पुराना शहर का नक़्शा बदल देने के वाअदे खोखले निकले

हैदराबाद 9 फ़रवरी सारी दुनिया में जम्हूरीयत का बोल बाला है क्योंकि जम्हूरीयत में अवाम बहुत बड़ी ताक़त होते हैं लेकिन अमली तौर पर जायज़ा लिया जाए तो सियासतदां ही बाअख्तियार नज़र आते हैं जबकि अवाम मजबूर और बेबस दिखाई देते हैं। आप उसे जम्हूरीयत की ख़राबी या अच्छाई कह लीजिए कि इस तर्ज़ हुक्मरानी में हुक्मराँ और सियासतदां सब के सब अवाम से ऐसे बुलंद बाँग दावे करते हैं कि कुछ वक़्त के लिए भोली भाली अवाम ख़ुशी से फूले नहीं समाती।

और फ़िज़ा में झूटे वाअदे करने वाले हुकमरानों और सियासतदानों की ताईद में ज़िंदाबाद के नारे गूंजते हैं। हुक्मराँ और अवाम की नुमाइंदगी के वाअदे करने वाले सियासतदां को ऐसा लगता है कि वाअदे करने और फिर उन्हें फ़रामोश करने की एक अजीबो ग़रीब बीमारी में मुबतला होते हैं।

12 अक्टूबर 2006 को चारमीनार के दामन में उस वक़्त के चीफ़ मिनिस्टर आँजहानी डाक्टर वाई एस राज शेखर रेड्डी ने ख़िताब करते हुए पुराना शहर की तरक़्क़ी के लिए एक नहीं दो नहीं बल्कि पूरे 2 हज़ार करोड़ रुपये के ख़ुसूसी पैकेज का एलान किया था।

उस वक़्त उन्हों ने अवाम के जोश को देख कर बिना सोचे समझे एलान किया था कि वो पुराना शहर की शक़ल बदल कर रख देंगे। उसे नए शहर की तर्ज़ पर तरक़्क़ी दी जाएगी और ये दो हज़ार करोड़ रुपये शहर के उस पसमांदा हिस्सा में 14 प्रोजेक्ट्स पर ख़र्च किए जाऐंगे।

इस मौक़ा पर एम पी और अरकान असेंबली भी मौजूद थे। वाई एस आर को ख़ुश करने की हर मुम्किन कोशिश की जा रही थी नारे बुलंद हो रहे थे लेकिन अफ़सोस के साथ कहना पड़ता है कि जिन 14 प्रोजेक्ट्स की बात की गई थी उन प्रोजेक्ट्स में एक पराजकट शहर के तारीख़ी मुहल्ला मिस्री गंज में वाक़े दरगाह हज़रत शाह राजू क़त्ताल (रह) के गुंबद सैयाहों के लिए पुरकशिश बनाना भी शामिल था।

लेकिन इस वाअदा पर आज तक अमल आवरी ना हो सकी। हद तो ये है कि इस अज़ीमुश्शान गुंबद के बैरूनी हिस्सा का प्लास्टर गिरने लगा है। आप को बतादें कि हज़रत शाह राजू क़त्ताल हुसैनी (रह) की गुंबद को एशीया की सब से ऊंची गुंबद होने का एज़ाज़ हासिल है। दो मंज़िला इस गुंबद में 25 फ़ुट के 110 सतून हैं जो एक ही पत्थर से तराशे गए हैं।

ये गुंबद 110 फ़ुट लम्बा और 110 फ़ुट अर्ज़ की हामिल है और चारों तरफ़ बारह दरियों से घिरी हुई है। कहा जाता है कि हज़रत शाह राजू क़त्ताल हुसैनी (रह) का विसाल अबुल हसन तानाशाह के अह्द में ही हुआ और तानाशाह ने ही उन के मज़ार पर तारीख़ी गुंबद तामीर करवाई।

इमारत का कुछ हिस्सा बाक़ी था कि सलतनत क़ुतुब शाही का ख़ातमा हो गया बाद में शाह आलमगीर ने उस की तामीर मुकम्मल करवाई जब कि आसिफ़जाही हुकमरानों ने वक़्तं बा वक़्तं इस गुंबद की तज़ईन पर ख़ुसूसी तवज्जा मर्कूज़ की।