लाहौर.2 मई: ज़िंदगी और मौत से जूझ रहे हिन्दुस्तानी शहरी सरबजीत सिंह बिलआख़िर मौत से हार गए, ये मालूमात मैडीकल बोर्ड के सरबराह ने दी। अस्पताल के डाँक्टरों के मुताबिक़ उनकी मौत चायशंबे को देर रात एक बजे [पाकिस्तान के वक़्त के मुताबिक़] जिन्ना अस्पताल में हुई। पिछ्ले 6 दिनों से लाहौर के कोट लखपत जेल में छः क़ैदीयों के जान लेवा हमले में इंतिहाई शदीद ज़ख़मी हुए हिन्दुस्तानी शहरी सरबजीत सिंह जिनाह अस्पताल में ज़िंदगी और मौत से जूझ रहे थे। सरबजीत के ख़ानदान ने उन्हें शहीद क़रार देने की कोशिश की है।
इस से पहले, लाहौर के जिनाह अस्पताल में ज़िंदगी और मौत के बीच जूझ रहे हिन्दुस्तानी क़ैदी सरबजीत से मिलने गया इन का ख़ानदान हालत में बेहतरी ना होते देख चारशंबे को मायूस हो कर वतन वापिस लोट आया। पाकिस्तान से वापिस आने के बाद अटारी सड़क सरहद पर उनकी बहन दलबीर कौर के सब्र का बांध टूट गया।
उन्होंने भाई के ईलाज में लापरवाही पर पाकिस्तान को तो कोसा ही, ढुलमुल पालिसी के लिए वज़ीर-ए-आज़म मनमोहन सिंह समेत मर्कज़ी हुकूमत को भी जम कर खरी – खोटी सुनाई. उन्होंने इल्ज़ाम लगाया कि सरबजीत पर दोनों ममालिक ने मिल कर हमला करवाया है।
हालात की मारी दलबीर ने कहा, हुकूमत ने सरबजीत को हिन्दुस्तान लाने के लिए कोई ठोस क़दम नहीं उठाए हैं। मनमोहन सिंह अपने ही शहरी की हिफ़ाज़त करने में नाकाम रहे हैं। उन्हें अपनी कुर्सी छोड़ देनी चाहिए। हुकूमत ने सरबजीत के मामले पर ख़ानदान से नहीं, पूरे मुल्क के साथ धोका किया है।हम से कहा गया था कि मीडीया के पास ना जाएं। ज़रदारी आए तो चिशती को लेकर चले गए, लेकिन मनमोहन सरबजीत को नहीं ला पाए।
जब मलाला ईलाज के लिए बैरून-ए-मुल्क जा सकती है तो मेरा भाई क्यों नहीं? दुखी और ग़ुस्से दलबीर ने यहां तक कह दिया कि आख़िर वो किस के सामने रोएं, वज़ीर-ए-आज़म की कुर्सी पर भी तो मिट्टी का खिलौना बैठा हुआ है. वो इस के आगे दुआ ही कर सकती हैं। सरबजीत की बीवी सुखप्रीत कौर ने कहा, में कितनी बदनसीब हूँ कि शौहर से मिली भी तो वो ज़िंदगी और मौत के बीच जूझ रहे थे। उनके साथ कोई बात नहीं कर पाई।
बेटियां स्वपनदीप और पूनम उन्हें देख कर रोने लगी थीं। दूसरी तरफ़, दलबीर कौर पूरे ख़ानदान के साथ देर रात नई दिल्ली पहुंच गई। वो यहां आख़िरी बार मनमोहन, सोनीया, सलमान ख़ुरशीद और सुशील कुमार शिंदे से मुलाक़ात कर सरबजीत को वापिस लाने का मुतालिबा करेंगी।
अगर मर्कज़ी हुकूमत ने सरबजीत को बचाने के लिए कोई कोशिश ना किए तो वो अटारी सड़क सरहद पर ट्रकों के आगे लेट जाएंगी. समझौता ऐक्सप्रैस की पटरियों पर बैठ जाएंगी. उनके वतन वापिस आने के बाद पाकिस्तान की हुकूमत सरबजीत को मारने की साज़िश रच सकता है. वो तीन दिन तक लाहौर रहें. इस दौरान वो सिर्फ़ पाँच बार ही अपने भाई से मिल पाई।