भाजपा में नरेंद्र मोदी को वज़ीर ए आज़म का उम्मीदवार बनाने की मांग भले ही तेज हो रही हो, लेकिन उनके लिए गुजरात से दिल्ली की डगर आसान नहीं है। एक तो एनडीए का दूसरा बड़ा दल जदयू मोदी की राह में सबसे बड़ा रोड़ा बना है, दूसरे खुद बीजेपी के अंदरून दिल्ली में जमे दिग्गज साथ देने को तैयार नहीं हैं।
खासतौर पर बीजेपी के सीनीयर नेता लालकृष्ण आडवाणी पार्टी सदर के तौर पर नितिन गडकरी की दोबारा ताजपोशी रुकवाकर साबित कर चुके हैं कि वह अब भी सबसे ताकतवर हैं। वैसे भी गुजरात में हैट्रिक बनाने के बाद मोदी को पीएम उम्मीदवार बनाने की मांग कारकुनो के बीच से उठ रही है, जबकि पार्टी के ज्यादातर लीडर इस मुद्दे पर खामोश हैं। अभी तक मोदी को सिर्फ इंतेखाबी मुहिम कमेटी की कमान सौंपने की बात हो रही है।
एक-दो जो लीडर सामने आए भी हैं, उनके बारे में पार्टी मान रही है कि वे अपने नंबर बढ़ाने के लिए ही यह मांग कर रहे हैं। आइंदा लोकसभा इलेक्शन में मोदी को बड़ा किरदार देने को लेकर पार्टी की सर्वोच्च नीति निर्धारक संस्था संसदीय बोर्ड को फैसला करना है, जबकि इस बोर्ड में अब भी आडवाणी, राजनाथ सिंह, सुषमा स्वराज व अरुण जेटली से लेकर डा. मुरली मनोहर जोशी नेता ही शामिल होंगे, जो खुद भी पीएम के उम्मीदवार की लाइन में हैं।
इसके साथ ही एनडीए में भी मोदी को लेकर एक राय नहीं है। सिर्फ शिरोमणि अकाली दल ही मोदी के नाम पर सहमत है। शिवसेना की पसंद सुषमा है, जबकि जदयू तो मोदी के सख्त खिलाफ है। मोदी का नाम ऐलान होने पर जदयू के एनडीए से अलग होने की अटकलें लगाई जा रही हैं।
हालांकि बीजेपी में मोदी हामी लीडरों की दलील है कि अगर बीजेपी अकेले दम पर 150 से ज्यादा सीटें जीत लेती हैं, तो इलेक्शन के बाद इत्तेहाद में और भी दल/ पार्टी जुड़ जाएंगे। जबकि इत्तेहाद के हामी कहते रहे हैं कि लोकसभा की 553 सीटों में से तकरीबन 200 पर पार्टी कहीं भी नहीं है। जबकि बाकी बची 353 सीटों में से 150 जीत पाना आसान नहीं हैं। इसलिए एनडीए का कुनबा बढ़ाने की वकालत होती रही है।