बाल-मज़दूरी पर क्या जवाब देंगे मोदी और अखिलेश…

लखनऊ की सड़कों पर पानी बेचते मासूम बच्चे आपको नज़र आ ही जाने चाहियें, ये बच्चे ख़तरनाक तरह से पानी बेचने के लिए बसों पर लटक जाते हैं. अपनी जान का जोखिम लेते हुए हर रोज़ वो ये काम करते हैं और अगर आप उनके चेहरों पर नज़र डालें तो वो ख़ुश नज़र आते हैं. असल में उनकी ख़ुशी कुछ देर की है क्यूंकि जब उन्हें ये पता चलेगा कि वो जो वक़्त पीछे गुज़र गया कुछ असली करने का था तब उन्हें एहसास होगा लेकिन इसमें इन बच्चों की कोई ग़लती नहीं है, इसमें ग़लती हमारी सरकारों की है और कहीं ना कहीं हम और आप की भी.
अक्सर एक औरत नज़र आती है जो चौराहे के किनारे कोई डिब्बा लिए बैठी रहती है उसमें पानी होता है और बग़ल में उसके पॉलिथीन की थैली का एक पैकेट वो उस पैकेट में से एक पीस निकालती है और उसमें पानी डालती रहती है, इसके आगे का काम 8-10 साल से लेकर 15 साल के बच्चे करते हैं. तेज़ धूप में जब हम और आप अपने घरों से निकलते वक़्त कई बार मौसम को गाली देते हैं और सारे इंतज़ाम करके घर से निकलते हैं, उसी गर्मी के मौसम में हाथ में पानी लिए मासूम बच्चे आपको पानी बेचते नज़र आ जायेंगे. बल्कि ये पानी बिकने का जो व्यापार शुरू हुआ है इससे ग़रीबों को रोज़ी रोटी तो मिली है लेकिन एक भविष्य जो ख़ूबसूरत हो सकता था सिमट चुका है. हमारे नेताओं की हमारी सरकारों की और ख़ुद हमारी क्या ज़िम्मेदारी है ये हम क्यूँ नहीं समझते… एक तरफ हम मेट्रो में सफ़र करना चाहते हैं तो दूसरी तरफ बुलेट ट्रेन के सपने भी हैं लेकिन इन मासूमों का क्या जिन्हें ये भी नहीं पता चल पा रहा कि उनके लिए सही क्या है ग़लत क्या. क्या सरकार ने ये फ़ैसला कर लिया है कि ग़रीबों को आगे बढ़ने का अधिकार नहीं है? या सरकार ये जताने की कोशिश कर रही है कि ग़रीबी वो नहीं मिटा सकती तो पैदा होते ही बच्चे व्यापारी बन जाएँ? ऐसा नहीं है कि ये सिर्फ़ लखनऊ की दशा है बल्कि ये हालात आम हैं, ठेले पर भुट्टे भूनते बच्चे, मुश्किल जगहों पर काम करते बच्चे…ये सब आम है..
देश में नरेंद्र मोदी की और प्रदेश में अखिलेश यादव की सरकार है और दोनों ही नेता ये कहते रहते हैं कि वो ग़रीबों के लिए काम कर रहे हैं लेकिन इस तरह से बाल मज़दूरों के लिए सरकार क्या पालिसी बना रही है? या फिर आप ये चाहते हैं कि हमारे देश का आने वाला भविष्य 2 रूपये में पानी बेचे ?

 

(सिआसत स्पेशल रिपोर्ट)