नीलोफ़र हॉस्पिटल में तिमारदारों का कोई पुर्साने हाल नहीं

यूं तो हर इंसान की ख़ाहिश होती हैके वो कभी बीमार ना पड़े और ना ही उसे डाक्टरों या हॉस्पिटल्स के चक्कर लगाने का कोई शौक़ होता है लेकिन क्या किया जाये।

इंसानों के साथ बीमारीयां तो लगी रहती हैं जिन के ईलाज के लिए मुख़्तलिफ़ हॉस्पिटल्स मौजूद हैं। शहरे हैदराबाद का एक क़दीम नीलोफ़र हॉस्पिटल है जहां बच्चों के ईलाज के लिए ख़ुसूसी तवज्जा दी जाती है।

भला हो मेडिकल प्रोफ़ैशन का कि जब से ईलाज-ओ-मुआलिजा को तिजारत बनाया गया है, उस वक़्त से मरीज़ों की तरफ से डाक्टरों ने भी तवज्जा दीनी छोड़ दी है। एक ज़माना था कि हॉस्पिटल्स की नर्सेस औरदुसरे अटेंडरस मरीज़ की हर तरह से तीमारदारी किया करते थे लेकिन जब तीमारदारी का जज़बा आहिस्ता आहिस्ता ख़त्म होगया तो हर मरीज़ की देख भाल के लिए इस के किसी रिश्तेदार को बतौर अटेंडर हॉस्पिटल में रहने की इजाज़त दी जाने लगी लेकिन अब आलम ये हैके मरीज़ तो मरीज़ अटेंडरस का भी कोई पुर्साने हाल नहीं।

नुमाइंदा ख़ुसूसी ने रात एक बजे नीलोफ़र हॉस्पिटल का दौरा किया और ये देख कर हैरान रह गया कि सैंकड़ों अटेंडरस जो अपने रिश्तेदारों के ज़ेर-ए-इलाज रहने की वजह से वहां रहने पर मजबूर हैं, उनके सोने के लिए कोई मुनासिब मुक़ाम नहीं है और वो खुले आसमान के नीचे शदीद सर्दी में सिर्फ़ एक ब्लैंकेट के सहारे रात गुज़ारने पर मजबूर हैं।

यहां पर शब बसरी करने वाले अफ़राद मुक़ामी भी हैं और अज़ला से भी इन का ताल्लुक़ है जिन के मासूम बच्चे हॉस्पिटल में ज़ेर-ए-इलाज हैं और उनकी तीमारदारी और दिलजोई के लिए उन्हें भी हॉस्पिटल में रहते हुए सऊबतों का सामना करना पड़ रहा है।

ज़्यादा हैरत की बात ये थी कि सोने उनके सरों पर कोई साइबान नहीं था। ये कोई नई बात नहीं बल्कि 2011 में भी उस वक़्त की हुकूमत की तवज्जा इस तरफ मबज़ूल करवाई गईं। हुकूमतें बदलती गईं लेकिन इन अटेंडरस के हालात में कोई तबदीली वाक़्ये नहीं हुई। सर्दी में ठिठुर कर शब बसरी करना कोई मामूली बात नहीं। शबनम गिरने से उनकी ब्लैंकेट भी गीली होजाती हैं।

तेलंगाना की हुकूमत ने नीलोफ़र हॉस्पिटल के लिए बजट में 30 करोड़ रुपये मुख़तस किए हैं। अब देखना ये हैके इस फ़ंड का इस्तेमाल कैसे और कब होताहै। जब नुमाइंदा ने मरीज़ों के लवाहिक़ीन में मौजूद एक ख़ातून से बात की तो इस ने बताया कि खुले आसमान तले शब बसरी करना इतना मुश्किल नहीं जितना रफ़ा हाजत के लिए मुनासिब मुक़ाम तलाश करना। वहां मौजूद लोग खुले आसमान तले ही जरूरतों की तकमील कररहे हैं। रही बात नाशतादान और दुसरे खानों की तो वो लोग आस पास मौजूद मुख़्तलिफ़ ठेलों और सस्ती होटलों से अश्या-ए-ख़ुर्दनी ख़रीद कर अपनी ज़रूरत पूरी कररहे हैं।