प्रतापगढ़: मुस्लिम वोटों के विभाजन से धर्मनिरपेक्ष ताकतों को नुकसान का खतरा

प्रतापगढ़: उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में चौथे चरण के मतदान आगामी 23 फरवरी को होगी. अभी मतदान के लिए एक सप्ताह से अधिक समय शेष है. राजनीतिक दलों की सक्रियता चरम पर हैं, लेकिन अभी तक मुस्लिम मतदाता निर्णय नहीं कर पा रहे है की किस को वोट दिया जाय. जहां मुस्लिम नेतृत्व के अभाव के कारण गठबंधन को फैलाने में स्थानीय स्तर के कुछ तथाकथित मुस्लिम नेता और विद्वान हैं जो मुसलमानों को जागरूक करने के बजाय उन्हें अधिक गहरी नींद में सुलाने की कोशिश कर रहे हैं. शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़े मुस्लिम समुदाय आपस में विभाजित हैं. जिसका फायदा राजनीतिक पार्टियां बखूबी उठाती हैं. यहां तक कि कभी कभी सांप्रदायिक ताकतों को समझ नहीं पाते और उनके नरगे में फंस कर अपने विरोधियों को वोट दे देते हैं. फिर पांच साल तक पछताते हैं कि उन्होंने गलती की है.

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प्रदेश 18 के अनुसार, प्रतापगढ़ में धर्मनिरपेक्षता की नकाब में विभिन्न राजनीतिक दलों से ऐसे उम्मीदवार हैं जिन्होंने हमेशा मुसलमानों को नुकसान पहुँचाने की कोशिश की परंतु धर्मनिरपेक्षता की नकाब में मुसलमानों के वोट हासिल करने के लिए आकर्षित करने में लगे हुए हैं, और उनका सहयोग भी ऐसे तथाकथित मुस्लिम नेता व कुछ उलेमा कर रहे हैं जो अपने हित के लिए धोखे से मुसलमानों का वोट विरोधियों के खाते में स्थानांतरित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. इस बार अगर मुस्लिम वोट विभाजित हुए तो धर्मनिरपेक्ष ताकतों की जड़ें अधिक कमजोर होने का खतरा है. इस समय तथाकथित नेता मुसलमानों के गहमदर्द बनकर उनके वोट बेकार करने में सक्रिय हैं.

जिले के सात विधानसभा क्षेत्रों में जहां भाजपा व उसके सहयोगी के अलावा विभिन्न राजनीतिक दलों से ऐसे उम्मीदवार मैदान में हैं जिनके भूमिका से संबंधित मुस्लिम मतदाता परिचित हैं. धर्मनिरपेक्षता के नकाब में ऐसे उम्मीदवार भी हैं जो आरएसएस के कैडर हैं, और एक धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक दल से पिछले 2012 चुनाव में पाला बदलकर विधायक चुने गए और वर्तमान में मंत्री हैं. इस तरह एक उम्मीदवार तो ऐसे हैं कि जिन्होंने ब्लाक प्रमुख के चुनाव में खुलेआम मुस्लिम उम्मीदवार का विरोध किया, विरोध के बावजूद मुस्लिम ब्लॉक प्रमुख की जीत हुई.

अगर मुस्लिम मतदाता जागरूकता से अपने बुद्धि और चेतना का उपयोग करता है तो विरोधियों की योजना नाकाम होगी, और सपने चकनाचूर होंग. लेकिन इसके लिए उन्हें कथित स्वार्थी मौलवियों और नेताओं के सुझावों को खारिज कर खुद फैसला लेना होगा. इसे मुसलमानों की विडंबना कहें या सम्मान कि वह हर चुनाव के मौके पर अपनी चिंता और ज्ञान को ताक पर रख देते हैं और स्वार्थियों की सलाह पर हामी भरते हुए अपना मत ऐसे उम्मीदवार को सौंप देते हैं जो पूरे पांच साल तक इन का शोषण करता है. इस समय सभी राजनीतिक दलों की नज़र मुस्लिम वोटों पर है कि कैसे रणनीति का उपयोग कर के वोट हासिल किया जा सकता है. इस समय मुस्लिम वोटों में सेंध करने के लिए तथाकथित नेता मुसलमानों को हिदायत कर रहे हैं कि फलां को वोट दो, अमुक की विरोध करो, अमुक की जीत सुनिश्चित करो. आखिर मुस्लिम वोटर्स कब तक उन स्वार्थियों के सुझावों पर चलकर अपने भविष्य को खराब करेंगे. अब जागरूक हो जाने का समय आगया है. एकता, होशियारी और चेतना से ही भविष्य उज्ज्वल हो सकता है.