नोटबंदी से परेशान मज़दूर गुरुद्वारों और मन्दिरों में खाना खाने पर हुए मजबूर

गुडगाँव का 35 वर्षीय विजेंद्र कुमार प्रतिदिन वेतन प्राप्त मज़दूर है, जबसे केंद्र सरकार ने 500,1000 के नोटों पर प्रतिबंध लगाया है तबसे वो बेरोज़गार है। कुमार के तीन बच्चे है और कुमार पिछले सात दिन से गुडगाँव के सीधेश्वर मंदिर जो की मज़दूर चौक नाम से मशहूर है वहां पर रहता है। बाकी अनगिनत मज़दूरों की तरह कुमार भी सुबह 8 बजे काम की तलाश में दिल में एक उम्मीद लिए चौक पर आता है और कुछ पैसे लिए निराश हो कर वापस लौट जाता है।
कुमार मज़दूरों के एक समूह में खड़े हो कर बताता है कि मैं पहले भी यहां हफ्ते में सात दिन आता था और सात दिन में से चार दिन काम मिल जाता था लेकिन पिछले सप्ताह से मैं कुछ नहीं कमा पाया हूं। उसकी सहमति में बाकि सभी मज़दूर भी गर्दन हिला देते हैं। मज़दूर चौक पर काम करने वाले मज़दूरों ने बताया कि 500,1000 के नोट अब रद्दी हो चुके है लेकिन फिर भी बहुत से कॉन्ट्रैक्टर्स मज़दूरों को लेने आते हैं तो उन नोटों को ठिकाने लगाने के लिए हमे वही नोट वेतन के तौर पर देते हैं।
दूसरे मज़दूर अमित कुमार ने बताया कि पहले हमें 500 के नोटों में वेतन दिया जाता था पर अब उनका कोई काम नहीं है लेकिन अभी भी बहुत से लोग हमसे पुरे दिन काम कराते है और फिर हमें वही पुराने नोट थमा देते है हम में से बहुत से मज़दूरों के बैंक में खाते भी नहीं है और आईडी प्रूफ भी नहीं है इस कारण हम लोग नॉट बदल भी नहीं पाते हैं। ठाकुर का कहना है कि हम अपना समय कतारों में खड़े हो कर व्यतीत नहीं कर सकते हैं, अगर हम बैंको की कतारों में खड़े होंगे तो हमारे परिवार के लिए पैसे कौन कमायेगा। कुछ मज़दूरों का कहना है कि पिछले सप्ताह वो लोग पैसे बदलने के लिए बैंको की कतारों में खड़े हुए थे लेकिन बैंक में पैसे ना होने का कारण उन लोगों को पैसे नहीं मिल पाए थे।
लेबर चौक पर खड़े एक व्यक्ति ने बताया कि पहले 50 मज़दूरों में से 30 को काम मिल जाया करता था लेकिन नोटबंदी के कारण अब 10-15 मज़दूरों को ही सिर्फ काम मिल पाता है। मज़दूरों के समूह में से हामिद ने बताया कि हम लोग पैसे ना होने के कारण पिछले कुछ दिनों से मंदिरों और गुरुद्वारों में भोजन करने पर मजबूर है।
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