बुरा अमल क़र्ज़ हे, जिस को अहल-ए-ख़ाना से चुकाया जाता हें

इरशाद बारी ताला हें: पाकीज़ा ओरतें पाकीज़ा मर्दों के लिए ओर पाकीज़ा मर्द पाकीज़ा ओरतों के लिए। (सूरा नूर।३६)
जो शख़्स पाकदामनी की ज़िंदगी गुज़ारता हें, उसे दुनिया में नक़द इनाम मिल्ता हे कि इस के अहल-ए-ख़ाना को अल्लाह ताला पाकदामनी की ज़िंदगी नसीब फ़रमाता हें।

हदीस पाक में आया हे कि एक शख़्स हुज़ूर नबी करीम स.व. के सामने शिकायत पेश की कि मुझे अपनी बीवी के किरदार पर शुबा हें, ये बात मेरे लिए सख़्त अज़ीयत ओर परेशानी का सबब हें। हुज़ूर स.व. ने इरशाद फ़रमाया कि तुम लोगों की ओरतों के बारे में पाकीज़गी इख़तियार करोगे तो लोग तुम्हारी ओरतों के बारे में पाकीज़गी इख़तियार करेंगे इस से मालूम हुआ कि अदले का बदला होता हें।

जीनाकार शख़्स फ़क़त फ़हश अमल ही नहीं करता हें, बल्कि दूसरों का मक़रूज़ हो जाता हें ओर ये क़र्ज़ इस के अहल-ए-ख़ाना या ओलाद में से कोई ना कोई चुका देता हें। उसूल यही हें कि गुनाह की सज़ा इस अमल के जिन्स से हुआ करती हें, पस जो शख़्स दूसरों की इज़्ज़त बर्बाद करेगा, दूसरे उस की इज़्ज़त बर्बाद करेंगे।

हज़रत इमाम शाफ़ई रहमत उल्लाह अलैहि के अरबी के मशहूर अशआर हैं, जिन का तर्जुमा पेश किया जा रहा हें:
पाकदामन रहो, तुम्हारी ओरतें पाकदामन रहेंगी और बच्चो इस से जो मुस्लमान के लायक़ नहीं, बेशक जिना क़र्ज़ हें, अगर तूने उस को क़र्ज़ कर लिया तो अदायगी तेरे घर वालों से होगी, उस को जान ले। जो जिना करे इस से जिना किया जाएगा, अगरचे उस की दीवार से। ए शख़्स! अगर तू अक़लमंद हें तो इस को जान ले।

तफ़सीर रूह उलब्यान में मंक़ूल हें कि शहर बुख़ारा में एक जौहरी की मशहूर दूकान थी। इस की बीवी नेक सीरत और ख़ूबसूरत थी। एक सूक्का (पानी पिलाने वाला) उन के घर तीस साल तक पानी लाता रहा, बहुत बा एतिमाद शख़्स था। इस दिन इस सुक्का ने पानी डालने के बाद इस जौहरी की बीवी का हाथ पकड़कर शहवत से दबाया और चला गया। औरत बहुत ग़मज़दा हुई कि इतनी मुद्दत के एतिमाद को ठेस पहुंची, उस की आँखों से आँसू बहने लगे। इसी दौरान जौहरी खाना खाने के लिए घर आया तो इस ने बीवी को रोते हुए देखा। पूछने पर सूरत-ए-हाल की ख़बर हुई तो जौहरी की आँखों में भी आँसू आगए। बीवी ने पूछा क्या हुआ? तो जौहरी ने बताया कि आज एक औरत ज़ेवर ख़रीदने आई थी, जब में उसे ज़ेवर देने लगा तो इस का ख़ूबसूरत हाथ मुझे पसंद आया, मेने इस अजनबीह के हाथ को शहवत से दबाया, जो मेरे ऊपर क़र्ज़ हो गया था, लिहाज़ा सुक्का ने तुम्हारे हाथ को दबाकर क़र्ज़ चुका दिया। में तुम्हारे सामने सच्ची तौबा करता हूँ कि आइन्दा एसा कभी नहीं करूंगा, अलबत्ता ये मुझे ज़रूर बताना कि कल सूक्का तुम्हारे साथ कया मुआमला करता हें। दूसरे दिन सुक्का पानी डालने के लिए आया तो इस ने जौहरी की बीवी से कहा में बहुत शर्मिंदा हूँ, कल शैतान ने मुझे वरग़ला कर बुरा काम करवा दिया। मेंने सच्ची तौबा करली हें, आप को यक़ीन दिलाता हूँ कि आइन्दा एसा कभी नहीं होगा। अजीब बात हें कि जौहरी ने ग़ैर ओरतों को हाथ लगाने से तौबा की तो ग़ैर मर्दों ने इस की बीवी को हाथ लगाने से तौबा की। (तफ़सीर रूह उलब्यान)

एक बादशाह के सामने किसी आलिम ने ये मस्ला ब्यान किया कि ज़ानी के अमल का क़र्ज़ हें इस की औलाद या अहल-ए-ख़ाना में से किसी ना किसी को चुकाना पड़ता हें। इस बादशाह ने सोचा कि में इस का तजुर्बा करता हूँ। इस की बेटी हुस्न-ओ-जमाल में बेमिसाल थी, इस ने शहज़ादी को बुलाकर कहा कि आम सादा कपड़ा पहन कर अकेली बाज़ार जा, अपना चेहरा खुला रख और लोग तुम्हारे साथ जो मुआमला करें वो पुरा आकर मुझे बताओ। शहज़ादी ने बाज़ार का चक्कर‌ लगाया, मगर जो ग़ैर मुहर्रम शख़्स उस की तरफ़ देखता तो श्रम-ओ-हया-ए-के मारे निगाहें फेर लेता, किसी मर्द ने इस शहज़ादी के हुस्न-ओ-जमाल की तरफ़ ध्यान ही ना दिया। सारे शहर का चक्कर‌ लगाकर जब शहज़ादी अपने महल में दाख़िल होने लगी तो राहदारी में किसी मुलाज़िम ने महल की ख़ादिमा समझ कर रोका। गले लगाया, बोसा लिया और भाग गया। शहज़ादी ने बादशाह को सारा क़िस्सा सुनाया। बादशाह की आँखों में आँसू निकल आए। कहने लगा कि मेने सारी ज़िंदगी ग़ैर मुहर्रम से अपनी निगाहों की हिफ़ाज़त की है, अलबत्ता एक मर्तबा में ग़लती कर बैठा और एक ग़ैर मुहर्रम लड़की को गले लगाकर इस का बोसा लिया था। पस मेरे साथ वही कुछ हुआ, जो मैंने अपने हाथों से किया था। सच्च है कि ज़ना एक क़िसास वाला अमल है, जिस का बदला अदा होकर रहता है। (रूह अलमानी, आ लूसी)

हमें मुंदरजा बाला वाक़ियात से इबरत हासिल करनी चाहीए, एसा ना हो के हमारी कोताहियों का बदला हमारी औलादें चुकाती फिरें। हर शख़्स चाहता है कि इस के घर की ओरतें पाकदामन बन कर रहीं, उसे चाहीए कि वो गैर मुहर्रम औरतों से बे तमा हो जाए। इसी तरह जो ओरतें चाहती हें कि हमारे ख़ाविंद नेको कारी की ज़िंदगी गुज़ारें, बेहयाई वाले कामों को छोड़ दें। उन्हें चाहीए कि वो ग़ैर मर्दों की तरफ़ नज़र उठाना छोड़ दें, ताकि पाकदामनी का बदला पाकदामनी की सूरत में मिल जाए। रह गई बात कि अगर किसी ने पहले ये कबीरा गुनाह किया हें तो तौबा का दरवाज़ा खुला हें, सच्ची तौबा के ज़रीया अपने रब को मनाएं, ताकि दुनिया में क़िसास से बच जाएं और आख़िरत की ज़िल्लत से छुटकारा पाएं।