सिर्फ रांची जिले में 600 से ज़्यादा प्राइवेट स्कूल बिना मंजूरी के चल रहे हैं। किसी भी गली मुहल्ले में चले जाएं, दो से तीन प्ले स्कूल जरूर दिख जाएंगे। जब रियासत में लाज़मी तालीम हक़ एक्ट लागू हुआ तब ही ऐसे स्कूलों पर कार्रवाई करने की तजवीज किया गया था। इन प्राइवेट स्कूलों को तालीम महकमा से मंजूरी लेनी थी। इसके लिए महज़ तीन महीने का वक़्त इन्हें दिया गया था।
लेकिन रियासत में आरटीई के लागू हुए पांच साल से ज़्यादा वक़्त बीत गया। स्कूलों ने महकमा से मंजूरी नहीं ली। मंजूरी नहीं लेने वाले स्कूलों पर तमाम जिलों के नोडल ओहदेदारों का कार्रवाई करनी थी। इन स्कूलों पर एक एक लाख रुपए जुर्माना लगाना था। लेकिन ऐसा नहीं हो सका। रियासत भर में बिना मंजूरी के चल रहे स्कूलों की तादाद 6000 से ज्यादा है।
बिना इंसानी वसायल तरक़्क़ी महकमा की इजाजत के कोई भी प्राइवेट स्कूल नहीं खोल सकता। तालीम का हक़ एक्ट 2009 के लागू होने के बाद तमाम स्कूलों (प्राइवेट) को एचआरडी से मंजूरी लेना लाज़मी हो गया। इस सिलसिले में महकमा ने नोटिफिकेशन भी जारी की थी।
एक्ट की दफा 18 और 19 के तहत तमाम प्राइवेट स्कूलों को दस्तयाब वसायल और असातिज़ा तालिबे इल्म से मुतल्लिक़ तमाम क़िस्म की इत्तिलाअत महकमा की तरफ से जारी डायस लेटर में भर कर जिला तालीम सुप्रीटेंडेंट दफ्तर को दस्तयाब कराना था। वहीं तमाम दस्तूरुल अमल को पूरा करते हुए एचआरडी से मंजूरी सर्टिफिकेट भी लेना लाज़मी था। ऐसा नहीं करनेवाले स्कूलों को गैर कानूनी होने का ऐलान कर जुर्माना लगाने की तजवीज था। लेकिन हुआ इसका उल्टा ।