पश्चिम बंगाल: आलिया यूनिवर्सिटी के उर्दू विभाग के छात्र अपने भविष्य के प्रति चिंतित

कोलकाता: 29 मई 2015 को मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने जब “जश्न इकबाल” समारोह में अल्पसंख्यकों के विकास के लिए स्थापित आलिया विश्वविद्यालय में पहले इकबाल चेयर और बाद में उर्दू विभाग नहीं होने की जानकारी मिलने पर एक महीने में आलिया उर्दू वीभाग स्थापित करने की घोषणा की थी तो उस समय नज़रुल मंच पर मौजूद हजारों उर्दू प्रशंसकों ने मुख्यमंत्री की इस घोषणा का बहुत गर्मजोशी से स्वागत किया था, लेकिन आलिया विश्वविद्यालय में उर्दू विभाग स्थापित होने के दो साल बाद भी पूरा विभाग पार्ट टाइम और गेस्ट टीचरों पर ही निर्भर करता है इस वजह से छात्रों को गंभीर कठिनाइयों का सामना है और उनका भविष्य भी दांव पर है.
यह स्थिति केवल आलिया विश्वविद्यालय उर्दू विभाग की नहीं है, बल्कि एक जमाने में भारत में प्रसिद्ध कलकत्ता विश्वविद्यालय का “उर्दू विभाग” भी संकट से जूझ रहा है. पिछले कई सालों से उर्दू विभाग में केवल एक नियमित शिक्षक है बाकी पार्ट टाइम गेस्ट अध्यापकों से काम चलाया जा रहा है. इस वजह से एम फिल और पीएचडी के उम्मीदवार निराश हैं. क्योंकि इस समय कलकत्ता विश्वविद्यालय में केवल एक सहायक प्रोफेसर हैं जो एक समय में 6 या 7 से जायद छात्रों को पीएचडी नहीं करा सकते हैं.

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मीडिया रिपोर्ट के अनुसार,उर्दू विभाग लिए 11 शिक्षकों के पद सृजित किये गए थे, चूंकि मुख्यमंत्री ने त्वरित उर्दू विभाग की स्थापना का निर्देश दिया था इसलिए अस्थायी तौर पर शहर के विभिन्न कॉलेजों के शिक्षकों व कुछ रिटायर्ड शिक्षक और कुछ पार्ट टाइम शिक्षकों की मदद से उर्दू विभाग में स्नातक और स्नातकोत्तर की शिक्षा शुरू कर दी गई. मगर सवाल यह है क्या दो साल का समय स्थायी संकाय की बहाली के लिए पर्याप्त नहीं है? जबकि इस बीच अन्य विभागों के लिए बड़ी संख्या में शिक्षकों की नियुक्ति की प्रक्रिया अंजाम दिया गया? जब संकाय शिक्षक की बहाली नहीं हुई तो “इकबाल चेयर” की चिंता कौन करेगा?
उर्दू के एक प्रोफेसर ने अपना नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर बताया कि कलकत्ता विश्वविद्यालय और अब आलिया विश्वविद्यालय उर्दू की बदहाली के लिए केवल सरकार और उसके अधिकारियों को दोषी ठहराना न्याय नहीं है बल्कि इसके लिए कुछ हद तक इन विश्वविद्यालयों में उर्दू विभाग पर काबिज प्रोफेसर और विश्वविद्यालय प्रशासन जिम्मेदार है. रिटायर्ड और कई कई जगहों पर एक साथ पढ़ाने वाले नई पीढ़ी को मौका देने के पक्ष में नहीं है.
कलकत्ता विश्वविद्यालय में 2011 से उर्दू विभाग के लिए कई बार विज्ञापन आए मगर आखीर समय में साक्षात्कार रद करा दिया गया है? सवाल यह है कि इसके पीछे कौन हैं इसका पता लगाने की जरूरत है? आलिया विश्वविद्यालय अभी यही स्थिति है. इशतहारात दिए जा चुके हैं, आवेदन भी बड़ी संख्या में इकट्ठा हैं, मगर साक्षात्कार होने दिया जा रहा है?