21 साल के योगेश प्रजापति की कहानी उन लोगों के लिए एक प्रेरणा है, जो यह मानकर बैठे हैं कि जिंदगी में कामयाब होना बहुत मुश्किल काम है. योगेश प्रजापति विशेष रूप से सक्षम एक ऐसे शख्स का नाम है, जिसने अपने सपनों की ऊंची उडान के लिए जिंदगी में कदम-कदम पर पेश आने वाली मुश्किलों का सामना किया. एक एथलीट और एक व्हीलचेयर क्रिकेटर के तौर पर सालाना करीब 7 लाख रुपए की कमाई करने वाले योगेश का दृढ विश्वास है कि अगर हम अपने लक्ष्य पर लगातार निगाहें रखें, तो दुनिया में कुछ भी नामुमकिन नहीं है.
आगरा, उत्तरप्रदेश में एक मेहनती ट्रक ड्राइवर और धार्मिक प्रवृत्ति की मां के घर जब योगेश का जन्म हुआ, तो उसके माता-पिता की खुशियों का कोई ठिकाना नहीं था, लेकिन छह महीने की उम्र में योगेश को तेज बुखार की शिकायत हुई. उसे पास के अस्पताल ले जाया गया, जहां पता चला कि वह पोलियो का शिकार हो चुका है. योगेश के माता-पिता ने उसका इलाज कराने में कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखी.
योगेश जब 7 साल की उम्र का था, तब उसके पिता उसके लिए एक व्हीलचेयर ले आए और तब योगेश ने स्कूल जाना शुरू कर दिया. योगेश के पिता के पास 4 ट्रक थे, लेकिन योगेश के पैर की सर्जरी और दूसरे पारिवारिक कार्यों के कारण उन्हें अपने इन ट्रकों को बेचना पड़ा था. कभी 4 ट्रकों के मालिक रहे योगेश के पिता अब गुरुग्राम में एक ट्रक ड्राइवर की नौकरी करने लगे थे. तकलीफ की बात यह थी कि इन बुरे हालात के लिए लोग योगेश को ही जिम्मेदार मानने लगे थे. योगेश का मन करता था कि वो भी उठे, भागे और अपने पिता की मदद करे, और इन सबसे ऊपर वो यह साबित करना चाहता था कि वो दुर्भाग्यशाली नहीं है! सकारात्मक ऊर्जा से भरपूर योगेश को अब तलाश थी एक ऐसे शख्स की, जो उसकी मदद कर सके और उसके भीतर छुपी संभावनाओं को टटोल सके.
जब मन में उठा एक नया जुनून, एक नया जोश
इन्हीं हालात के बीच एक दिन योगेश के पिता उसे एक अस्पताल में ले गए, जहां डॉक्टर ने यह कहते हुए तमाम उम्मीदों को खत्म कर दिया कि योगेश को पूरी जिंदगी व्हीलचेयर पर ही बितानी होगी. अस्पताल से घर लौटने के दौरान एक पेड़ के नीचे सुस्ताने के दौरान योगेश ने अपने पिता की आंखों में लाचारी और बेबसी के आंसू देखे. यही वो पल था जब योगेश ने सभी मुश्किलों का सामना करने और अपनी एक अलग पहचान कायम करने का निर्णय किया.
14 साल में शुरू किया बॉडी बिल्डिंग
14 साल की उम्र में योगेश ने अपने घर के पिछवाड़े में नियमित तौर पर व्यायाम करना शुरू किया और इस तरह उसने अपने बदन को एक आकार देने का प्रयास किया. योगेश की इच्छा थी कि वो भी दूसरों की तरह जिम में जाए और इसी इच्छा के साथ एक दिन वो अपने दोस्तों के साथ नजदीकी जिम में पूछताछ करने के लिए पहुंचा लेकिन जिम की फीस वो वहन नहीं कर सकता था. योगेश की शारीरिक स्थिति को महसूस करने के बाद, जिम मालिक ने उसे बिना फीस के जिम में शामिल होने की पेशकश की और उसे एथलीट बनने के लिए भी प्रेरित किया. जिम के मालिक राजेशसिंह खुश्वा योगेश के प्रशिक्षक बने और योगेश के सामने संभावनाओं के द्वार खोल दिए. योगेश ने पहली बार 18 साल की उम्र में बॉडी लिफ्टिंग प्रतियोगिता में भाग लिया. विशेष रूप से सक्षम लोगों के लिए ‘शेरू क्लासिक’ नामक प्रतियोगिता मुंबई में आयोजित की गई जहां योगेश ने रजत पदक जीता. इसके बाद योगेश ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. वह लुधियाना, हरियाणा और आगरा में ऐसी कई प्रतियोगिताओं में भाग लेने के लिए गया और सभी स्थानों पर उसने स्वर्ण पदक जीता. वह अब उसी जिम में महिलाओं के बैच के लिए एक फिटनेस ट्रेनर के रूप में काम करता है जहां उसे प्रशिक्षित किया गया था. इसी दौरान, उसने बायोटेक में स्नातक की डिग्री भी हासिल की. बड़े भाई पवन उसके लिए बैशाखी ले आए थे, क्योंकि वह चाहते थे कि योगेश अपनी आगे की पढ़ाई जारी रखे.
फिर क्रिकेटर बने
इसी दौरान योगेश को एक दिन दिव्यांग और वंचित लोगों के लिए अतुलनीय काम करने वाले संगठन-नारायण सेवा संस्थान के निशुल्क स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम के बारे मे जानकारी मिली. योगेश उदयपुर पहुंचा. नारायण सेवा संस्थान में योगेश को 3 महीने की मोबाइल रिपेयरिंग की ट्रेनिंग दी गई और इस दौरान उसे रिपेयरिंग किट भी उपलब्ध कराई गई और उसके रहने तथा खाने-पीने का भी निशुल्क इंतजाम किया गया. संस्थान में दूसरे लोगों को फिट रहने के लिए प्रेरित करने की अपनी कोशिशों के दौरान योगेश ने उत्तराखंड की व्हीलचेयर क्रिकेट टीम के कोच श्री हरीश चौधरी को बहुत प्रभावित किया, जो उन दिनों संस्थान के दौरे पर थे. उन्होंने योगेश को राज्य स्तरीय व्हीलचेयर क्रिकेट टीम में शामिल होने का न्यौता दिया. योगेश ने इस मौके को हाथ से नहीं जाने दिया और गुजरात के खिलाफ अपने पहले मैच में ही उसने ऑलराउंडर का खिताब हासिल किया. फिलहाल योगेश व्हीलचेयर क्रिकेट के अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट्स की तैयारी में व्यस्त है.
योगेश की इच्छा
आज योगेश हर लिहाज से आत्मनिर्भर बनना चाहता है, ताकि वह दिव्यांग लोगों को इस बात की प्रेरणा दे सके कि वे भी चाहें तो अपने लिए एक नया रास्ता तैयार कर सकते हैं.
साभार- इंडिया डॉट कॉम