बीजेपी महाराष्ट्र राज्य के उपाध्यक्ष प्रसाद लड़ ने शनिवार को मुम्बई में विवादित पोस्टर लगा कर विवाद उत्पन्न कर दिया। पोस्टर में बाल ठाकरे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उनके नोट बंदी के लिए उनको आशीर्वाद देते हुए चित्रित किया गया है। पोस्टर मराठी में है जिसको दादर में शिवसेना कार्यालय के सामने, बांद्रा में ठाकरे के घर पर और विभिन्न महत्वपूर्ण जगहों पर पोस्टर को लगाया गया है।
पोस्टर में लिखा गया है, “काले धन का अंत, यह अच्छे दिन है”। दिलचस्पी की बात यह है कि लड़ पूर्व एनसीपी का सदस्य है जो इसी साल अप्रैल में बीजेपी में शामिल हुआ था। लड़ के पोस्टर के विवादित क़दम को नेताओ की प्रसिद्धि के लिए उठाया गया राजनैतिक कदम बताया जा रहा है। लड़ ने 2014 के चुनावो में सियोन से एनसीपी प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ा था और लड़ कांग्रेस एनसीपी सरकार के मुम्बई रिपेयर एंड रिकंस्ट्रक्शन बोर्ड का अध्यक्ष भी रह चुका है साथ ही प्रसिद्ध मंदिर सिद्धिविनायक का ट्रस्टी भी रह चुका है।
इस साल हुए विधान सभा चुनाव में लड़ ने एनसीपी से इस्तीफा दे दिया था और स्वतन्त्र रूप से चुनाव लड़ा था। बीजेपी की गैरशासकीय मदद के बाद भी लड़ चुनाव नहीं जीत पाया था। लड़ ने पोस्टर के इस मामले पर अभी तक कोई टिप्पणी नहीं की है, हालाँकि उनके सहयोगी ने स्वीकार किया है कि यह पॉटर विभिन्न जगहों पर लगाया गया है। बीजेपी कार्यकर्ताओं को लड़ के इस कदम की कोई जानकारी नहीं है।
शिवाजी पार्क पुलिस ने कहा कि इस पोस्टर के बारे में हमे कोई जानकारी नहीं मिली है और ना ही शिवसेना की तरफ से कोई शिकायत मिली है। शिवसेना ने कहा कि हमने कोई शिकायत नहीं की है हालाँकि पोस्टर्स नगर सम्बन्धी प्रशासन द्वारा हटा दिए गए है। सेना के नेता हर्शल प्रधान ने कहा कि पोस्टर बीएमसी द्वारा हटा दिया गये कयुनकी पोस्टर अनिधकर्त थे। स्रोत के अनुसार शिव सेना द्वारा कोई विवाद उतपन्न होने से पहले ही पुलिस द्वारा पोस्टर हटा दिए गए। हालाँकि केंद्र में भी और प्रदेश में भी बीजीपी के गटबंधन सहयोगी होने के बाद भी सेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने नोटबंदी की आलोचना की है।
ठाकरे ने नोटबंदी पर जनमत संग्रह कराने की सलाह दी थी और कहा था कि प्रधानमंत्री को मनमोहन सिंह की महत्वपूर्ण प्रबंधन हार और सुनियोजित लूट एवं वैदिक लूट की बात को संजीदगी से लेना चाहिए। इसी सप्ताह ठाकरे ने कहा था कि जहां देश की पूरी जनता इस वक़्त रो रही है वहां पर मोदी के रोने की वजह समझ से बाहर है और एक व्यक्ति अकेले 125 करोड़ जनता के लिए कोई फैसला नहीं ले सकता फैसला लेने से पहले जनता को भरोसे में लेना चाहिए था।