नई दिल्ली, 05 फरवरी: खवातीनो की ज़्यादती के खिलाफ हुकूमत के नए आर्डिनेंस (Ordinance) के जरिए कानून में किए गए बदलाव दिल्ली में चलती बस में गैंगरेप के दरिंदों पर लागू नहीं होंगे। हुकूमत का कहना है कि आर्डिनेंस (Ordinance) लाने का मकसद आगे की वाकियात को रोकना है। उसने वाजेह किया कि ख्वातीनो की हिफाजत के हल को सुलझाने के लिए तशकील जस्टिस वर्मा कमेटी की किसी भी सिफारिश को ठुकराया नहीं गया है।
हुकूमत की दलील है कि शादी शुदा ज़िंदगी में होने वाले बलात्कार, नाबालिग की उम्र सीमा और फौजी ताकत खुशूशी इख्तेयार कानून से जुड़ी सिफारिशें बहुत पेचीदा मामले हैं। लिहाजा इस पर जल्दबाजी में फैसले नहीं लिए जा सकते। इन मुद्दों पर गौर किया जा रहा है और इन्हें संसद के बजट सेशन में बहस के बाद जुर्म कानून में तरमीम बिल में शामिल किया जाएगा।
लिहाजा यह कानून भले ही दिल्ली गैंग रेप की रद्दे अमल में बनाया जा रहा है लेकिन यह उन मुल्ज़िमीन पर लागू नहीं होगा। हालांकि उन्होंने कहा कि उन मुल्ज़िमीन पर फांसी की सजा आईपीसी की दफा वैसे भी लागू हो रही है क्योंकि लड़की की मौत हो चुकी है।
चिदंबरम ने संसद सेशन के ऐलान के बावजूद आर्डिनेंस लाने को जायज ठहराते हुए कहा कि जस्टिस वर्मा कमेटी ने हुकूमत से रिपोर्ट पर संजीदगी के साथ जल्द कार्रवाई करने की सिफारिश की थी। यही वजह है कि हुकूमत ने उन मसलों को आर्डिनेंस में शामिल पर उसे लागू कर दिया जिनपर सभी पार्टी की एक राय थी।
बाकी सिफारिशों के पेचीदा होने की वजह से उन पर पूरी बहस के बाद ही उन्हें कानून का शक्ल दिया जा सकेगा। संसद की मुस्तकिल कमेटी जुर्म कानून तरमीम पर काम कर रही है। संसद के बजट सेशन में आर्डिनेंस और उस बिल पर बहस की बुनियादपर ही यह काम मुम्किन है।
चिदंबरम ने कहा कि आर्डिनेंस में बलात्कार के वजह से हुई मौत पर फांसी की सजा तय की गई है। इसके अलावा खातून के वाकिया की वजह से लंबे वक्त के लिए कोमा में चले जाने की सूरत में भी फांसी दी जा सकती है। अगर कोई बलात्कारी दूसरी बार भी आबरूरेज़ी के मामले में मुजरिम ठहराया जाता है, तब भी उसे फांसी की सजा दी जा सकती है।