जोधपुर के मुख्य सेंट्रल बाजार की मस्जिद में दोपहर की नमाज खत्म होने के बाद हाजी मुहम्मद अतीक अपनी गाड़ी में बैठकर जल्दबाजी में शहर से बाहर का रुख करते हैं। सफेद कुर्ते, पजामे और सिर पर मजहबी टोपी लगाए हाजी अतीक बीकानेर रोड स्थित आदर्श मुस्लिम गोशाला पहुंचते हैं और वहां अपने हाथ से गायों को चारा खिलाते हैं। चेहरे पर हल्की दाढ़ी और वेश-भूषा के साथ-साथ इस्लाम की रवायतें पूरी लगन से निभाने वाले हाजी खुद एक शिक्षक हैं।
यह गोशाला इस पूरे इलाके में सबसे बड़ी है। जोधपुर की मुस्लिम एजुकेशनल ऐंड वेलफेयर सोसायटी इसकी देखरेख करती है। हाजी अतीक इसके महासचिव हैं। गोशाला में 200 से अधिक गायें हैं। ज्यादातर गायें बूढ़ी और बीमार हैं। गोशाला में जानवरों के डॉक्टरों की एक टीम इन गायों का बराबर ख्याल रखती है। पिछले 8 साल से गौसेवा के द्वारा समाज में शांति और भाईचारे की मजबूती से वकालत कर रही इस गोशाला ने कभी अपना प्रचार नहीं किया। हाजी अतीक का कहना है कि गायों का ध्यान रखना उनके लिए ऐसा ही है, जैसे अपनी मां का ख्याल रखना। उन्होंने कहा कि गाय हिंदुस्तान की साझा हिंदू-मुस्लिम संस्कृति का एक प्रतीक है।
जोधपुर के लूनी तहसील से हर दिन ट्रक में भरकर हरा चारा इन गायों को खिलाने के लिए लाया जाता है। इन गायों को गोशाला टीम शहर के अलग-अलग हिस्सों से यहां लाती है। गायों को गोशाला तक लाने के लिए खास वाहन का भी इंतजाम है। यहां ज्यादातर ऐसी गायें हैं, जिन्होंने दूध देना बंद कर दिया है। ऐसी गायों को जब बेसहारा छोड़ देते हैं, तो गोशाला टीम उन्हें अपने यहां ले आती है। हाजी अतीक बताते हैं, ‘हमारी टीम के जो सदस्य शहर में रहते हैं, वे अपने आसपास आवारा, बेसहारा, घायल, बूढ़ी और बीमार गायों पर नजर रखते हैं। ऐसी गायें जो अब खुद का पेट नहीं भर सकतीं, उन्हें भी हम यहां गोशाला में ले आते हैं।’ हर दिन दोपहर की नमाज पढ़ने के बाद हाजी अतीक खुद गोशाला आते हैं और गायों को चारा खिलाते हैं।
हिंदू और मुस्लिम संस्कृति यहां कैसे एकसाथ मिल जाती है, इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि ईद और ईद-ए-मिलाद जैसे खास मौकों पर गायों को खीर भी दी जाती है। यह संस्था आसपास के गांवों में गायों को टीका लगाने और उनके इलाज में मदद करने का भी काम कर रही है। हर सप्ताह संस्था की गाड़ी आस-पड़ोस के ग्रामीण इलाकों में जाकर गाय, बकरी और भैंसों का मुफ्त इलाज करती है। हर महीने इसके लिए 1 लाख से ऊपर की रकम खर्च हो जाती है। यह संस्था अब अपने खर्च की सीमा बढ़ाने की योजना बना रही है।
मौलाना आजाद यूनिवर्सिटी परिसर के एक हिस्से में 56 एकड़ जमीन पर स्थित इस गोशाला के साथ-साथ हाजी अतीक यहां एक गाय शोध केंद्र भी विकसित करना चाहते हैं। यूनिवर्सिटी के कृषि विभाग के अंतर्गत यह विकसित किए जाने की योजना है। ऐसा नहीं है कि गोशाला शुरू करने का यह सफर आसान रहा। कुछ लोगों ने मुस्लिम समुदाय द्वारा गोशाला खोलने पर आपत्ति भी जताई थी। कुछ का आरोप था कि गोशाला के नाम पर गाय के मीट का व्यापार किया जा रहा है।
धीरे-धीरे लोगों ने यह कदम की अहमियत को समझना और इसकी तारीफ करना शुरू कर दिया। आपत्ति जताने वालों में शामिल कई लोगों ने सार्वजनिक तौर पर गोशाला की प्रशंसा की। चूंकि यह गोशाला काफी बड़े क्षेत्र में फैला है, इसीलिए इसकी सुरक्षा के लिए 3 सुरक्षाकर्मी चौबीसों घंटे तैनात रहते हैं। हाजी अतीक बताते हैं, ‘हमारी यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले कई छात्र यहां गोशाला में स्वयंसेवा करते हैं। जिस तरह से हमारे छात्रों ने गौसेवा के लिए चिंता दिखाई है, उसे देखकर मैं बहुत खुश हूं।’ अतीक को हैरानी होती है कि जिस गाय का दूध मां के दूध के बाद सबसे पौष्टिक माना जाता है, उसे सांप्रदायिक भावनाएं भड़काने और नफरत फैलाने के काम में इस्तेमाल किया जाता है
Source-NBT