हैं.
एक तऱफ गाय के नाम पर इस देश में राजनीति और गंदी बहस चल रही है, वहीं दूसरी तऱफ शर्मनाक तथ्य यह सामने आया है कि दिल्ली नगर निगम, जहां पिछले एक दशक से भी अधिक समय से सत्ता में भाजपा है, ने अब तक जितनी गायें सड़कों से उठाकर गौशाला भिजवाईं, उनमें से क़रीब 90 ़फीसद गायें असमय काल का ग्रास बन गईं. आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2008 में मई से अक्टूबर तक यानी छह महीने के दौरान 11 हज़ार 26 गायें पकड़ कर दिल्ली की विभिन्न गौशालाओं में भेजी गईं, जिनमें से 10 हज़ार 716 गायों की मौत हो गई. 2007 में कुल 10 हज़ार 574 गायें सड़कों से उठाई गईं और इसी साल 10 हज़ार 793 गायें मर गईं. यानी 2007 में पकड़ी गईं गायों में से एक भी गाय जीवित नहीं बची और 2006 में पकड़ी गई कुल गायों में से भी 119 गायें मर गईं.
ज़ाहिर है, ऐसी स्थिति में कुछ सवाल मन में उठते हैं. असमय गायों को मरने पर मजबूर कर देने के पीछे क्या कोई साज़िश है? क्या इसके पीछे मांस या चमड़ा व्यापार से जुड़े लोग हैं? आ़िखर मरी हुई गायों का होता क्या है? कहां जाती हैं ये गायें? जिस ढंग से अधमरी हालत में गायों को गौशालाओं तक पहुंचाया जाता है, क्या यह जानबूझ कर, किसी के कहने पर, किसी लालच में किया जाता है? इन सवालों के जवाब गाय की राजनीति करने से पहले गाय की राजनीति करने वालों को ढूंढना चाहिए. लेकिन, क्या ऐसा हो पाना संभव है?
हिंदू गाय-मुस्लिम गाय
दिल्ली का किशनगढ़ गांव. यहां एक गौशाला है, क़रीब 125 साल पुरानी, जिसमें मौजूद गायों की संख्या तक़रीबन 1,200 है, जिनकी देखभाल करती हैं आसिया खान और उनका परिवार. आसिया बताती हैं कि वह रा़ेजाना सबसे पहले गायों को नहला कर उनका गोबर सा़फ करती हैं. उसके बाद वह पशुओं में होने वाली बीमारियों और चारे की जांच करती हैं. वह कहती हैं कि गायों की सेवा से उन्हें खुशी मिलती है. यह गौशाला दक्षिणी दिल्ली के क़रीब 30 गांवों द्वारा दिए जाने वाले पैसों से चलती है. आसिया और उसके पति किशनगढ़ की इस गौशाला में 13 वर्ष पहले आए थे और तबसे गायों की सेवा कर रहे हैं. यहां सवाल यह उठता है कि आसिया तो मुस्लिम हैं, लेकिन क्या वे 1,200 गायें भी किसी धर्म विशेष से जुड़ी हुई हैं?
कौन बेचता है बीफ
बीफ का निर्यात करने वाले देशों की सूची में भारत नंबर वन है. देश में बीफ का सालाना कारोबार 300 अरब रुपये का है. 2014 में भारत ने 24 लाख टन बीफ निर्यात किया था, जो पूरी दुनिया में बीफ के कारोबार का क़रीब साठ ़फीसद हिस्सा है. सेंटर फॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के आंकड़ों के मुताबिक, भारत से भैंसों का मांस सबसे अधिक एशियाई देशों में जाता है यानी 80 ़फीसद. शेष में से 15 ़फीसद अफ्रीकी देशों को निर्यात किया जाता है. एशियाई देशों में भी खासकर वियतनाम भारत के 45 ़फीसद बीफ का खरीदार है. 2014 में भारत को बीफ निर्यात से 48 लाख डॉलर की कमाई हुई. सरकार बीफ के कारोबार पर 15 करोड़ रुपये की सब्सिडी दे रही है. सबसे अहम बात यह है कि भले ही हिंदूवादी संगठन धार्मिक आधार पर इसका विरोध कर रहे हों, पर सच्चाई यह है कि देश के सबसे बड़े चार मांस निर्यातक हिंदू हैं, न कि मुसलमान. यानी अरेबियन एक्सपोर्ट (सुनील करन), एमकेआर फ्रोजन फूड्स (मदन एबट) अल कबीर एक्सपोर्ट (सतीश एवं अतुल सभरवाल) और पीएमएल इंडस्ट्रीज (एएस बिंद्रा).
दिल्ली सरकार के दिशानिर्देशों के तहत चलने वाली गौशालाएं
1. गोपाल गौसदन, हारेवेली.
2. श्रीकृष्णा गौशाला, सुल्तानपुर डबास.
3. डॉबर हरिकृष्ण गौसदन, सुरहेरा.
4. मानव गौसदन, रेवला खानपुर.
5. आचार्य सुशील गौसदन, घूमनहेरा.