पिछले कुछ समय में मलेशिया और सऊदी अरब की नजदीकी बढ़ी है. नतीजतन, अब मलेशियाई मानवाधिकार संस्थाएं, सरकार पर सऊदी अरब से प्रभावित होने का आरोप लगा रही है. इनके मुताबिक देश में इस्लामिक ताकतों को प्रोत्साहन मिल रहा है.
हाल के घटनाक्रमों ने इस नजदीकी पर सवाल खड़े किए हैं. मानवाधिकार समूहों की मानें तो मलेशिया में नास्तिकों और समलैंगिक समुदाय को लेकर बैर बढ़ रहा है.
इस्लामी नेताओं के विरोध के चलते मलेशिया में दो बियर फेस्टिवल रद्द कर दिए गए. साथ ही एक कट्टरपंथी उपदेशक जो भारत में नफरत फैलाने के आरोपों को झेल रहा है, उसे भी मलेशिया में आधिकारिक संरक्षण दिया गया है.
मलेशिया में सरकार ने ऐसे संसदीय बिल का समर्थन किया है जो मलेशिया के कलांतन राज्य में मुस्लिमों पर लागू किए जाने वाले शरिया कानूनों का दायरा बढ़ाता हैं.
यूं तो मलेशियाई राजशाही किसी सार्वजनिक मसले पर दखल नहीं देती लेकिन जब धार्मिक अधिकारियों ने केवल मुसलमानों के लिए चलाए जाने वाली लॉन्ड्री की दुकान का समर्थन किया, तो राजशाही ने भी इसे धार्मिक सहिष्णुता कहा.
लेकिन सरकार ऐसा नहीं मानती. सरकार का कहना है कि वह बहु-सांस्कृतिक समाज में संतुलन बनाए रखने वाली नीतियों को प्रोत्साहन दे रहा है.
लेकिन मलेशिया के पूर्व प्रधानमंत्री महाथिर मोहम्मद की बेटी मरीना महाथिर सार्वजनिक रूप से मलेशियाई सरकार पर सऊदी अरब से प्रभावित होने का आरोप लगाती हैं.
साथ ही सरकार के इन कदमों की निंदा भी करती हैं. मरीना देश में एक नागरिक अधिकार समूह की प्रमुख हैं. उन्होंने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से कहा, “देश में इस्लाम का प्रभाव बढ़ रहा है, हमारी पारंपरिक मलय संस्कृति की कीमत पर इस्लाम का प्रचार-प्रसार किया जा रहा है.”
मरीना के पिता महाथिर मोहम्मद की उम्र 93 साल है और वे प्रमुख विपक्षी गठबंधन के प्रमुख हैं. सऊदी अरब के कट्टरपंथी वहाबी समुदाय की नीतियों का प्रभाव मलेशिया और पड़ोसी देश इंडोनेशिया पर भी नजर आता रहा है.
लेकिन पिछले एक दशक के दौरान खासकर साल 2009 में नजीब रजाक के प्रधानमंत्री पद संभालने के बाद से यह प्रभाव काफी बढ़ा है. नजीब सरकार ने सऊदी अरब के साथ रिश्तों को मजबूत करने पर काफी जोर दिया है.