शेख़ की इक दो नहीं हैं, सात सात
दिलानातुन, बेगमातुन, माशूक़ात
लीडरां , हर रोज़ देते हैं तुड़ी
मछलियातुन, मुर्गियातुन, बकरियात
और बस खावें , बिचारे शाएरां
झिड़कियातुन, गालियॉतुन, बेलनात
याद करते हैं फ़क़त, संडे के दिन
पानियातुन, साबुनातुन, ग़ुसलियात
महफ़िल-ए-शेरो सुख़न की जान हैं
कमसिनातुन, शाइरातुन, बिवटियात
फिर से कईकू, चाटरइं बेगम तुमीं
चटनियातुन, कैरियातुन, इमलियात