नबी करीम (स०अ०व०) की उम्मत को मुख्तलिफ नसीहतें

हजरत अबू हुरैरा (रजि0) से रिवायत है कि नबी करीम (स०अ०व०) ने इरशाद फरमाया- सात तबाहकुन गुनाहों से बचो। सहाबा (रजि0) ने दरयाफ्त फरमाया वह सात गुनाह कौन से हैं?

आप (स०अ०व०) ने फरमाया- शिर्क (इबादत, सिफात या फेअल मे किसी को शरीक करना) जादू करना, नाहक किसी को कत्ल करना, सूद खाना, यतीम का माल खाना, जान बचाने के लिए जेहाद में लश्करे इस्लाम का साथ छोड़कर भाग जाना और पाक दामन भोली-भाली बंदियों पर जिना का तोहमत लगाना। (बुखारी, मुस्लिम)

सात खुशनसीब अफराद:- नबी करीम (स०अ०व०) का इरशाद है- सात आदमी ऐसे हैं जिन्हें अल्लाह तआला कयामत के दिन अपनी रहमत के साये में ले लेगा जिस दिन उसके साये के बगैर कोई साया न होगा।

वह है- आदिल बादशाह यानी हाकिम, वह नौजवान जो अपने रब की इबादत (मोहब्बत) में जवान हुआ हो, वह आदमी जिसका दिल मस्जिद में अटका हुआ हो, वह दो आदमी जो खालिस अल्लाह की मोहब्बत में आपस मे जमा हुए हो कोई दुनियावी गरज एक दूसरे से वाबस्ता न हो, वह शख्स जिसे हसब व नसब व जमाल वाली औरत बुलाए और वह कहे कि मैं अल्लाह से डरता हूं, वह जो छुपकर सदका दे यहां तक कि जो दाएं हाथ से दिया तो बाएं हाथ को इसकी खबर न हो और जो तिहाई रात में अल्लाह तआला को याद करे और उसकी आंखों से आंसू बह निकलें।

जुमा के दिन सात अफजल आमाल:- हजरत औस बिन औस (रजि0) कहते हैं कि नबी करीम (स०अ०व०) ने इरशाद फरमाया- जो शख्स जुमा के दिन इन सात आमाल को बजा लाए उसे हर हर कदम पर एक साल के नफिली रोजे और रात को इबादत करने का सवाब मिलेगा, वह सात आमाल यह हैं – गुस्ल करना, अच्छे और साफ सुथरे कपड़े पहनना और इत्र लगाना, जुमा के लिए जल्दी जाना, मस्जिद की तरफ पैदल जाना, इमाम के करीब यानी पहली सफ में बैठना, खुतबा गौर से (खामोशी के साथ) सुनना और खुतबे के दौरान कोई फुजूल व बेहूदा काम या गुफ्तगू न करना। (तिरमिजी व अबू दाऊद)

मशहूर मुहद्दिस मुल्ला अली कारी (रह0) इस हदीस के सिलसिले में फरमाते हैं कि बाज इमामे हदीस ने फरमाया कि हम ने शरीअते इस्लामी में ऐसी फजीलत वाली हदीस नहीं सुनी, इन सात आमाल को करना कोई मुश्किल काम नहीं बल्कि बहुत आसान है लेकिन इसका अज्र व सवाब बहुत ज्यादा है।

इसके अलावा जो शख्स जुमा के दिन सूरा कहफ पढ़ेगा उसके लिए अर्श के नीचे से आसमान के बराबर बुलंद एक नूर जाहिर होगा जो कयामत के अंधेरे में उसके काम आएगा और उसके उस जुमे से पहले और जुमे के बाद तमाम गुनाह (सगीरा) माफ हो जाएंगे और जो जुमा के दिन कसरत से दरूद शरीफ पढ़े फरिश्ते उसे नबी करीम (स०अ०व०) के हुजूर पेश करते हैं।

एक मौके पर सात नसीहतें:- हजरत अबू जर गफ्फारी (रजि0) ने नबी करीम (स०अ०व०) से अर्ज किया कि मुझे कुछ नसीहत की बातें इरशाद फरमाएं तो आप (स०अ०व०) ने उन्हे सात नसीहतें फरमाईं- हमेशा तकवा से रहो यानी अल्लाह तआला से डरते रहो, रोजाना कुरआने मजीद की तिलावत करते रहो, हर वक्त अल्लाह तआला का जिक्र करते रहो, खामोश रहा करो अच्छी व नेक बातें कहो वरना खामोश रहो शैतान खामोश आदमी से जल जाता है ज्यादा गुफ्तगू से दिल का नूर जाता रहता है, ज्यादा न हंसा करो, कहकहा मार कर न हंसो इससे चेहरे का नूर जाता रहता है, हमेशा अपनी बुराइयों और कोताहियों पर नजर रखो दूसरों की बुराइयों व कोताहियों पर नहीं, अल्लाह तआला से हमेशा गुनाहों से माफी मांगते रहो।

सात अजीम नेकियां:- किसी बुजुर्ग का कौल है कि जो सात बातों का एहतमाम करेगा वह अल्लाह तआला के नजदीक शरीफ होगा और उसके गुनाह माफ किए जाएंगे चाहे वह समुन्दर के झाग के बराबर ही क्यों न हो, इसकी जिंदगी व मौत बेहतर होगी, वह सात बातें यह हैं – हर काम से पहले बिस्मिल्लाह पढ़ना, हर काम से फारिग होकर अलहम्दुलिल्लाह कहना, बेकार काम या गुनाह के बाद अस्तग फिरूल्लाह कहना, आइंदा के लिए कोई बात कहे तो उसके साथ इंशाअल्लाह कहना, किसी नागवार बात पर लाहौल वला कुवत इल्ला बिल्लाह पढ़ना, किसी की मौत या तकलीफ व मुसीबत पर इन्नल्लाहि व इन्नाइलैहि राजेऊन पढ़ना, हर वक्त कलमा तैयबा को दोहराते रहना यानी दिल व जबान से अल्लाह तआला का जिक्र करना।

कयामत बड़ी खौफनाक और कड़वी चीज है:- हजरत शदाद बिन औस (रजि0) फरमाते हैं कि नबी करीम (स०अ०व०) ने इरशाद फरमाया – अक्लमंद वह है जो अपने आप का मुहासिबा करे और मौत के बाद (आने वाले हालात) की तैयारी करे और आजिज वह है जो खुद ख्वाहिशात के पीछे लगा रहे और अल्लाह तआला से उम्मीदें बांद्दे रखे। (मसनद अहमद, तिरमिजी)

हजरत इब्ने अब्बास (रजि0) फरमाते हैं कि नबी करीम (स०अ०व०) ने इरशाद फरमाया- आज का दिन बाजी (मुकाबला) का है और कल का दिन मुसाबकत का है और इंतिहा जन्नत है और दोजख में जाने वाला हलाक होने वाला है।

हजरत अबू बक्र (रजि0) की एक अहम वसीयत:- हजरत अब्दुल्लाह बिन हकीम (रजि०) फरमाते हैं कि हजरत अबू बक्र सिद्दीक (रजि0) ने खिताब फरमाते हुए फरमाया – मैं तुम को अल्लाह तआला से डरने की वसीयत करता हूं इससे पहले कि तुम्हारी जिंदगी की मुद्दत पूरी हो, इस मोहलत को गनीमत जानो और (नेक आमाल में) एक दूसरे से आगे बढ़ो, फिर अल्लाह तआला तुम्हें तुम्हारे आमाले बद की तरफ लौटाएगा, बाज लोगों ने अपनी मुकर्ररा मुद्दत को दूसरों के लिए वक्फ कर दिया और अपने आप को भूल गए। इसलिए उसने तुम को मना किया है कि तुम उनकी तरह न बनो, जल्दी करो निजात की राह ढूंढों, बेशक तुम्हारे पीछे एक ढूंढने वाला लगा हुआ है जो बड़ा तेज रफ्तार है।

हजरत साबित बिन अल हुज्जाज फरमाते हैं कि हजरत उमर फारूक (रजि0) ने फरमाया- अपने आप का मुबाहिसा करो इससे पहले कि तुम्हारा मुहासिबा किया जाए और अपने आप का वजन करो इससे पहले कि तुम्हारा वजन किया जाए क्योंकि यह चीज कल को हिसाब व किताब में तुम्हारे लिए आसान होगी कि तुम अपना आज ही मुहासिबा कर लो और बड़ी पेशी के लिए अपने आप को संवार लो।

हजरत मालिक बिन अल हारिस (रजि0) फरमाते हैं कि हजरत उमर (रजि0) ने फरमाया कि हर काम में आहिस्तगी और मियानारवी इख्तियार करना बेहतर है अलबत्ता आखिरत के काम इससे अलग है। (मौलाना डाक्टर हकीम मोहम्मद इदरीस)

———-‍‍‍‍बशुक्रिया: जदीद मरकज़