बाबूलाल मरांडी की हुकूमत ने बेरोजगार क़बायली नौजवानों के तरक़्क़ी के लिए एक मंसूबा बनायी थी। उस वक़्त बहबूद वज़ीर अर्जुन मुंडा थे। मेसो मंसूबा बंदी के तहत 10 लोगों का ग्रुप बना कर उन्हें ग्रांट पर बस मुहैया की गयी थी। तब नौजवान बहुत खुश थे कि अब वे खुद कफ़ील हो जायेंगे। मगर निगरानी के फकदान और हुकूमत से मदद न मिलने की वजह से ज़्यादातर बसें खड़ी हो गयीं। नौजवान फिर सड़क पर आ गये। वे लाखों के मक़रूज़ (कर्ज़दार) हो गये। इन बसों पर लाखों रुपये का टैक्स बकाया है।
शुरुआत में बस ठीक-ठाक चली। मगर पुराना होते ही मेंटेनेंस मांगने लगी। साथ ही स्टैंड में फीश और चंदा देना पड़ता था। इसके बाद 10 लोगों के लायक रकम बचती नहीं थी। वक़्त पर टैक्स भी जमा नहीं हो पाता था. यही वजह है कि धीरे-धीरे सारी बसें खड़ी हो गयीं।
मिस्टर टुडू के मुताबिक पूरे कोल्हान में तकरीबन 90 बसें खड़ी हैं। मशरिकी सिंहभूम में 6-8 बसें चल रही हैं। खुद उन्होंने 2002 से 2007 तक बस चलायी। इसके बाद कागजात फेल होने और टैक्स बकाया होने की वजह उनकी बस जब्त कर ली गयी और साकची थाना में खड़ी है। टैक्स जमा करने के बाद भी गाड़ी नहीं छूटी और उन्होंने कागजात सरेंडर कर दिया। गाड़ी नहीं चलने के बाद भी आखिर टैक्स कैसे बकाया है।