१७०० लाख किलों कपास के निर्यात में आ रही देरी के चलते व्यापारियों में काफी असंतोष है| नोटबंदी के निर्णय के बाद से व्यापारियों के पास किसानों को देने के लिए नकद राशि उपलब्ध नहीं है, जिसके कारण वह किसानों से कपास ख़रीद नहीं पा रहे है| गौरतलब है की सालों से किसान नकद राशि ही लेते आए है|
इस वजह से कपास सप्लाई में भारी कमी है जिसके चलते भारत में कपास के दाम अंतरराष्ट्रीय बाज़ार से भी ऊपर चले गए है और अब सम्भावना यह जताई जा रही है की अंतरष्ट्रीय बाज़ार के खरीदार कपास की खरीद के लिए भारत को छोड़ अमेरिका, ब्राज़ील और अफ्रीकी देशो का रुख कर सकतें हैं|
“माल की सप्लाई बहुत सिमित है|किसान अभी कपास नहीं बेच रहे है क्योंकि उन्हें नकद भुकतान चाहिए जो अभी हमारे पास मौजूद नहीं है,” भारतीय निर्यातक जयदीप कपास फाइबर के मुख्य कार्यकारी अधिकारी ‘चिराग पटेल’ ने बताया|
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने ५०० और १००० के नोटों को कालाबाज़ारी के नाम पैर बंद किया था| लेकिन इस निर्णय से कपास और सोयाबीन जैसी वस्तुओ के व्यापर को बड़ी मार पड़ी है क्योंकि किसान केवल नकद राशि ही मांग रहा है|
-१७०० लाख किलों कपास के निर्यात में देरी आ रही है
-किसान चेक लेने को बिलकुल भी तैयार नहीं है और व्यापारी के पास नकदी नहीं है
-आयातकर्ता अमेरिका ब्राज़ील और अफ्रीका का रुख कर सकते हैं
नवम्बर के महीने में सबसे ज्यादा सप्लाई हुई थी परंतु अब यह बिलकुल बंद हो गई है|
व्यापारियों ने इस उम्मीद में की इस साल पैदावार ५९५०० लाख किलों का अकड़ा पार कर जाएगी,३४० लाख किलों के ठेके चीन, बांग्लादेश, वियतनाम, बांग्लादेश और पाकिस्तान से उठा लिए, जो इन देशो में नवम्बर से जनवरी के बीच निर्यात करने है| परंतु यह लोग अभी केवल ५१० लाख किलों कपास ही निर्यात कर पाए है, अभी करीब १० लाख किलों कपास के निर्यात में देरी हो रही है, जो नवम्बर और दिसम्बर के महीने में जाना था| तीन निर्यातकों ने रायटर्स को बताया|
गौरतलब है की न्यू यॉर्क में अमेरिकी कपास की कीमत पौंड के मुकाबले ७२.७५ प्रतिशत हो गयी है, जो अगस्त के बाद से सबसे बेहतरीन अकड़ा है| १५ दिन में इसकी ५% बढ़ोतरी हुई है जो भारतीय बाजार के हिसाब से यह १०% के बराबर है|