बाबर के मुताल्लिक़ ये भी गुमान नहीं किया जा सक्ता कि इस ने यहां आते ही मंदिरों और मूर्तियों को मिस्मार करना शुरू कर दिया, क्योंकि जिस साल ये मस्जिद (बाबरी मस्जिद) बनी हें, इसी साल इस ने हुमायूँ के लिए ये वसीयत नामा लिख कर छोड़ रखा था:
ए फ़र्ज़ंद! हिंदूस्तान की सल्तनत मुख़्तलिफ़ मज्हब से भरी हुई हें, ख़ुदा का शुक्र हें कि इस ने इस को बादशाहत अता की, तुम पर लाज़िम हें कि अपने लौह दिल से तमाम मज्हबी तास्सुबात को मिटा दो और हर मज्हब के तरीक़ा के मुताबिक़ इंसाफ़ करो। तुम ख़ास तौर पर गाय की क़ुर्बानी को छोड़ दो, इस से तमाम हिंदूस्तान के लोगों के दिलों की तसख़ीर कर सको गे। फिर उस मुल़्क की पब्लीक शाही एहसानात से दबी रहेगी। जो क़ौम हुकूमत के क़वानीन की इताअत करती हे, इस के मंदिरों और इबादतगाहों को मुनहदिम ना करो, अदल-ओ-इंसाफ़ इस तरह करो कि बादशाह पब्लीक और पब्लीक बादशाह से ख़ुश रहे।
इस्लाम की तरवीज ज़ुलम की तल्वार से ज़्यादा एहसानात की तल्वार से हो सकती हें। शीयों और सुन्नीयों के इख़तिलाफ़ को नजर अंदाज़ करते रहो, वर्ना इस्लाम में इस से कमज़ोरी पेदा होती रहेगी। मुख़्तलिफ़ अक़ाइद रखने वाली पब्लीक को इस तरह उन अनासिर-ए-अर्बा के मुताबिक़ बलाओ, जिस तरह इंसानी जिस्म मिला रहता हें, ताकि सल्तनत का ढांचा इख़तिलाफ़ात से पाक रहे।
यक्म जमादी उलअव्वल ९३५ह (इंडिया डीवाइडड, सफ़ा ३९, तीसरा एडीशन)
ये तहरीर इसी साल की हे, जिस साल बाबरी मस्जिद बनाई गई। अगर ये राम जन्म भूमि मंदिर को मुन्हदिम करके बनाई जाती तो वो अपने लड़के हुमायूँ को ये वसीयत नामा क्योंकर लिखते। इस वसीयत नामा को डाक्टर राजिंदर प्रशाद साबिक़ सदर जमहूरीया ने अपनी मशहूर किताब इंडिया डीवाइडड में दर्ज करके बाबर को मज्हबी तास्सुब से बालातर तस्लीम किया हें।
इसी तरह प्रोफेसर श्री राम शर्मा की किताब मुग़ल एम्पायर आफ़ इंडिया की जील्द अव्वल के सफ़ा ५५,५४ पर भी बाबर का वसीयत नामा दर्ज हें। इसी लिए प्रोफेसर साहब ने ये भी लिखा हे कि हमें कोई एसी शहादत नहीं मिलती हे कि बाबर ने किसी मंदिर को मुनहदिम किया हो और किसी हिन्दू की ईज़ा रसानी की, महज़ इस लिए कि वो हिन्दू हे। (सफ़ा ५५।१९४५ ए एडीशन)
बाबर की तज़क बाबरी का मुताला किया जाए तो मालूम होता कि वो तो हिन्दुओ के मंदिरों का ज़िक्र लुतफ़ ले लेकर करता था। मसलन जब वो गवालयार के क़िला में पहुंचा तो वहां के बुतख़ाना का ज़िक्र इस तरह करता हे कि यहां के तालाब के मग़रिब में एक बड़ा बुत्ख़ाना हें। सुल्तान शमस उद्दीन अल्तमश ने इस बुत्ख़ाना के पहलू में एक मस्जिद बनाई हे। ये बुतख़ाना इतना बुलंद हे कि क़िला में इस से ऊंची कोई इमारत नहीं। धूल पर के पहाड़ पर से गवालयार का क़िला और बुत्ख़ाना ख़ूब नज़र आता हे। कहते हे कि इस बुत्ख़ाना का सारा पत्थर वहां के तालाब को खोद कर हासिल किया गया हे। (उर्दू तर्जुमा सफ़ा ३३२, अंग्रेज़ी तर्जुमा बाबर नामा, सफ़ा ६१०)
मिस्टर राम प्रशाद खोसला पटना यूनीवर्सिटी में तारीख़ के प्रोफेसर थे, उन्हों ने १९३४ में मुग़ल किंग शिप एंड नोबेल्टी लिखी, इस में बाबर के औसाफ़ का ज़िक्र करते हुए लिखते हे कि बाबर के तज्क में हीन्दुओ के किसी मंदिर के इन्हिदाम का ज़िक्र नहीं हे और ना ये सबूत हे कि इस ने कुफ़्फ़ार का क़त्ल-ए-आम उन के मज्हब की वजह से किया, वो नुमायां तौर पर मज्हबी तास्सुब और तंगनज़री से बरी था। (सफ़ा।२०७)