एनडीटीवी की सीनियर जर्नलिस्ट बरखा दत्त के टाइम्स नाऊ के एडिटर इन चीफ अरनब गोस्वामी पर निशाना साधा था उसके बाद यह मामला सोशल मीडिया में भी चर्चाओं में है।
बरखा ने फेसबुक पोस्ट करके इलज़ाम लगाया था कि अरनब मोदी सरकार की चमचागिरी में लगे हुए हैं। यह भी कहा कि उन्हें खुद को पत्रकार कहते हुए शर्म आती है क्योंकि अरनब भी इसी पेशे से जुड़े हुए हैं।
अभी ये मामला पूरी तरह शांत भी नहीं हुआ था की रविश कुमार के एक ब्लॉग ने फिर सोशल मीडिया पर बहस छेड़ दी है
एनडीटीवी के वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार ने अपने लेटेस्ट ब्लॉग में बिना नाम लिए अरनब पर तीखी टिप्पणी की है। रवीश ने लिखा है, ”एंकर सरकार से कह रहा है कि वो पत्रकारों पर देशद्रोह का मुक़दमा चलाये। जिस दिन पत्रकार सरकार की तरफ हो गया,
समझ लीजियेगा वो सरकार जनता के ख़िलाफ़ हो गई है। पत्रकार जब पत्रकारों पर निशाना साधने लगे तो वो किसी भी सरकार के लिए स्वर्णिम पल होता है।” माना जा रहा है कि रवीश का यह इशारा अरनब गोस्वामी की ओर है। अरनब ने अपने शो न्यूजआवर में कुछ पत्रकारों पर आरोप लगाया था कि वे कश्मीर में अलगाववाद को बढ़ावा दे रहे हैं। अरनब ने तीखा हमला करते हुए पूछा था कि क्या ऐसे लोगों की तलाश करके उनके खिलाफ केस नहीं चलाया जाना चाहिए।
रवीश ने अपने ब्लॉग ‘कस्बा’ पर ‘सांप्रदायिकता का नया नाम है राष्ट्रवाद’ शीर्षक से आर्टिकल लिखा है। इसमें उन्होंने लिखा, ‘आप जो टीवी पर एंकरों के मार्फ़त उस अज्ञात व्यक्ति की महत्वकांक्षा के लिए रचे जा रहे तमाशे को पत्रकारिता समझ रहे हैं वो दरअसल कुछ और हैं। आपको रोज़ खींच खींच कर राष्ट्रवाद के नाम पर अपने पाले में रखा जा रहा है ताकि आप इसके नाम पर सवाल ही न करें। दाल की कीमत पर बात न करें या महँगी फीस की चर्चा न करें। इसीलिए मीडिया में राष्ट्रवाद के खेमे बनाए जा रहे हैं।एंकर सरकार से कह रहा है कि वो पत्रकारों पर देशद्रोह का मुक़दमा चलाये। जिस दिन पत्रकार सरकार की तरफ हो गया, समझ लीजियेगा वो सरकार जनता के ख़िलाफ़ हो गई है। पत्रकार जब पत्रकारों पर निशाना साधने लगे तो वो किसी भी सरकार के लिए स्वर्णिम पल होता है। बुनियादी सवाल उठने बंद हो जाते हैं।जब भविष्य निधि फंड के मामले में चैनलों ने ग़रीब महिला मज़दूरों का साथ नहीं दिया तो वो बंगलुरू की सड़कों पर हज़ारों की संख्या में निकल आईं। कपड़ा मज़दूरों ने सरकार को दुरुस्त कर दिया। इसलिए लोग देख समझ रहे हैं। जे एन यू के मामले में यही लोग राष्ट्रवाद की आड़ लेकर लोगों का ध्यान भटका रहे थे। फ़ेल हो गए। अब कश्मीर के बहाने इसे फिर से लांच किया गया है!
मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती ने कहा है कि बुरहान वानी को छोड़ दिया जाता अगर सेना को पता होता कि वह बुरहान है। बीजेपी की सहयोगी महबूबा ने बुरहान को आतंकवादी भी नहीं कहा और अगर वो है तो उसके देखते ही मार देने की बात क्यों नहीं करती हैं जैसे राष्ट्रवादी करते हैं। महबूबा मुफ्ती ने तो सेना से एक बड़ी कामयाबी का श्रेय भी ले लिया कि उसने अनजाने में मार दिया। अब तो सेना की शान में भी गुस्ताख़ी हो गई। क्या महबूबा मुफ्ती को गिरफ़्तार कर देशद्रोह का मुक़दमा चलाया जाए? क्या एंकर लोग ये भी मांग करेंगे ? किस हक से पत्रकारों के ख़िलाफ़ देशद्रोह का मुक़दमा चलाने की बात कर रहे हैं? जिस सरकार के दम पर वो कूद रहे हैं क्या वो सरकार ऐसा करेगी कि महबूबा को बर्खास्त कर दे? क्या उस सरकार का कोई बड़ा नेता महबूबा से यह बयान वापस करवा लेगा?’