नई दिल्ली, 10 फरवरी: पार्लियामेंट पर हमले की साजिश रचने के गुनहगार अफजल गुरू को आखिरकार फांसी पर लटका दिया गया। भले ही उसे उसके अंजाम तक पहुंचाने में 12 साल लगे, लेकिन आखिर में इंसाफ की जीत हुई। इससे दहशतगर्द के खिलाफ जंग में अपनी संजीदगी का पैगाम भी हिंदुस्तान ने दुनिया को एक बार फिर दे दिया है।
तिहाड़ में बंद अफजल को जुमे की रात रात 10: 00 बजे बताया गया कि उसे हफ्ते की सुबह फांसी दे दी जाएगी। इससे पहले शाम करीब 7:00 बजे डॉक्टरों की एक टीम ने उसकी मेडिकल जांच की। बिना खाना खाए वह रात को अपनी बैरक में चला गया। इसके बाद वह पूरी रात सो नहीं पाया। ज़राए की मानें तो उसने पढ़ने के लिए मज़हबी किताब मांगी।
सुबह नहाने से पहले फिर अफजल की मेडिकल जांच की गई। नहाने के बाद उसे पहनने के लिए नए सफेद कपड़े दिए गए। अफजल ने सुबह की नमाज अदा की। आखिरी ख़ाहिश पूछने पर उसने किसी भी तरह की ख़ाहिश से इंकार कर दिया।
फांसी देते वक्त जेल नंबर 3 में अफजल के अलावा सिर्फ 6 लोग मौजूद थे। इनमें जल्लाद, मजिस्ट्रेट, डॉक्टर और जेल के तीन आफीसर शामिल थे। जिस रस्सी से फांसी का फंदा बनाया गया, उस पर पहले ही अफजल के बराबर वजन लटका कर देख लिया गया था।
फांसी से पहले जल्लाद ने अफजल के पैरों को हाथ लगाया और कहा कि वह उसे मार नहीं रहा है, बल्कि आइन (Constitution) की तामील कर रहा है। 8 बजे मजिस्ट्रेट ने हुक्म दिया और जल्लाद ने लीवर दबा दिया। करीब दस मिनट फंदे पर झूलने के बाद दो बार उसकी जांच की गई और तब डॉक्टर ने अफजल को मरा हुआ ऐलान कर दिया।
जेल में तैनात एक मुलाज़्मीन ने ही मौलवी का किरदार निभाते हुए जनाजे की नमाज पढ़वाई। जेल के ही चंद लोग जनाजे की नमाज में शामिल हुए। अफजल की लाश पर किसी ने दावा नहीं किया, लिहाजा उसे जेल मैन्युअल के मुताबिक तिहाड़ अहाते में जेल नंबर 3 के पास दफना दिया गया। उसके लिए एक कब्र खोदी गई, जहां किसी तरह का कोई निशान नहीं छोड़ा जाएगा। ताकि किसी को पता नहीं चल सके कि उसे किस जगह दफन किया गया है।
21 जनवरी को वज़ीर ए दाखिला ने सदर जम्हूरिया से अफजल की रहम दरखास्त खारिज करने की सिफारिश की।
3 फरवरी को सदर जम्हूरिया ने दरखास्त खारिज की।
4 फरवरी को वज़ीर ए दाखिला शिंदे ने इस पर दस्तखत किए।
आखिरी सफर
8 फरवरी की रात अफजल को बताया गया कि सुबह उसे फांसी दी जाएगी।
7:30 बजे सुबह फांसी के तख्ते की तरफ ले जाया गया।
8:00 बजे फांसी दी गई।
9:00 बजे करीब जेल में दफनाया।
हुकूमत ने अफजल गुरू को फांसी देने का ऑपरेशन भी बिलकुल उसी तरह खुफिया रखा, जिस तरह मुंबई हमलों के गुनहगार पाकिस्तानी दहशतगर्द अजमल कसाब को रखा गया था। मुंबई की ऑर्थर रोड जेल में बंद कसाब को बेहद खुफिया ऑपरेशन में पुणे की येरवडा जेल ले जाकर फांसी दी गई थी।
———बशुक्रिया: अमर उजाला