न हिंदू मरता है न मुसलमान, धमाकों में सिर्फ़ इंसान मरता है

हैदराबाद 27 फरवरी- ‘ ना हिंदू मरता है ना मुसलमान मरता है, धमाकों में सिर्फ़ इंसान मरता है’,,,,,,,, कुछ इसी राह पर चलते हुए हैदराबाद धमाकों के बाद पाशा मुतास्सिरीन के लिए फ़रिश्ता बन कर आए. दहश्तगर्दी को किसी ख़ास मज़हब से जोड़ कर देखने वालों को हैदराबाद के दिलसुख नगर का हादिसा बड़ा सबक़ दे गया।
जब तक सरकारी मशीनरी मौक़ा-ए-वारदात पर नहीं पहुंची, उस वक़्त तक दुबले- पतले और अधेड़ उम्र के मुस्लिम ऑटोरिक्शा ड्राईवर पाशा ज़ख़मीयों के लिए फ़रिश्ता बने रहे।

हाल ही में उन्होंने नया ऑटो रिक्शा लिया है. वो शाम को दिलसुख नगर बस स्टैंड के क़रीब सवारी का इंतिज़ार कर रहे थे. तभी हादिसे की इत्तिला मिली. हादिसे के बाद सब से पहले मौक़ा पर पहुंचने वालों में पाशा थे. मौक़ा पर लाशें और ज़खमियों को तो ख़ुद ज़खमियों को उठाने – सँभालने में लग गए।लोगों की मदद से उस्मानिया हस्पताल ज़खमियों को पहुंचाया।

हस्पताल के कई फेरे लगाए. रात नौ बजे तक वो तीमारदारी में लगे रहे. उस्मानिया अस्पताल में जब उन से बात करने की कोशिश की गई तो दुआ के लिए हाथ उठा दिए. दिलसुख नगर में पहला धमाका सात बजने के कुछ ही देर बाद हुआ. उस वक़्त वेंकट ऑटो पकड़ कर रवाना ही होने वाले थे कि जोरों की आवाज़ हुई. धुएं का गुबार उठा. एक गाड़ी का टूटा टुकड़ा उन के पैर में आ धुसा.।

कुछ समझ पाते, इस से पहले फिर धमाके की आवाज़. वेकट के पांव की हड्डी कई मुक़ामात पर टूट गई. बताते हैं कि हादिसे के पंद्रह मिनट तक कोई मदद नहीं मिली. सौ मीटर के दायरे में सिर्फ़ ख़ून ही ख़ून नज़र आरहा था. पंद्रह मिनट के बाद पुलिस की गाड़ियां, एम्बूलैंस पहुंची।

मौक़े पर चीख़ पुकार मची हुई थी. दिलसुख नगर के क़रीब उस्मानिया और यशोदा हस्पताल हैं. जिसे जहां सहूलत हो रही थी ज़ख़मीयों को पहुंचा रहा था. दिलसुख नगर के आस पास आबाद तक़रीबन सौ कॉलोनियों के लोगों ने ज़खमियों के लिए अपनी गाड़ियां तक दे दीं. (डॉ. चैतन्य सिंह, दिलसुख नगर)