हज़रत अब्दुल्लाह बिन अमरो बिन आस रज़ी अल्लाहु तआला अनहु से रिवायत है कि (एक दिन) रसूल क्रीम स०अ०व० ने उनसे फ़रमाया कि उस वक़्त तुम क्या करोगे जब तुम अपने आप को नाकारा लोगों के ज़माने में पावगे, जिन के अह्द-ओ-पैमान और जिन की अमानतें ख़लत-मलत होंगी और जो आपस में इख़तेलाफ़ रखेंगे, गोया वो लोग इस तरह के हो जाऐंगे।
ये कह कर आप स०अ०व० ने अपनी उंगलीयों को एक दूसरे के अंदर दाख़िल किया। हज़रत अब्दुल्लाह ररज़ी अल्लाहु तआला अनहु ने (ये सुन कर) अर्ज़ किया कि आप स०अ०व० मुझे हिदायत फ़रमाएं कि उस वक़्त में क्या करूं?।
आप स०अ०व० ने फ़रमाया उस वक़्त तुम पर लाज़िम होगा कि उस चीज़ को इख़तियार करो और इस पर अमल करो, जिस को तुम (दीन-ओ-दियानत की रोशनी में) हक़ जानो और उस चीज़ से इजतिनाब-ओ-नफ़रत करो, जिस को तुम नाहक़ और बुरा जानो, नीज़ सिर्फ़ अपने काम और अपनी भलाई से मतलब रखू और ख़ुद को अवामुन्नास से दूर करलो।
एक रिवायत में यूं मनक़ूल हैके अपने घर में पड़े रहो (बिलाज़रूरत बाहर निकल कर इधर इधर ना जाव) अपनी ज़बान को क़ाबू में रखू, जिस चीज़ को हक़ जानो उस को इख़तियार करो और जिस चीज़ को बुरा जानो उस को छोड़ दो, सिर्फ़ अपने काम और अपनी भलाई से मतलब रखू और अवामुन्नास के मुआमलात से कोई ताल्लुक़ ना रखू। इस रिवायत को तिरमिज़ी ने नक़ल किया है और सही क़रार दिया है।
अपनी उंगलीयों को एक दूसरे के अंदर दाख़िल किया यानी आप स०अ०व० ने ये समझाने के लिए कि वो आपस में किस तरह एक दूसरे की हलाकत के दरपे होंगे और उनके बाहमी इख़तेलाफ़ात-ओ-नज़ाआत की क्या सूरत होगी। आप स०अ०व० ने बतौर मिसाल वाज़िह फ़र्मा दिया कि जिस तरह दोनों हाथों की उंगलियां एक दूसरे के साथ गुत्थम गुत्था हैं, इसी तरह उनकी अख़लाक़ी-ओ-समाजी हैसियत इस दर्जा उलझी हुई और उनके दीनी मुआमलात-ओ-आमाल इस क़दर ख़लत-ओ-मिल्लत होंगे कि अमीन-ओ-ख़ाइन और नेक-ओ-बद के दरमयान तमीज़ मुम्किन नहीं रहेगा।