ऐ नबी (स०अ०व०) जब हाज़िर हों आपकी ख़िदमत में मोमिन औरतें ताकि आप से इस बात पर बैअत करें कि वो अल्लाह के साथ किसी को शरीक नहीं बनाएगी और ना चोरी करेंगी और ना बदकारी करेंगी और ना अपने बच्चों को क़त्ल करेंगी और नहीं लगाएगी झूटा इल्ज़ाम जो उन्होंने गढ़ लिया हो अपने हाथों और पावों के दरमयान और ना आपकी नाफ़रमानी करेंगी किसी नेक काम में तो (ऐ मेरे महबूब!) उन्हें बैअत फ़र्मा लिया करो और अल्लाह से उनके लिए मग़फ़िरत मांगा करो, बेशक अल्लाह तआला ग़फ़ूरुर रहीम है। (सूरत अल मुम्तहीना: १२)
जब मक्का मुकर्रमा फ़तह हुआ और धड़ा धड़ लोग हुज़ूर स०अ०व० की बैअत करके मुशर्रफ़ बह इस्लाम होने लगे तो मक्का की औरतें भी बैअत के लिए हाज़िर हुईं। हुज़ूर स०अ०व० ने हज़रत उमर फ़ारूक़ रज़ी० को औरतों की बैअत लेने पर मुक़र्रर फ़रमाया और जिन बातों का इस आयत में ज़िक्र है उन पर अमल करने का उनसे पुख़्ता वाअदा लिया।
हुज़ूर स०अ०व० ने औरतों से कई बार बैअत ली, लेकिन किसी औरत के साथ बैअत लेते वक़्त मुसाफ़ा नहीं किया। कभी तो ज़बानी इन उमूर की पाबंदी का वाअदा लिया, कभी पानी से भरे हुए प्याला में अपना दस्त मुबारक डाला और इसके बाद बैअत करने वाली औरतों को अपना हाथ रखने का हुक्म दिया।
कभी कपड़ा दस्त मुबारक में लेकर औरतों से बैअत ली। वाज़िह रहे कि जिन बुराईयों से बचने का हुक्म दिया जा रहा है, इन में इसक़ात-ए-हमल भी शामिल है। जायज़ और नाजायज़ दोनों हमलों के इस्क़ात का एक ही हुक्म है, क्योंकि शरीयत इस्लामी में उसको क़त्ल शुमार किया जाता है।
उस वक़्त अरब मुआशरा में अपनी बच्चीयों को ज़िंदा दरगोर करना वजह इज़्ज़त-ओ-फ़ख़र समझते थे, नीज़ कई लोग भूख से तंग आकर भी अपनी औलाद को मार डाला करते थे।