नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की जिंदगी नमूना-ए-अमल

(हजरत सैयद अब्दुल्लाह शाह नक्शबंदी) अल्लाह तआला ने अपनी मर्जी के मुवाफिक चलने के लिए इंसान को उसकी अक्ल पर नहीं छोड़ा बल्कि वाजेह एहकाम दिए और उन एहकाम पर अमल करने का नमूना भी दिया। नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) हमारे लिए नमूना है।

‘‘लोगो! तुम्हारे पास तुम ही में से एक पैगम्बर आए हैं तुम्हारी तकलीफ उनको भारी मालूम होती है, तुम्हारी भलाई के बहुत ख्वाहिशमंद हैं और मोमिनों पर निहायत शफकत करने वाले और मेहरबान हैं फिर अगर यह लोग फिर जाएं (और न मानें) तो कह दो कि खुदा मुझे किफायत करता है उसके सिवा कोई माबूद नहीं उसी पर मेरा भरोसा है और वही अर्शे अज़ीम का मालिक है।’’ (सूरा तौबा- 11.16)

अल्लाह तआला को अपने बंदो पर किस दर्जा रहमत है और कितनी मुहीत है कि हमारी तर्बियत के लिए वह अंदाज, वह तरीका अख्तियार फरमाया जैसा शफीक बाप अपने बच्चे के साथ करता है। हमारे फायदे के लिए हमको अपनी राह पर लगाने के लिए ऐसा बहलाता है जैसे कोई बच्चों को काम लेेने के लिए बहलाता है। औलिया भी ऐसे ही तदबीरों से इस्लाह करते हैं।

हजरत शेख फरीद शकरकंज (रह०) के एक मुरीद को हजरत की एक बांदी के साथ मोहब्बत हो गई। हजरत शेख फरीद को इसकी जब खबर हुई तो हजरत ने उनको न मलामत की और न खफा हुए बल्कि तदबीर यह की कि उस बांदी को मसहल की दवा पिला दी और जो दस्त आए तो वह सब एक तश्त में जमा करा दिए।

दस्त आने से उस बांदी का रंग व रोगन जाता रहा। इसके बाद उस बांदी के हाथ उस मुरीद के पास खाना भेजे। उस मुरीद को उस बांदी से नफरत हो गई। उसकी तरफ तवज्जो तक न दी। फिर हजरत ने मेहतर से कहा कि वह नजास्त लाए। वह नजास्त लाई गई। हजरत उस मुरीद से फरमाए बांदी तो वही है उसमें से सिर्फ नजास्त कम हो गई है अब तुम को उस बांदी से मोहब्बत न रही।

मालूम हुआ कि तुम्हारा महबूब बांदी नहीं थी यह नजास्त थी। कैसे अफसोस की बात है कि तुम हकीकी को छोड़कर इस नजास्त से दिल लगाए थे। मुरीद ने एक चीख मारी और तौबा की।

ऐसी ही तदबीरों से अल्लाह तआला भी अपने बंदो को अपनी तरफ बुलाता है। आप को रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का ताबेदार बनाना अल्लाह तआला को मंजूर है, ताबेदारी बार हो रही है इसलिए ऐसे तरीके से आप को हजरत के ताबेदारी करने का हुक्म देता है कि ताबेदारी बार न हो। इसकी ऐसी मिसाल है कि कोई मेहमान आ रहा हो और करीने से यह मालूम हो कि उस मेहमान का आना मेजबान को बोझ है तो कहते हैं तुम को खबर भी है कि तुम्हारे पास कौन आ रहा है? तुम्हारे यहां वह शख्स आ रहा है जो तुम को हमेशा रूपया भेजा था और वह बड़ी शान वाला है, तुम्हारे मुकद्दर अच्छे जो वह आ रहा है वरना वह क्या आता और तुम उस पर आशिक भी तो हो, इससे सुनने वालो को बेअख्तियार मोहब्बत और ताबेदारी का शौक पैदा होता है।

ऐसा ही अल्लाह तआला रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के तशरीफ लाने की खुशखबरी देता है और हजरत के ऐसे अवसाफ बयान फरमाता है जिससे बेअतिख्यार आप को हजरत से मोहब्बत पैदा हो जाए और आप हजरत के ताबेदार बनें। अल्लाह तआला को इसका हक हासिल था कि आप को आप की राय पर और अक्ल पर छोड़ देते और फिर गलतियों पर मवाखजा फरमाते।

आप का और हमारा यह मुशाहिदा है कि दुनिया में नौकरों से कहा जाता है कि हमारे इशारों पर चलो। अगर नौकरो से इसके खिलाफ हो जाता है तो बाजपुर्स करते हैं कि तुमने हमारे इशारों को क्यों नहीं समझा। बावजूद एक छोटे मुआवजे के जब हमको यह हक है तो क्या अल्लाह तआला को यह हक न था कि हमको हमारे अक्ल पर छोड़ देते और गुनाहों पर मवाखजा करते।

अगर ऐसा करते तो कैसी सख्त मुसीबत होती इसलिए हमारी अक्ल अल्लाह तआला के मर्जियात व नामर्जियात को मालूम करने के लिए काफी नहीं है। अल्लाह तआला का कितना बड़ा एहसान है कि बजाए अक्ल पर छोड़ने के तमाम एहकाम साफ-साफ बयान फरमाया। एक वक्त नहीं, दो-दो, तीन-तीन बार बयान फरमाया। बयान भी इस तौर से नहीं फरमाया कि कोई पर्चा भेज देते कि उसके पढ़ने और समझने और अमल करने में दिक्कत होती बल्कि अजीब फितरत के मुवाफिक तरीका अख्तियार किया। अपनी मर्जी की बातें मालूम करने एक मुकद्दस जात को नमूना बनाकर भेजा।

अल्लाह तआला को हमसे किस कदर मोहब्बत है कि उस नमूने को रहमते आलम बनाकर भेजा। ऐ पैरवी करने वालो! बगैर इस वास्ते के तुम सैकड़ों ठोकरें खाते, अब आंख मूंदकर उस नमूने के मुवाफिक चलो और खुदा तक पहुंच जाओ। इंसानी तबीयत का कहां तक लिहाज किया गया है कि इंसान बगैर नमूना के कमाल हासिल नहीं कर सकता।

इंसान और जानवर में यही फर्क है कि जानवर को कमाल हासिल करने के लिए नमूने की जरूरत नहीं। यही वजह है कि मछली का बच्चा पैदा होते ही तैरने लगता है। बखिलाफ इसके एक बड़े से बड़े तैराक का बच्चा तैराक न होगा जब तक न सिखाया जाए और नमूना न दिखाया जाए।

यही वजह है कि किताबों की तालीम से इतना नफा नहीं होता जितना किसी कामिल की सोहबत से होता है। इसी वास्ते नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को नमूना बनाकर भेजा गया। बाज ने हजरत को अपनी आंखों से देखा और बाज ने हजरत की सीरत को देखा।

सीरत का देखना भी बईना हजरत को देखना है। इस नमूने की मौजूदगी में अब हम किस आसानी के साथ अल्लाह तआला की मर्जियात पर चल सकते हैं, गौर कीजिए कि हम पर अल्लाह तआला की क्या इनायत और क्या मोहब्बत है। बावजूद आसानी के फिर भी अगर कोई कम नसीब ताबेदारी न करे तो किस कदर सख्त बाजपुर्स होगी।

हुक्म होगा-अरे जालिम हमारी इतनी आसानी की तूने कुछ कदर न की और इस नमूने के मवाफिक बन कर न आया। इसकी मिसाल ऐसी है जैसे कि हम किसी दर्जी को शेरवानी का कपड़ा दें और नमूने के लिए अपने जिस्म की शेरवानी भी दे और कहें कि इस नमूने के मवाफिक काट और सिलाई रहे।

शेरवानी तैयार हो जाने के बाद नमूने के मवाफिक न रहे, उसमें फर्क आ जाए तो आप दर्जी पर किस कदर खफा होगे। आप की खफगी पर अगर दर्जी कहे कि शेरवानी में सब कुछ तो बराबर है, सिर्फ छाता थोड़ा ढीला हो गया है और आस्तीन छोटे हो गए हैं।

आप कहेंगे कि अरे कमबख्त तूने तो मेरा पूरा कपड़ा खराब कर दिया। गरज कि जो बरताव आप दर्जी से करेंगे वही बरताव अल्लाह तआला से पाने के लिए तैयार हो जाइए। इस मंजर को पेशेनजर रखिए कि जब आप अल्लाह तआला के सामने खड़ें होंगे और नमूना-ए-नबवी के मवाफिक न उतरेंगे।

ख्याल कीजिए कि उस वक्त अल्लाह किस कदर गजबनाक होगा। इसलिए अल्लाह तआला फरमाता है-‘‘बिल्कुल इस नमूने के जैसे बन जाओ।’’ (एहजाब-3) नमाज ऐसी हो जैसी नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की थी। रोजा भी वैसा ही हो जैसा कि हजरत का था। अलगरज हर चीज उसी तर्ज की हो जैसी नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की तर्ज थी।

कब्र में हजरत रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को या हजरत की तस्वीर को इसलिए दिखाया जाता है कि देखो यह नमूना है जरा अपने को इस नमूने से मिलाकर इंसाफ करो कि क्या तुम इस नमूने के मवाफिक हो, बस इस पर कब्र का तसफीया है अगर नमूने के मवाफिक है तो आराम व चैन है अगर नमूने के मवाफिक न उतरे तो अजाब ही अजाब है।

सहाबा ने नमूने के मवाफिक होकर दिखाया। एक बार नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) कटोरे में से कद्दू के टुकड़े तलाश करके नोश फरमा रहे थे। एक सहाबी ने जब हजरत के इस अमल को देखा तो इसके बाद से खुद भी कटोरे से कद्दू के टुकड़े तलाश करके खाने लगे।

वही सहाबी फरमाते है इस वाक्ये के बाद से मुझे कद्दू से मोहब्बत हो गई। यह वही नमूना है और यह वही नूर है जो सब कायनात से पहले पैदा हुआ था। आलमे अरवाह में इस नूर की तर्बियत हो रही थी। आखिर जमाने में उस जात की खुशनसीबी है जिस्म में जलवा गर हो कर तमाम आलम को मुनव्वर करने के लिए रसूल बनकर आ गया। उस हादी की ताबेदारी आसान होती है जिसके हम पर एहसान हो और उससे मोहब्बत हो और वह अजमत व शान वाला हो। इसलिए अल्लाह तआला नबी की ऐसी सिफते बयान फरमाता है जिससे यह तीनों बाते साबित हों।

बशुक्रिया: जदीद मरकज़