परनब मुकर्जी मसरुफ़ियात के बावजूद डायरी लिखते हैं

वज़ीर फायनेंस परनब मुकर्जी बेइंतिहा (ज़्यादा) मसरूफ़ियात के बावजूद डायरी पाबंदी से लिखा करते हैं। वो दुनिया भर के हालात और अतराफ़-ओ-अकनाफ़ की सूरत-ए-हाल के ताल्लुक़ ( वर्तमान् हालत के संबंध) से अपने तास्सुरात (ख्यालात) रोज़ाना डायरी में कलमबंद करते हैं।

यू पी ए हुकूमत में परनब मुकर्जी को मुश्किलात दूर करने के मुआमला ( मामले) में ख़ुसूसी एहमीयत हासिल है और उन्होंने 80 के दहिय ( दस साल) में डायरी लिखना उस वक़्त तर्क ( शुरू) कर दिया था जब जुनूबी दिल्ली के ग्रेटर कैलाश हाउस में वाक़्य ( मौजूद/स्थित) उन के मकान को सैलाब की वजह से नुक़्सान पहुंचा।

जिस में इन की कई डायरीयां और किताबें सैलाब की नज़र हो गई थीं। परनब मुकर्जी ने साबिक़ वज़ीर-ए‍आज़म ( पूर्व प्रधान मंत्री) पी वी नरसिम्हा राव के इसरार (कहने ) पर 90 के अवाइल (शुरू) में डायरी लिखना फिर शुरू किया। परनब मुकर्जी का उन डायरियों को किताबी शक्ल देने का इरादा नहीं और उन्होंने मौत के बाद इशाअत (प्रकाशन/छापने) की ज़िम्मेदारी अपनी बेटी के तफ़वीज़ (सुपुर्द) की है क्योंकि उन के ख़्याल में मौत के बाद ही इस तरह के हक़ायक़ का इज़हार होना चाहीए |