कोलकाता। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्यों की तीन दिवसीय बैठक इस घोषणा के साथ समाप्त हुई कि समान नागरिक संहिता मुसलमानों के लिए बिल्कुल अस्वीकार्य है. इस बैठक को संबोधित करते हुए किशनगंज के सांसद व मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के सदस्य मौलाना असरारुल हक़ क़ासमी ने कहा कि मुस्लिम पर्सनल ला के बहाने हमारी धार्मिक आज़ादी को खत्म करने की साजिश हो रही है.
उन्होंने आगे कहा कि इस मजलिस में बैठे हुए और पूरे हिंदुस्तान के मुसलमानों की एक ही आवाज़ है वह यह कि हिंदुस्तान के मुसलमान इस बात की हरगिज़ इजाज़त नहीं देंगे कि उन पर कोई दूसरा प्रणाली कोई दूसरी शरीयत और कोई दूसरा क़ानून लागू किया जाए. मौलाना ने आगे कहा कि जो जान मांगो तो जान देंगे जो माल मांगो तो माल देंगे मगर न मुझ से हो सकेगा शरीयत में बदलाव, मुस्लिम पर्सनल ला पे हमारा शरई क़ानूनी और लोकतांत्रिक अधिकार है.
मौलना ने कहा कि शादी का मसला और ट्रिपल तलाक का मसला जो उठाया जा रहा है डर असल यह तो एक बहाना है इस के आड़ में हमें सविंधान में जो धार्मिक अधिकार मिला है उसको खत्म करने की कोशिश की जा रही है, मैं एलान करता हूँ अगर इस आज़ादी को खत्म करने की कोशिश की गई तो इसका प्रभाव सिर्फ मुसलमानों पर नहीं पड़ेगा बल्कि इसका प्रभाव देश के अल्पसंख्यकों पर पड़ेगा दलितों पर पड़ेगा और महा दलितों पर पड़ेगा. यह मामला सिर्फ किसी एक समुदाय का नहीं है किसी एक जाती का नहीं बल्कि यह मामला हिंदुस्तान के गंगा जमनी कल्चर का है.
मुस्लिम पर्सनल ला के सदस्यों ने इस बैठक में इन सब विचारों का भी व्यक्त किया. उन्होंने कहा कि कभी मुसलमानों ने इस देश के लिए जो कुर्बानियां दी हैं, वे सिर्फ इसलिए नहीं कि इस देश में रहने के लिए कुछ गज जमीन मिल जाए और उनके रहने सहने का प्रबंधन हो जाए, बल्कि उन्होंने अपने धार्मिक पहचान और सांस्कृतिक पहचान के साथ इस देश में जीने और मरने का फैसला किया है, यह न केवल मुसलमानों की मांग है, बल्कि यह देश में बसने वाली अन्य अल्पसंख्यकों और आदिवासियों की भी मांग की है, भारत जैसे बहु धार्मिक और बहु सांस्कृतिक देश में समान सहिंता नियम व्यवहार्य नहीं हैं, अगर सरकार ने ऐसा कोई कानून लागू करने की कोशिश की तो विभिन्न वर्गों में स्ट्रीमिंग की भावना पैदा होगा, देशभक्ति की भावनाओं को ठेस पहुंचेगी और यह देश की शांति के लिए खतरनाक होगा।