कोलकाता। भारत में नोटबंदी के फैसले से डिजिटल वालेट कंपनियों की बल्ले-बल्ले हो गई है। ऐसी तमाम कंपनियां अखबारों में रोजाना बड़े-बड़े विज्ञापन छपवाकर आम लोगों और खुदरा विक्रेताओं से ई-वालेट का इस्तेमाल करने की अपील कर रही हैं।
भारत में डिजिटल वालेट वाली तमाम कंपनियां अखबारों में रोजाना विज्ञापन छपवाकर सबसे ई-वालेट का इस्तेमाल करने के लिए प्रोत्साहित कर रही हैं। बीजेपी सरकार भी नकदी संकट से निपटने के लिए इन कंपनियों को बढ़ावा दे रही है। बीते आठ दिनों में लोगों ने भारी तादाद में इन कंपनियों के पेमेंट ऐप डाउनलोड किए हैं।
ऐसी तमाम कंपनियों का कारोबार 500 और 1,000 रूपये के नोटों के बंद होने की घोषणा के बाद से तेजी से बढ़ा है। मिसाल के तौर पर गूगल प्लेस्टोर पर ऑनलाइन पेमेंट कंपनी पेटीएम के ऐप का डाउनलोड पांच करोड़ का आंकड़ा पार कर गया है।
यह रिकार्ड आठ से 14 नवंबर के बीच बना। फिलहाल देश में साढ़े सात करोड़ लोग लेन-देन के लिए पेटीएम का इस्तेमाल कर रहे हैं। पहले उपभोक्ता सप्ताह में पेटीएम के जरिए औसतन तीन बार लेन-देन करते थे। अब यह आंकड़ा 18 से 20 तक पहुंच गया है। कंपनी को अब चालू वित्त वर्ष के दौरान अपना लेन-देन बढ़ कर 24 हजार करोड़ रुपये पहुंचने की उम्मीद है।
नोटबंदी के फैसले के अगले दिन ही इस कंपनी ने तमाम अखबारों में अपने कई पन्ने के विज्ञापन में आजाद भारत के आर्थिक इतिहास का सबसे साहसिक फैसला लेने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बधाई थी।उसका उक्त विज्ञापन भी विवादों में रहा। इस क्षेत्र में सक्रिय मोबिक्विक, साइट्रस, पेयूमनी और फ्रीचार्ज जैसी दूसरी कंपनियों के कारोबार में भी एक सप्ताह के दौरान बेतहाशा वृद्धि दर्ज की गई है।
उपभोक्ताओं की सहूलियत के लिए मोबिक्विक ने तो बैंक खाते में रकम स्थानांतरित करने पर लगने वाली फीस खत्म कर दी है। पहले इस पर चार फीसदी की दर से सर्विस चार्ज लगता था। कंपनी के सह-संस्थापक विपिन प्रीत सिंह कहते हैं, “नोटबंदी के फैसले के बाद आम लोगों को होने वाली दिक्कतों को ध्यान में रखते हुए हमने बैंक ट्रांसफर पर शून्य फीसदी चार्ज लेने का फैसला किया है।” बीते एक सप्ताह के दौरान कंपनी के कारोबार में 18 गुनी वृद्धि दर्ज की गई है। आम लोग अपने डेबिट क्रेडिट कार्ड या नेट बैंकिग से अपने मोबाइल या डिजिटल वालेट में रकम भर सकते हैं।
हाल में व्यापार संगठन एसोचैम के एक अध्ययन में कहा गया है कि देश में मोबाइल पेमेंट का कारोबार तेजी से बढ़ रहा है और वित्त वर्ष 2021-22 के आखिर तक इसके 153 अरब रूपये तक पहुंचने की संभावना है। इस साल मार्च तक इन तमाम कंपनियों का कुल लेन-देन महज तीन अरब था।
डिजिटल वालेट कंपनियां नकदी संकट के मौजूदा दौर में आम लोगों के साथ-साथ खुदरा दुकानदारों के तारणहार के तौर पर सामने आई हैं। उपभोक्ताओं की सहूलियत के लिए ऐसी तमाम कंपनियां अब खुदरा दुकानदारों के साथ भी हाथ मिला रही हैं। इसके लिए उसने जीरो डाउन पेमेंट जैसी कई योजनाएं पेश की हैं। ऐसे तमाम दुकानदार अब ई-वालेट से भुगतान के लिए अपने नंबर लिख कर सामने रखने लगे हैं. ऐसे एक दुकानदार रमेश जिंदल कहते हैं, “नोटबंदी के बाद तो चार-पांच दिनों तक कारोबार लगभग ठप हो गया था। अब डिजिटल वालेट की सुविधा मिलने की वजह से ग्राहक मेरी दुकान पर लौटने लगे।
हालात यह है कि अब खाद्यान्न व सब्जी बेचने वालों के साथ चाय दुकान वाले भी पेटीएम से भुगतान लेने लगे हैं। इससे आम लोगों की समस्याएं कुछ हद तक तो कम हुई ही हैं। बाजार में सब्दी खरीदने पहुंची एक गृहिणी सीमा गांगुली कहती हैं, “ई-वालेट ने अब जिंदगी कुछ हद तक आसान कर दी है। हजार व पांच सौ के नोट बंद होने के बाद जीवन दूभर हो गया था।”
अब ज्यादातर डाक्टर भी मोबाइल पेमेंट के जरिए अपनी फीस का भुगतान ले रहे हैं. कोलकाता के एक अस्पताल में हृदय रोग विशेषज्ञ डॉक्टर नरेश कौशिक कहते हैं, “मरीजों के पास फीस देने के लिए नकदी नहीं है। लेकिन इलाज तो रूक नहीं सकता। इसलिए हमने मोबाइल पेमेंट की व्यवस्था शुरू कर दी है ताकि मरीजों व उनके परिजनों को कोई परेशानी नहीं हो।”
इसी तरह सरकारी दुग्ध वितरण केंद्रों में भी डिजिटल पेमेंट की व्यवस्था शुरू हो गई है। मदर डेयरी बूथ के मैनेजर शंकर शर्मा कहते हैं, “लोग पांच सौ के नोट लेकर आते थे। लेकिन उनको खुदरा लौटाना मुश्किल था। अब ई-वालेट ने जिंदगी आसान कर दी है।
लेकिन कई लोग अब भी ई-वालेट को लेकर शंकित हैं। पश्चिम बंगाल के सुदूर ग्रामीण इलाके में एक किसान नरेन मंडल कहते हैं, “मेरे गांव के कई लोग पेटीएम का इस्तेमाल कर रहे हैं.लेकिन मुझे कुछ डर लगता है। अगर मेरे पैसे कट गए और दुकानदार को पैसे नहीं मिले तो क्या होगा ? बैंक की तरह इस लेन-देन की गारंटी क्या सरकार देगी?” उनकी तरह कई और लोग भी हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि ई-वालेट कंपनियों के कारोबार में बेतहाशा वृद्धि को ध्यान में रखते हुए सरकार को ऐसी कंपनियों के लेन-देन पर निगरानी का एक तंत्र विकसित करना चाहिए ताकि उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा की जा सके। ऐसी किसी ठोस व्यवस्था के बाद इस प्रणाली पर आम लोगों का भरोसा बढ़ेगा और ज्यादा लोग कैशलेस यानी नकदीविहीन लेन-देन के लिए प्रोत्साहित होंगे।