पटना. सियासत में कई तरह के बहस से परेशान बिहार के बड़े लीडर इसबार एक नए बहस से जूझ रहे हैं। यह बोहरान दामादवाद है। दामाद कह रहे हैं-हम भी बेटा हैं। बेटे को टिकट दे दिया। हमको भी दो। लोजपा लीडर रामविलास के सामने यह बोहरान ज़्यादा गहरा है। उनके दो दामाद अनिल कुमार साधु और मृणाल उम्मीदवारी की लाइन में हैं। मृणाल चुप हैं। साधु रो रहे हैं। उधर साबिक़ वजीरे आला जीतनराम मांझी के दामाद देवेंद्र मांझी नाराज हो गए हैं। उन्हें बोधगया से टिकट चाहिए। मांझी के हाथ से सभी टिकट निकल गए। कुछ खानदान के दामाद आखरी फेहरिस्त का इंतजार कर रहे हैं। इसके बाद ये रोएंगे या गाएंगे? हालांकि पप्पू यादव की अगुआई में बने छह पार्टियों के इत्तिहाद ने बड़े लीडरों के बोहरान को बहुत हद तक कम किया है। ससुराल से नाराज लोगों को इस इत्तिहाद में पनाह मिल रहा है।
मांझी के दामाद को हुकूमत का कुछ हद तक सुख मिला हुआ है। वे मांझी के पीए की हैसियत से चर्चा में आए थे। मांझी के बेटे टिकट पा गए। एमपी रामचंद्र पासवान के बेटे प्रिंसराज कल्याणपुर से उम्मीदवार बन गए। दामादों ने इसी बुनियाद पर टिकट की मांग की। एक दामाद लालू प्रसाद के भी हैं। एमपी तेज प्रताप। तेज को टिकट की जरूरत नहीं है। वे अपने ससुर की पार्टी के उम्मीदवार को हराने के लिए आ रहे हैं। गनीमत है कि दामाद की तरह बेटियां सभी पार्टियों में टिकट का दावा नहीं कर रही है। सिर्फ लालू की बेटी डा. मीसा भारती एसेम्बली इंतिख़ाब लड़ने को ख़्वाहिश ज़ाहिर की हैं। वह लोकसभा इंतिख़ाब लड़ी थीं। वज़ीर रमई राम की बेटी लंबे वक़्त से इंतिख़ाब लड़ने का मन बना रही है। गुजिशता इंतिख़ाब तक रमई राम अपनी बेटी के लिए टिकट की मांग जरूर करते थे। इसबार चुप रहे।
समधी-समधिन पहले से सियासत में हैं। जीतनराम मांझी की समधिन ज्योति मांझी पहले से एमएलए हैं। ये दोनों इस बार भी इंतिख़ाब लड़ रहे हैं। इंतिख़ाब में एक नए समधी की इंट्री हो गई है। रालोसपा सदर उपेंद्र कुशवाहा के समधी संत सिंह कुशवाहा को नरकटिया से उम्मीदवार बनाया गया है।