मिस्र के साबिक़ (गुजरे हुवे)माज़ूल सदर मुहम्मद हसनी मुबारक अपने दो फ़रज़न्दों इला जमाल और साबिक़(गुजरे हुवे) वज़ीर-ए-दाख़िला हबीब इला दिल्ली समेत कई मुक़र्रबीन कल हफ़्ते के रोज़ अपने ख़िलाफ़ अन्य वाले मुम्किना अदालती(कोर्ट) फ़ैसले के मुंतज़िर हैं।
उलार बया डाट नैट के मुताबिक़ साबिक़ सद रुकी अपने फ़र्र ज़िंदाँ के साथ अख़िरी मुलाक़ात चंद माह पेशतर क़ाहिरा की इसी तरह जेल में हुई थी जहां वो अपने वालिद के हमराह अदालत(कोर्ट) में पेश हुए।
इस मौक़ा पर हसनी मुबारक और उन के बेटों को क़ैदीयों के लिबास में लाया गया था। हैलीकाप्टर में मेजर जनरल शाहीन, कर्नल ख़ालिद, श्रम उल-शेख़ अस्पताल के डायरेक्टर और तिब्बी अमला(दोक्टोर्स ) उन के हमराह था।
हैलीकाप्टर से उतारे जाने के बाद हसनी मुबारक के अपने बेटों जमाल और इला के साथ मुख़्तसर(बहुत कम) मुलाक़ात कराई गई। इस मुलाक़ात में दोनों फ़र्र ज़िंदाँ ने आगे बढ़ कर अपने वालिद की पेशानी को चूमा।
वालिद ने भी बेटों के सर पर दस्त शफ़क़त( अशिर्वत) रखा और उन के जेल के अहवाल(बारे मा) दरयाफ़त किए। इस पर बेटों ने अपनी जानिब(तरफ) से इतमीनान( मुत्में) दिलाया और कहा कि हमें आप की फ़िक्र है बाक़ी सब अच्छा है।
बेटों के एक सवाल के जवाब में हसनी मुबारक ने बताया कि दौरान हिरासत(पर्दे जाना) एक क़ैदी ही उन की हजामत और शैव बनाया करता था। इस ख़िदमत पर वो उसे इनाम भी दिया करते थे।