नई दिल्ली: सदर जम्हुरिया प्र्णब मुख़र्जी की किताब जिसमें इन्होंने अपनी सियासी ज़िंदगी की अहम यादों और तल्ख़ तजुर्बात को तहरीर किया है, इस में इंदिरा गांधी का क़तल, बाबरी मस्जिद की शहादत और राजीव गांधी काबीना से उनकी बेदखली के वाक़ियात भी शामिल हैं।
नायब सदर जम्हुरिया हामिद अंसारी ने इस किताब की रस्मे इजरा अंजाम दी। सदर जम्हुरिया ने 1980 और 1990 के दहिय के दौरान रौनुमा होने वाली बाज़ यादगार तबदीलीयों पर रोशनी डाली। माबाद आज़ादी हिंद की तारीख़ में रौनुमा होने वाले निहायत ही नाज़ुक हालात का इन्होंने बारीकी से जायज़ा लेकर ज़ब्त तहरीर लाया है।
प्रणब मुख़र्जी ने राजीव गांधी की काबीना और कांग्रेस पार्टी से अपनी अलाहदगी को एक ”वाक़िया’ क़रार दिया जिसको इन्होंने ख़ुद पैदा किया था। मैंने इस किताब में ईमानदारी के साथ तस्लीम किया है कि मुझे ऐसी हिमायत नहीं करनी चाहिए थी क्यों कि वो कोई बड़े या अवामी लीडर नहीं थे और मैंने कांग्रेस के अंदर बाग़ीयों की क्या नौईयत होती है इसका भी अंदाज़ा नहीं किया था।
मिसाल के तौर पर 1960 के दहिय में अजय मुख़र्जी और हाल ही में ममता बनर्जी ने जो किया था वैसा ही मैंने भी किया मगर नाकाम रहा। इंदिरा जी ने भी ख़ुद एक मर्तबा पार्टी से दूरी का फ़ैसला किया था। प्रणब मुख़र्जी ने अपनी इस किताब में राजीव गांधी के पहली मर्तबा वज़ीर-ए-आज़म बनने और इस के बाद पी वी नरसिम्हा राव के क़ौम के लीडर की हैसियत से उभरने की वजूहात का भी ज़िक्र किया है।
इस किताब के क़ारईन किताब का मुताला करने के बाद ही किसी नतीजे पर पहूंच सकते हैं। ये किताब उनकी याददाश्त पर मुश्तमिल दूसरी जलद है|