बुर्क़ा की आड़ में ग़ैर मुस्लिम लड़कीयों की बेहयाई , तफ़रीही मुक़ामात पर काबिले एतराज़ हरकात

नुमाइंदा ख़ुसूसी – बुर्क़ा और हिजाब हमारे दीन के अहम फ़राइज़ हैं और यक़ीनन समाज में ख़वातीन की इज़्ज़त-ओ-इफ़्फ़त के लिए एक ढाल समझे जाते हैं । वहीं इस से ख़वातीन तालिबात के वक़ार में इज़ाफ़ा भी होता है । बुर्क़ा के बारे में तंगनज़र और मुतअस्सिब ज़हनों ने बहुत ज़हर उगला है । लेकिन हिंदूस्तान की मशहूर-ओ-मारूफ़ नव मुस्लिम अदीबा कमला सुरय्या ने दामन इस्लाम में पनाह लेने के बाद अपने पहले इंटरव्यू में पर ज़ोर अंदाज़ में कहा था कि बुर्क़ा बदनिगाही से बचने के लिए एक बुलेट प्रफ़ू जैकेट का काम करता है । लेकिन अफ़सोस आज हमारी कुछ बहनें , बेटियां ना सिर्फ बुर्क़ा-ओ-हिजाब की हुर्मत को बरसर-ए-आम पामाल कररही हैं बल्कि शहर के तफ़रीही मुक़ामात और पार्कस मैं बुर्क़ापोश ख़वातीन अपने ब्वॉय फ्रेंड्स के साथ बेहयाई का मुज़ाहरा करती नज़र आती हैं । ऐसा ही एक मुक़ाम गनबदां क़ुतुब शाही ( सात गुमबद है ) जहां क़ुतुब शाही ख़ानदान के हुकमरान और उन के अहले ख़ानदान की क़ुबूर ख़ामोश माज़ी की दास्तान सुना रहे हैं । सात गनबद दरअसल एक इबरत का मुक़ाम है लेकिन इस को क्या कहीए कि ये अब तफ़रीही मुक़ाम बन गया है । लेकिन बुर्क़ापोश लड़कीयों ने इस मुक़ाम को अपनी मायूब तफ़रीह का अड्डा बना दिया है । इस के तक़द्दुस को पामाल करदिया है । क़ारईन कुछ अर्सा से सात गनबदां पर कॉलिज की लड़कीयां को आना और अपने ब्वॉय फ्रेंड्स के साथ वक़्त गुज़ारना सुबह से शाम तक ख़र मस्तियां करना गोया मामूल बन गया है । इस इबरत के मुक़ाम पर कोई नाजायज़ जोड़ा किसी बड़ी क़ब्र की आड़ में छुपता है तो कोई कांटों से भरी इस राह को साफ़ कर के वहां पहुंच जाता है जहां उन के अपने ख़्याल में किसी की नज़र नहीं जाती तो कोई जोड़ा तहा ख़ाना में दाख़िल हो कर ये समझता है कि अब हमारी लायक़ मुज़म्मत हरकात देखने वाला कोई नहीं है । यहां का जायज़ा लिया जाय तो हैरत होगी कि तक़रीबन हर क़ब्र की आड़ में कोई ना कोई जोड़ा छिपा बैठा है । यहां कुछ मिल्लत की तड़प और दर्द रखने वाले नौजवानों से मुलाक़ात भी हुई । जो इस बुराई के ख़ातमा के लिए जद्द-ओ-जहद कररहे हैं यहां अक्सर आते हैं इन जोड़ों से बातचीत भी करते हैं । हर ज़बान में तर्जुमा की हुई दीनी किताबें उन लोगों में तक़सीम भी करते हैं। ऐसे ही एक नौजवान ने बताया कि हम ने अभी तक जितनी लड़कीयों से बात की , आप को ताज्जुब होगा कि इन में से 90 फ़ीसद जोड़े ग़ैर मुस्लिम लड़कीयों के होते हैं । सिर्फ बुर्क़ा को ढाल के तौर पर इस्तिमाल कररही हैं । कुछ लड़कीयां तो हर रोज़ अपने ब्वॉय फ्रेंड्स से हर रोज़ मुलाक़ात करती हैं । रहा सवाल बुर्क़ा का तो साहब ये चीज़ बाज़ार से ख़रीदी जा सकती है । ये लड़कीयां भी यही करती हैं बाज़ार से ख़रीद कर अपने बयाग में रख लेती हैं हमेशा बुर्क़ा साथ रहता है जब भी ज़रूरत पड़ती है इस का इस्तिमाल करलेती हैं जब चाहा पहन लिया और जब चाहा उतार डाला । साथ का लड़का भी हममज़हब होता है । मिल्लत के हमदरद नौजवानों का कहना है कि जब भी वो यहां आते हैं 3 या 4 जोड़े ज़रूर उन से बात करते हैं । अक्सर लड़कीयां कॉलिज से आती हैं जिन के हाथों में किताबों से भरे बयाग भी होते हैं जब ये नेक दिल नौजवान इन किताबों पर लिखे हुए नाम देखते हैं तो हैरत होती है कि इन में कोई कवीता होती है तो कोई अनीता होती है । अपनी हरकतों को अपने बुज़ुर्गों से बचाने के लिए बुर्क़ा इस्तिमाल करती हैं और ब्वॉय फ्रैंड हेल्मट का सहारा लेता है । अपना बच्चाॶ करता है । लेकिन अफ़सोस तो ये है कि इस बुर्क़ा के अंदर का राज़ तो बहुत कम लोग जानते हैं । सात गनबद के एक सीकोरीटी गार्ड ने बताया कि शुरू शुरू में हम भी समझते थे कि ये बुर्क़ापोश मुस्लिम लड़कीयां हैं । हम ने भी उन की किताबों पर नाम पढ़ने शुरू किए तब पता चला कि इन की अक्सरीयत ग़ैरमुस्लिम लड़कीयों की होती हैं । हाँ ये सच्च है कि इन में चंद मुस्लमान लड़कीयां भी होती हैं । हम ये मंज़र देख कर हैरान होजाते हैं कि क्या इन मुस्लिम लड़कीयों और लड़कों को कोई रोकने टोकने वाला नहीं है । इस से पहले कि मुस्लिम मुआशरा में ये बुराई फैल जाय अभी से इस की रोक थाम करना चाहीए ।